नयन झील में उमड़ रही क्या
स्वप्निल रिस्तों की अभिलाषा।।
इतना प्यार उमड़ता देखा
इससे पहले कभी नहीं।
इससे मूल्यवान न कुछ भी
जिसने बोली बात सही।।
सचमुच में जुड़ आप से
अब इस जन्म-जन्म की आशा।।
जिव्हा हिली, न लब थिरके,
पर दिल की कह डाली।
कैसी अदा तुम्हारी झोली में
विधना डाली।।
अलिखित किन्तु
पढ़ी जाने वाली अंतस भाषा।।
मैं तो सदा तुम्हारी बाहों
का झूला चाहूँ।
सच पूछो तो तुमको पाकर
मैं खुदको भूला।।
आज समझ में आई मेरे
नयनों की भाषा।।
बाँच सका हूँ इन आँखों में
सचमुच प्रेम भरी परिभाषा।
नयन झील में उमड़ रही क्या
स्वप्निल रिश्तों की अभिलाषा।।
गीत-डाॅ.मोहन तिवारी‘आनंद’
No comments:
Post a Comment