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सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'

'चूँ-चूँ-चूँ' और 'ची-ची-ची'
रचनाकार : सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
        प्रकृति के नियमों के अनुसार आए दिन नए ज्ञान, रीतिरिवाज, परंपरा, जीवनयापन की रीतियाँ आदि स्वाभाविकता के साथ आत्मसात कर लेता है। परंतु इनका स्वीकार करते हुए बढ़ते उपभोक्तावाद में वही मानव जन दूसरे मनुष्य से परे हो रहा हैं। यह जानते हुए भी मनुष्य आज के समय में इस बात को अनदेखा करते हुए अपने पारिवारिक रिश्ते, जीवन शैली एवं संस्कृति, वास्तविक जीवन विधान और खुद को जीना भूल गया है। साहित्य इन्हीं बातों को शाब्दिक में प्रस्तुत होकर खो रहे मानव जीवन बचाने की कोशिश में हैं। चाहे उस साहित्य की कोई भी विधा क्यों न हो। इसी प्रकार के साहित्य में आज पाश्चात्य विधा 'हाइकु' जो मूलतः जापानी विधा है, हिंदी साहित्य में भी अपना अनूठा स्थान बनाए बैठी है। इसका सारा श्रेय उन सभी भारतीय सशक्त हाइकु रचनाकारों को जाता हैं। आज हिंदी साहित्य के क्षेत्र में बहुत-से हाइकुकार हैं, परंतु हायकु विधा के मूल संविधान के अनुसार प्रभावी हाइकु रचना करनेवाले गिने-चुने हाइकुकार हैं। इन सबमें आज के समय के जेष्ठ एवं सशक्त हाइकु कलम के सिद्धहस्त हैं - आदरणीय, वंदनीय, गुरुवर्य, हाइकु साहित्य श्रेष्ठी श्रीमान सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य ' जी। तक़रीबन आपके डेढ़ हजार तक हायकु रचना लेखन संपन्न हुआ हैं।
        हाइकुकार सूर्यनारायण गुप्त जी को आजतक  पाँच दर्जनों से भी राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। 



            हाइकुकार सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य' से मिलने का अवसर चित्तौड़गढ़ में संपन्न साहित्यिक कार्यक्रम में प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के आयोजक साहित्यकार राजकुमार जैन 'राजन' जी ने 'सूर्य' जी का परिचय कराते हुए कहा कि हिंदी साहित्यिक विधा 'हाइकु' के कभी न अस्ताचल की ओर प्रस्थान करनेवाले यह सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य' जी हैं। शाम के वक्त काव्य संगोष्ठी में 'सूर्य' जी ने एकसौ बढ़कर एक जीवन को अभिव्यक्ति देनेवाले हायकु सुनाए। वह समय मेरे जीवन में नई साहित्य विधा हाइकु का वास्तविक परिचय करनेवाला था। फिर निरंतर संपर्क में आने के कारन सूर्य जी मेरे जीवन में साहित्यिक गुरु का स्थान ग्रहण कर चुके थे इसका बोध भी न हुआ, इतने सरल, मितभाषी और स्नेही है 'सूर्य' जी । आपके द्वारा रचित 'चूँ-चूँ-चूँ' और 'ची-ची-ची' हाइकु संग्रह की रचनाओं का ज्ञान कृपाप्रसाद प्राप्त हुआ।
          सूर्य जी की कुछ हाइकु रचनाओं के प्रभाव के कारन जैसे ही यह किताबें मिली तो पाठक पठन के नियमानुसार मुखपृष्ठ, भूमिकाएँ एवं रचनाकार का स्वमत पढ़ता हैं। परंतु मैंने ''चूँ-चूँ-चूँ' हाइकु-संग्रह को अंतरंग में छपी 'हाइकु-स्तुति' से पढ़ना प्रारंभ किया। एक-एक करके जब यह किताब पढ़ रहा था तो वाचन छोड़कर उठने का ख़याल एक पल भी नहीं आया। लगातार तीन-साढ़े घंटे की एक ही बैठक में पूरा हाइकु संग्रह पढ़ लिया और उसके बाद अन्य बातों को भी पढ़  लिया। सचमुच पाठक को घंटों एक स्थान पठन के लिए बिठाकर रखने का कौशलपूर्ण रचना करने की कला आदरणीय सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य' जी में हैं। मानो ऐसा लगता है की सूर्य जी साहित्य को जीते है।
              आपने दोनों हायकु संग्रह के नाम- 'चूँ-चूँ-चूँ' और 'ची-ची-ची' शिर्षित किए है जो पंछियों की बोली के रूप में जानी जाती हैं। आपके हाइकु संग्रह पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि आपके शीर्षक पंछियों की बोलियाँ न होकर आज के उपभोक्तावाद के कारन समाज की दुरावस्था से आहत घायल स्वाभिमानी, समाजनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ, परिश्रमी, देशभक्त, प्रकृतिप्रेमी, संस्कृति प्रेमी,नीति एवं करुणा के सागर एवं समाजसेवी के मन की वेदना की आवाज ही अभिव्यक्त और दृष्टिगोचर हो जाती हैं।
             'चूँ-चूँ-चूँ' और 'ची-ची-ची' हाइकु संग्रह के शीर्षक हाइकु, हाइकु स्तुति और समर्पण प्रारंभ में ही आपकी कलम की कलाकारी व्यक्त कराती हैं।
मन की बात/ हाइकु ही कहेंगे/ मेरे हालत, 
आँखों का पानी/ आ कर सुना गयी/ मेरी कहानी
भाग्य का सफा/ रहा सदा मुझसे/ खफा ही खफा
          आदि हाइकुओं से आप के जीवन की आभा प्रकट होती हैं जो आगे चलकर समस्त रचनाओं पर प्रभावित हुई दिखाई देती हैं।
            आज के समाज में नारी की हो रही अवहेलना को पढ़कर मन गदगद हो उठता हैं। जैसे -
लड़की क्वाँरि/ हँसा देख दहेज़/ माँ की लाचारी, 
आज-दुल्हन/बिन दहेज़ बनी/ है विरहन, 
जलते देखा/ दहेज़ की ज्वाला में/ सिंदूरी रेखा 
       आदि अन्य हाइकु में दहेज़ रूपी कलंक का बाजार आपकी कलम से स्वाभाविक व्यक्त हुआ है। तो दूसरी ओर पारिवारिक सास-बहू, माँ-पिता-पुत्र-पुत्री आदि रिश्तों में खींची अनचाही लकीर को हायकू में आप लिखते है -
बेटों में बँटी/ बूढ़ी माँ की ममता/ किश्तों में फटी। 
वृद्धा आश्रम/ माँ-बाप कहते जहाँ/ बेटे का गम।  
माँ का ही दूध/ बड़ा होकर भूला/ उसका पूत। 
      आदि रचनाएँ विभक्त परिवार की विवशता बयान करती है।

सूरजमुखी/ भौरों का झुण्ड देख/  हो गई सुखी। 
प्रभु सौगात/ तारों का उपवन/ चांदनी रात।  
सोन चिरई/ डाल-डाल फुदकी/ गुम हो गई। 
प्याऊ है प्यासा/ समुद्र  रही/ यहाँ हताशा। 
फूल ये कहें/ काटों के साथ हम/ प्रेम से रहें। 
मेघों के राजा/ हरी-भरी धरती/ आ के सजा जा। 
        आदि प्रकृति के विभिन्न रंग बिखेरती रचनाएँ संग्रहों में समाहित हैं। प्रकृति पर रचे हाइकु भी पठनीय और हर्षोल्लास भरनेवाले हैं। 
         मानव जीवन को अभिव्यक्ति देते हुए आपके हाइकु जीवन सार कह देते हैं, जैसे
धूप व छाँव/ आते-जाते रहते/ मन के गाँव। 
तीन सवाल/ रोजी, रोटी, लंगोटी/ करे हलाल। 
टूटे सपने/ पराये काम आये/ झूठे अपने। 
रिश्तों का जाल/ पैसे के लिए पूछे/ हाल व चाल। 
पैसे की आस/ आदमी को बना दे/ जिन्दा-सी लाश
       आजकल की श्रेष्ठत्व पाने की लालसा में अपने अस्तित्व की पहचान करानेवाली आपकी यह रचनाएँ हैं।     सच को सजा/ कलयुग  में मिले/ झूठ को मजा। 
पहने कड़ी/ देश को चूसें और/ बेचे आजादी।  
ताली या गाली/ लुटने में लिप्त हैं/ देश के माली। 
यह न्यायलय/ सच के लिए तो है/ यातनालय। 
आजादी मिली/ देश के लुटेरों की/ बाँहे ही खिली। 
गीता-कुरान/ इनके नाम पर/ चले दूकान। 
बापू सो गये/ काले राजनीतिज्ञ/ गोरे हो गये। 
       आदि हाइकू आजादी मिले देश की अपनों द्वारा हो रही बर्बादी का दर्शन कराती हैं तो दूसरी और जीवन पथिक को सही दिशादिग्दर्शन करती हैं। जैसे
सत्य के पाँव/ न झुके न झुकेंगे/ झूठ के गाँव। 
मान व शान/ मन का अहंकार/  दे अपमान। 
झूठ की भीड़/ उजाड़ दिया यहाँ/ सत्य की नीड़। 
              समग्र दोनों हाइकु-संग्रह के बारे में यह कह सकते हैं कि प्रकृति से लेकर आसमान तक और मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक ५-७-५ वर्णों में अंकित यह रचनाएं समस्त जीव-जगत का अस्तित्व की पहचान कराते है।
            आदरणीय सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य' जी द्वारा रचित साहित्य आसमान के सूर्य की तरह अनंत कल तक चमकता रहेगा इसमें कोई दो राय नहीं हैं। सूर्य जी आपके भविष्य के लिए आपके स्वास्थ्यसंपदा और सृजनशील साहित्यसंपदा के लिए बहुत-बहुत मंगल कामनाऍ।       
साभार, बहुत-बहुत धन्यवाद !

आपके अन्य कुछ हाइकु जो आपके द्वारा मुझे भेजे गए हैं, उनका संकलन यहाँ प्रस्तुत हैं। 
** सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य' **
उठी न डोली
भर सका न बाप
दूल्हे की झोली ।

समाज में क्यों
दहेज़ का दानव
पाले मानव ?

ले सात फेरे
कम दहेज़ देख
मुँह को फेरे ।

  हाइकु : गुरु 

बने सुलेख
गुरु - चरण बैठ
लिखूँ जो लेख ।

पाऊँ मैं वर
हाइकु - गुलदस्ता
दे गुरु - कर ।

गुरु स्वीकारें
हाइकु - गुलदस्ता
आके सँवारे ।


  प्रकृति  
चाँद सितारे
आओ न किसी दिन
घर हमारे।

शाम ज्यों ढली
अम्बर में तारेां की
झालरें जली।

चाँदनी छाई
धरती पे चांदी की
पर्त बिछाई। 

बसंत आया
सुगन्धि नाच उठी
जग बौराया ।

पुष्प व फूल
साथ साथ रहते
सदा हँसते

कमल खिला
भ्रमर -दल जा के
गले से मिला । 

फूल ये कहें
काटाें के संग हम
प्रेम से रहें।

हाइकु

मेरे समीप
दूर तक फैले हैं
पीड़ा के द्वीप ।

अच्छे काे बुरा
घोंप रहा है आज
पेट में छुरा।

पुत्र व बहू
माँ -बाप का मिल के
पी रहें लहू ।

प्रेम है त्याग
वासना का संसार
जलाता आग।

सुहानी शाम
वियाेग -अवस्था में
है किस काम ?

 सूर्यनारायण गुप्त 'सूर्य'
ग्राम व पोस्ट-पथरहट (गौरीबाजार)
जिला-देवरिया - 274202 (उ.प्र.)
मो०-09450234855
07607855811

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