इस ब्लॉग पर सभी हिंदी विषय अध्ययनार्थी एवं हिंदी विषय अध्यापकों का हार्दिक स्वागत!!! मच्छिंद्र भिसे (हिंदी विषय शिक्षक, कवि, संपादक)

Thursday 13 September 2018

१४ सितंबर २०१८ - निज भाषा के गीत गाएँगे

भारतवर्ष  के   सभी
हिंदी   प्रेमियों   को
हिंदी दिवस
 की बहुत-बहुत  
मंगलकामनाएँ
*निज भाषा के गीत गाएँगे *
अमृत की धारा बहकर जिसने,
हिंद को अमर बनाया है,
हिंदी है वह सपूत हम इसके,
निज भाषा के गीत नित गाएँगे

भारत भू के पावन अधरों पर,
खिलें हिंदी के अमर सुमन,
सुगंधित करती रही - रहेगी,
हँस-हँसकर देखेगा यह चमन,
ऐसे है इसके पुष्प यहाँ,
जो कभी न मुरझाएँगे।

अमीर, चंद और विद्यापति,
हिंदी को देते थे हरपल गति,
कबीर, सूर हो या तुलसीदास,
हिंदी को दे रहे थे निश-दिन उजास,
आदि-भक्ति का अलख  जो जगाया,
वह अलख नित जगाएँगे।

रीतिकाल बहाएँ था परिवर्तन के पवन ,
केशव, पद्माकर थे जैसे कवि भूषण,
मील के पत्थर बनें भारतेंदु -प्रेमचंद  
मानी देकर खिलाएँ कितनों ने अनुबंध,
राष्ट्र की आन-बान-शान है हिंदी ,
संजोए रखने को हर साँस लुटाएँगे।

सभ्यता, संस्कृति और मानवता,
भारत-भारती की जो है संभालें,
समता, एकता, बंधुता  राष्ट्रीयता,
हिंदी है वह जिसने भरे ये रंग निराले,
लाख करें कोशिश मिटाने की इसे,

थाल इसकी अपने भाल से सजाएँगे।

रचना
नवकवि- मच्छिंद्र भिसे (सातारा)

उपशिक्षक 
सदस्य,   हिंदी अध्यापक मंडल सातारा 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५

चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३


Tuesday 4 September 2018

शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत मंगलकामनाएँ

मेरे आदरणीय, वंदनीय, श्रद्धेय, मार्गदर्शक, प्रेरणास्त्रोत, पथप्रदर्शक गुरुजनों को शिक्षक दिवस की बहुत-बहुत 
मंगलकामनाएँ  
*तलाश उस परछाई की...*
गुरूजी कल फिर मैंने एक मनभावन सपना देखा
मुरझाएँ फूल को हँसते-हँसाते आपका चेहरा ही देखा

पल्लू को कसके पकड़ेपिता की उंगली थामें,
था बैठा मैं, न डर था न किसी से नफरत थी हमें,
उम्र ने दी दस्तकचल पाठशाला के आँगन में,
लिए हाथ कोरी पाटी और विश्वास भरे मन में,
न चाहते हुए भी पाटी पर शब्दों को उभरें देखा

आपको फिर बच्चा बनाए आपसे गीत सुनवाएँ,
बचपने के आँगन मेंदोस्तों के साथ गीत गाए,
उसकी पाटी, मेरी पेन्सिलप्यारे झगड़े हमें भाए,
मन में गुस्सा पल का, अगले पल फिर गले मिल जाए,
हमारे गुस्से-प्यार में आपका मन-मुस्काता चेहरा देखा

ना समझ से समझदार बाबू हम बन गए,
हमारी शरारतें भी अपनी आदत मानकर सह गए,
दिखाई जो श्रद्धा हमपर आप आगे चल दिए,
मुड़कर न देखना कहकरहमें आगे बढ़ाते जो गए,
गुरूजी उन हाथों को और प्यार को सख्त होते जो देखा

गिरकर उठनाउठकर चलना, आपने ही सिखाया,
भटके हुए थे कभी बचपने मेंसही रास्ता भी दिखाया,
अहंकार ने जब भी छुआनम्रता का पाठ भी पढ़ाया,
खोए कभी उम्मीद अपनी, रोशनदान बन सबेरा उगाया,
यौवन की बेला पर हमें संभालते हुए फिर से आपको देखा

गुरूजी, आज वह परछाई फिर से ढूंढ रहा हूँ,
शायद जिंदगी की तलाश में अपने तन की,
खोखली उम्मीदों के बीच खोई रूह ढूँढ रहा हूँ,
जो कभी बचपने से यौवन तक अपने सँभाली थी,
उसे आपकी परछाई के तले सुमनों-सा बिछता हुआ देखा।

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मेरी
यह
रचना
मेरे
सभी आदरणीय गुरुजनों
को
समर्पित
है !!!


रचना
नवकवि
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे  

उपशिक्षक 
सदस्य,   हिंदी अध्यापक मंडल सातारा 
भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३

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