व्याकरण - विराम
चिह्न
विराम शब्द का अर्थ है ठहराव या रुक जाना। एक व्यक्ति अपनी बात कहने के लिए, उसे समझाने के लिए, किसी कथन पर बल देने के लिए, आश्चर्य आदि भावों की अभिव्यक्ति के लिए कहीं कम, कहीं अधिक समय के लिए ठहरता है। भाषा के लिखित रूप में उक्त ठहरने के स्थान पर जो निश्चित संकेत चिह्न लगाए जाते हैं, उन्हेँ विराम–चिह्न कहते हैं।
वाक्य मेँ विराम–चिह्नों के प्रयोग से भाषा में स्पष्टता और सुंदरता आती है तथा भाव समझने में सुविधा होती है। यदि विराम–चिह्नों का यथा स्थान उचित प्रयोग न किया जाये तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जैसे–
• रोको, मत जाने दो।
• रोको मत, जाने दो।
इस प्रकार विराम–चिह्नों से अर्थ एवं भाव में परिवर्तन होता है। लिखित भाषा की तरह कथित भाषा में भी विराम–चिह्न महत्त्वपूर्ण होते हैं।
वाक्य मेँ विराम–चिह्नों के प्रयोग से भाषा में स्पष्टता और सुंदरता आती है तथा भाव समझने में सुविधा होती है। यदि विराम–चिह्नों का यथा स्थान उचित प्रयोग न किया जाये तो अर्थ का अनर्थ हो जाता है। जैसे–
• रोको, मत जाने दो।
• रोको मत, जाने दो।
इस प्रकार विराम–चिह्नों से अर्थ एवं भाव में परिवर्तन होता है। लिखित भाषा की तरह कथित भाषा में भी विराम–चिह्न महत्त्वपूर्ण होते हैं।
महत्त्वपूर्ण विराम–चिह्न
1. अल्प विराम ( , )
2. अर्द्ध विराम ( ; )
3. पूर्ण विराम ( । )
4. प्रश्नवाचक चिह्न ( ? )
5. विस्मयसूचक चिह्न ( ! )
6. अवतरण या उद् धरण चिह्न :
(i) इकहरा ( ‘ ’ )
(ii) दुहरा ( “ ” )
7. योजक चिह्न ( - )
8. कोष्ठक चिह्नधारण ( ) { } [ ]
9. विवरण चिह्न ( :– )
10. लोप चिह्न ( ...... )
11. विस्मरण / हंसपद चिह्न ( ^ )
12. संक्षेप / लाघव चिह्न ( . ) / ( ० )
13. निर्देश चिह्न ( – )
14. तुल्यतासूचक चिह्न ( = )
15. संकेत चिह्न ( * )
16. अपूर्णता सूचक चिह्न (xxx)
2. अर्द्ध विराम ( ; )
3. पूर्ण विराम ( । )
4. प्रश्नवाचक चिह्न ( ? )
5. विस्मयसूचक चिह्न ( ! )
6. अवतरण या उद् धरण चिह्न :
(i) इकहरा ( ‘ ’ )
(ii) दुहरा ( “ ” )
7. योजक चिह्न ( - )
8. कोष्ठक चिह्नधारण ( ) { } [ ]
9. विवरण चिह्न ( :– )
10. लोप चिह्न ( ...... )
11. विस्मरण / हंसपद चिह्न ( ^ )
12. संक्षेप / लाघव चिह्न ( . ) / ( ० )
13. निर्देश चिह्न ( – )
14. तुल्यतासूचक चिह्न ( = )
15. संकेत चिह्न ( * )
16. अपूर्णता सूचक चिह्न (xxx)
17. समाप्ति सूचक चिह्न ( – ० –) / ( – : –)
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♦ विराम–चिह्नों का प्रयोग
1. अल्प विराम ( , ) अल्प विराम का अर्थ है, थोड़ी देर रुकना ठहरना। अंग्रेजी मेँ इसे ‘कोमा’ कहते हैं । इसके प्रयोग की निम्न स्थितियाँ हैँ–
(1) वाक्य में जब दो या दो से अधिक समान पदों पदंशों अथवा वाक्यों में संयोजक अव्यय ‘और’ की संभावना हो, वहाँ अल्प विराम का प्रयोग होता है। जैसे–
• पदों में — अर्जुन, भीम, सहदेव और कृष्ण ने भवन मेँ प्रवेश किया।
• वाक्यों में — राम रोज स्कूल जाता है, पढ़ता है और वापस घर चला जाता है।
उठकर, स्नानकर और खाना खाकर मोहन शहर गया।
यहाँ अल्प विराम द्वारा पार्थक्य को दर्शाया गया है।
(2) जहाँ शब्दों की पुनरावृत्ति
की जाए
और भावातिरेक
के कारण
उन पर
अधिक बल
दिया जाए।
जैसे–
• वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।
• सुनो, सुनो, वह गा रही है।
(3) समानाधिकरण शब्दों के बीच में। जैसे–
• विदेहराज की पुत्री वैदेही, राम की पत्नी थी।
(4) जब कई शब्द जोड़े से आते हैं, तब प्रत्येक जोड़े के बाद अल्प विराम लगता है। जैसे–
• संसार मेँ सुख और दुःख, रोना और हँसना, आना और जाना लगा ही रहता है।
(5) क्रिया विशेषण वाक्यांशोँ के साथ, जैसे–
• उसने गंभीर चिंतन के बाद, यह काम किया।
• यह बात, यदि सच पूछो तो, मैं भूल ही गया था।
(6) ‘हाँ’, ‘अस्तु’ के बाद। जैसे – • हाँ, आप जा सकते हैं ।
(7) ‘कि’ के अभाव में। जैसे – • मैँ जानता हूँ , कल तुम यहाँ नहीं थे।
(8) संज्ञा वाक्य के अलावा, मिश्र वाक्य के शेष बड़े उपवाक्योँ के बीच में। जैसे–
• यह वही पुस्तक है, जिसकी मुझे आवश्यकता है।
• क्रोध चाहे जैसा भी हो, मनुष्य को दुर्बल बनाता है।
(9) वाक्य के भीतर एक ही प्रकार के शब्दों को अलग करने में। जैसे–
• राम ने आम, अमरूद, केले आदि खरीदे।
(10) उद् धरण चिह्नों के पहले, जैसे– • उसने कहा, “मैं तुम्हें नहीं जानता।”
(11) समय सूचक शब्दों को अलग करने मेँ। जैसे– • कल गुरुवार, दिनांक 20 मार्च से परीक्षाएँ प्रारंभ होंगी।
(12) कभी–कभी सम्बोधन के बाद भी अल्प विराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे– • सीता, तुम आज भी स्कूल नहीं गई।
(13) पत्र मेँ अभिवादन, समापन के साथ। जैसे– • पूज्य पिताजी, • भवदीय, ।
2. अर्ध विराम ( ; )
अंग्रेजी मेँ इसे ‘सेमी कॉलन’ कहते हैं। अर्ध विराम का प्रयोग प्रायः विकल्पात्मक रूप मेँ ही होता है।
(1) जब अल्प विराम से अधिक तथा पूर्ण विराम से कम ठहरना पड़े तो अर्ध विराम का प्रयोग होता है। जैसे–
• अब खूब परिश्रम करो; परीक्षा सन्निकट है।
• शिक्षक ने मुझसे कहा; तुम पढ़ते नहीं हो।
• शिक्षा के क्षेत्र मेँ छात्राएँ बढ़ती गईं; छात्र पिछड़ते गए।
(2) जब संयुक्त वाक्यों के प्रधान वाक्यों में परस्पर संबंध नहीं रहता। जैसे–
• सोना बहुमूल्य धातु है; पर लोहे का भी कम महत्त्व नहीं है।
(3) उन पूरे वाक्यों के बीच में जो विकल्प के अंतिम समुच्चयबोधक द्वारा जोड़े जाते हैँ। जैसे–
• राम आया; उसने उसका स्वागत किया; उसके ठहरने की व्यवस्था की और उसे खिलाकर चला गया।
(4) एक प्रधान पर आश्रित अनेक उपवाक्योँ के बीच में। जैसे–
• जब तक हम गरीब हैं ; बलहीन हैं; दूसरे पर आश्रित हैं; तब तक हमारा कल्याण नहीं हो सकता।
• सूर्योदय हुआ; अंधकार दूर हुआ; पक्षी चहचहाने लगे और मैं प्रातः भ्रमण को चल पड़ा।
(5) विभिन्न उपवाक्यों पर अधिक जोर देने के लिए। जैसे– • मेहनत ही जीवन है; आलस्य ही मृत्यु है।
(6) मिश्र तथा संयुक्त वाक्यों में विपरीत अर्थ प्रकट करने या विरोधपूर्ण कथन प्रकट करने वाले उपवाक्यों के बीच में।
3. पूर्ण विराम ( । )
पूर्ण विराम का अर्थ है पूरी तरह से विराम लेना, अर्थात् जब वाक्य पूर्णतः अपना अर्थ स्पष्ट कर देता है तो पूर्ण विराम का
• वह दूर से, बहुत दूर से आ रहा है।
• सुनो, सुनो, वह गा रही है।
(3) समानाधिकरण शब्दों के बीच में। जैसे–
• विदेहराज की पुत्री वैदेही, राम की पत्नी थी।
(4) जब कई शब्द जोड़े से आते हैं, तब प्रत्येक जोड़े के बाद अल्प विराम लगता है। जैसे–
• संसार मेँ सुख और दुःख, रोना और हँसना, आना और जाना लगा ही रहता है।
(5) क्रिया विशेषण वाक्यांशोँ के साथ, जैसे–
• उसने गंभीर चिंतन के बाद, यह काम किया।
• यह बात, यदि सच पूछो तो, मैं भूल ही गया था।
(6) ‘हाँ’, ‘अस्तु’ के बाद। जैसे – • हाँ, आप जा सकते हैं ।
(7) ‘कि’ के अभाव में। जैसे – • मैँ जानता हूँ , कल तुम यहाँ नहीं थे।
(8) संज्ञा वाक्य के अलावा, मिश्र वाक्य के शेष बड़े उपवाक्योँ के बीच में। जैसे–
• यह वही पुस्तक है, जिसकी मुझे आवश्यकता है।
• क्रोध चाहे जैसा भी हो, मनुष्य को दुर्बल बनाता है।
(9) वाक्य के भीतर एक ही प्रकार के शब्दों को अलग करने में। जैसे–
• राम ने आम, अमरूद, केले आदि खरीदे।
(10) उद् धरण चिह्नों के पहले, जैसे– • उसने कहा, “मैं तुम्हें नहीं जानता।”
(11) समय सूचक शब्दों को अलग करने मेँ। जैसे– • कल गुरुवार, दिनांक 20 मार्च से परीक्षाएँ प्रारंभ होंगी।
(12) कभी–कभी सम्बोधन के बाद भी अल्प विराम का प्रयोग किया जाता है। जैसे– • सीता, तुम आज भी स्कूल नहीं गई।
(13) पत्र मेँ अभिवादन, समापन के साथ। जैसे– • पूज्य पिताजी, • भवदीय, ।
2. अर्ध विराम ( ; )
अंग्रेजी मेँ इसे ‘सेमी कॉलन’ कहते हैं। अर्ध विराम का प्रयोग प्रायः विकल्पात्मक रूप मेँ ही होता है।
(1) जब अल्प विराम से अधिक तथा पूर्ण विराम से कम ठहरना पड़े तो अर्ध विराम का प्रयोग होता है। जैसे–
• अब खूब परिश्रम करो; परीक्षा सन्निकट है।
• शिक्षक ने मुझसे कहा; तुम पढ़ते नहीं हो।
• शिक्षा के क्षेत्र मेँ छात्राएँ बढ़ती गईं; छात्र पिछड़ते गए।
(2) जब संयुक्त वाक्यों के प्रधान वाक्यों में परस्पर संबंध नहीं रहता। जैसे–
• सोना बहुमूल्य धातु है; पर लोहे का भी कम महत्त्व नहीं है।
(3) उन पूरे वाक्यों के बीच में जो विकल्प के अंतिम समुच्चयबोधक द्वारा जोड़े जाते हैँ। जैसे–
• राम आया; उसने उसका स्वागत किया; उसके ठहरने की व्यवस्था की और उसे खिलाकर चला गया।
(4) एक प्रधान पर आश्रित अनेक उपवाक्योँ के बीच में। जैसे–
• जब तक हम गरीब हैं ; बलहीन हैं; दूसरे पर आश्रित हैं; तब तक हमारा कल्याण नहीं हो सकता।
• सूर्योदय हुआ; अंधकार दूर हुआ; पक्षी चहचहाने लगे और मैं प्रातः भ्रमण को चल पड़ा।
(5) विभिन्न उपवाक्यों पर अधिक जोर देने के लिए। जैसे– • मेहनत ही जीवन है; आलस्य ही मृत्यु है।
(6) मिश्र तथा संयुक्त वाक्यों में विपरीत अर्थ प्रकट करने या विरोधपूर्ण कथन प्रकट करने वाले उपवाक्यों के बीच में।
3. पूर्ण विराम ( । )
पूर्ण विराम का अर्थ है पूरी तरह से विराम लेना, अर्थात् जब वाक्य पूर्णतः अपना अर्थ स्पष्ट कर देता है तो पूर्ण विराम का
प्रयोग होता
है या
जिस चिह्न
के प्रयोग
करने से
वाक्य के
पूर्ण हो
जाने का
ज्ञान होता
है, उसे
पूर्ण विराम
कहते हैँ।
अंग्रेजी मेँ
इसे ‘फुल
स्टॉप’ कहते
हैं। हिन्दी
मेँ इसका
प्रयोग सबसे
अधिक होता
है। पूर्ण
विराम का
प्रयोग निम्न
दशाओं में होता है–
(1) साधारण, मिश्र या संयुक्त वाक्य की समाप्ति पर। जैसे–
• उसने कहा था।
• राम स्कूल जाता है।
• प्रयाग मेँ गंगा–यमुना का संगम है।
• यदि राहुल पढ़ता, तो अवश्य उत्तीर्ण होता।
(2) प्रायः शीर्षक के अंत में भी पूर्ण विराम का प्रयोग होता है। जैसे–
• विद्यार्थी जीवन मेँ अनुशासन का महत्त्व।
• नारी और भारतीय समाज।
(3) अप्रत्यक्ष प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में पूर्ण विराम लगाया जाता है। जैसे–
• उसने बताया नहीँ कि वह कहाँ जा रहा है।
(4) काव्य में दोहा, सोरठा, चौपाई के चरणों के अंत में । जैसे–
• रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्राण जाय पर वचन न जाई।
(1) साधारण, मिश्र या संयुक्त वाक्य की समाप्ति पर। जैसे–
• उसने कहा था।
• राम स्कूल जाता है।
• प्रयाग मेँ गंगा–यमुना का संगम है।
• यदि राहुल पढ़ता, तो अवश्य उत्तीर्ण होता।
(2) प्रायः शीर्षक के अंत में भी पूर्ण विराम का प्रयोग होता है। जैसे–
• विद्यार्थी जीवन मेँ अनुशासन का महत्त्व।
• नारी और भारतीय समाज।
(3) अप्रत्यक्ष प्रश्नवाचक वाक्य के अंत में पूर्ण विराम लगाया जाता है। जैसे–
• उसने बताया नहीँ कि वह कहाँ जा रहा है।
(4) काव्य में दोहा, सोरठा, चौपाई के चरणों के अंत में । जैसे–
• रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्राण जाय पर वचन न जाई।
4. प्रश्नवाचक चिह्न ( ? )
प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग प्रश्न सूचक वाक्योँ के अन्त मेँ पूर्ण विराम के स्थान पर किया जाता है। इसका प्रयोग निम्न स्थितियों में किया जाता है–
(1) जहाँ लिखित या मौखिक प्रश्न पूछे जाएँ।
(2) जहाँ स्थिति निश्चित न हो।
(3) व्यंग्योक्तियोँ के लिए। जैसे–
• आप क्या कर रहे हो?
• कल आप कहाँ थे?
• आप शायद यू. पी. के रहने वाले हो?
• जहाँ भ्रष्टाचार है, वहाँ ईमानदारी कैसे रहेगी?
• इतने छात्र कैसे आ पाएँगे?
• विवाह मेँ अनिल, शानू एवं विनोद आए; पर तुम क्योँ नहीँ आये?
5. विस्मयादिबोधक चिह्न ( ! )
जब वाक्य मेँ हर्ष, विषाद, विस्मय, घृणा, आश्चर्य, करुणा, भय आदि भाव व्यक्त किए जायेँ तो वहाँ इस चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा आदर सूचक शब्दोँ, पदोँ और वाक्योँ के अन्त मेँ भी इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे–
(1) हर्ष सूचक – • वाह! खूब खेले। • शाबाश! तुमने गाँव का नाम रोशन कर दिया।
(2) करुणा सूचक– • हे ईश्वर! सबका भला करो। • हे प्रभु! मेरी रक्षा करो।
(3) घृणा सूचक– • छिः! कितनी गंदी बात कर रहा है। • दुष्ट को धिक्कार है !
(4) विषाद सूचक– • हाय राम! यह क्या हो गया।
प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग प्रश्न सूचक वाक्योँ के अन्त मेँ पूर्ण विराम के स्थान पर किया जाता है। इसका प्रयोग निम्न स्थितियों में किया जाता है–
(1) जहाँ लिखित या मौखिक प्रश्न पूछे जाएँ।
(2) जहाँ स्थिति निश्चित न हो।
(3) व्यंग्योक्तियोँ के लिए। जैसे–
• आप क्या कर रहे हो?
• कल आप कहाँ थे?
• आप शायद यू. पी. के रहने वाले हो?
• जहाँ भ्रष्टाचार है, वहाँ ईमानदारी कैसे रहेगी?
• इतने छात्र कैसे आ पाएँगे?
• विवाह मेँ अनिल, शानू एवं विनोद आए; पर तुम क्योँ नहीँ आये?
5. विस्मयादिबोधक चिह्न ( ! )
जब वाक्य मेँ हर्ष, विषाद, विस्मय, घृणा, आश्चर्य, करुणा, भय आदि भाव व्यक्त किए जायेँ तो वहाँ इस चिह्न (!) का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा आदर सूचक शब्दोँ, पदोँ और वाक्योँ के अन्त मेँ भी इसका प्रयोग किया जाता है। जैसे–
(1) हर्ष सूचक – • वाह! खूब खेले। • शाबाश! तुमने गाँव का नाम रोशन कर दिया।
(2) करुणा सूचक– • हे ईश्वर! सबका भला करो। • हे प्रभु! मेरी रक्षा करो।
(3) घृणा सूचक– • छिः! कितनी गंदी बात कर रहा है। • दुष्ट को धिक्कार है !
(4) विषाद सूचक– • हाय राम! यह क्या हो गया।
(5) विस्मय सूचक–
• सुनो! रमेश
पास हो
गया। • हैं ! क्या कह
रहे हो?
6. उद् धरण या अवतरण चिह्न
जब किसी कथन को ज्यों का त्यों उधृत किया जाता है तो उस कथन के दोनों ओर इसका प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे अवतरण चिह्न या उद् धरण चिह्न कहते हैं । इस चिह्न के दो रूप होते हैँ–
(i) इकहरा उद् धरण ( ‘ ’ )
जब किसी कवि का उपनाम, पुस्तक का नाम, पत्र–पत्रिका का नाम, लेख या कविता का शीर्षक आदि का उल्लेख करना हो तो इकहरे उद् धरण चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे–
• रामधारीसिँह ‘दिनकर’ ओज के कवि हैँ। • ‘निराला’ हिन्दी के प्रसिद्ध महाकवि हैँ।
• ‘भारत–भारती’ एक प्रसिद्ध काव्य रचना है। • ‘रामचरित मानस’ के रचयिता तुलसीदास हैँ।
• ‘राजस्थान पत्रिका’ एक प्रमुख समाचार–पत्र है। • ‘विजडन’ पत्रिका को क्रिकेट का बाइबिल कहा जाता है।
• ठीक ही कहा है, ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे’।
(ii) दुहरा उद्धरण ( “ ” )
जब किसी व्यक्ति या विद्वान तथा पुस्तक के अवतरण या वाक्य को ज्यों का त्यों उधृत किया जाए, तो वहाँ दुहरे उद् धरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
• महावीर जी ने कहा, “अहिँसा परमोधर्म।” • “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।”—तिलक।
• “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।”— सुभाषचंद्र बोस।
6. उद् धरण या अवतरण चिह्न
जब किसी कथन को ज्यों का त्यों उधृत किया जाता है तो उस कथन के दोनों ओर इसका प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसे अवतरण चिह्न या उद् धरण चिह्न कहते हैं । इस चिह्न के दो रूप होते हैँ–
(i) इकहरा उद् धरण ( ‘ ’ )
जब किसी कवि का उपनाम, पुस्तक का नाम, पत्र–पत्रिका का नाम, लेख या कविता का शीर्षक आदि का उल्लेख करना हो तो इकहरे उद् धरण चिह्न का प्रयोग होता है। जैसे–
• रामधारीसिँह ‘दिनकर’ ओज के कवि हैँ। • ‘निराला’ हिन्दी के प्रसिद्ध महाकवि हैँ।
• ‘भारत–भारती’ एक प्रसिद्ध काव्य रचना है। • ‘रामचरित मानस’ के रचयिता तुलसीदास हैँ।
• ‘राजस्थान पत्रिका’ एक प्रमुख समाचार–पत्र है। • ‘विजडन’ पत्रिका को क्रिकेट का बाइबिल कहा जाता है।
• ठीक ही कहा है, ‘उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे’।
(ii) दुहरा उद्धरण ( “ ” )
जब किसी व्यक्ति या विद्वान तथा पुस्तक के अवतरण या वाक्य को ज्यों का त्यों उधृत किया जाए, तो वहाँ दुहरे उद् धरण चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
• महावीर जी ने कहा, “अहिँसा परमोधर्म।” • “स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है।”—तिलक।
• “तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा।”— सुभाषचंद्र बोस।
7. योजक चिह्न (-)
अंग्रेजी मेँ प्रयुक्त हाइफन (-) को हिन्दी में योजक चिह्न कहते हैं। इसे समास चिह्न भी कहते हैँ। हिन्दी में अधिकतर इस चिह्न (-) के स्थान पर डेश (–) का प्रयोग प्रचलित है। यह चिह्न सामान्यतः दो पदों को जोड़ता है और दोनों को मिलाकर एक समस्त पद बनाता है लेकिन दोनों का स्वतंत्र अस्तित्व बना रहता है। इसका प्रयोग निम्न स्थितियों में होता है –
(1) दो शब्दों को जोड़ने के लिए तथा द्वंद्व एवं तत्पुरुष समास में। जैसे– • सुख-दुःख, माता-पिता, प्रेम-सागर।
(2) पुनरुक्त शब्दोँ के बीच में । जैसे– • धीरे-धीरे, डाल-डाल, पात-पात।
(3) तुलना वाचक सा, सी, से के पहले लगता है। जैसे– • तुम-सा, भरत-सा भाई, यशोदा-सी माता।
(4) शब्दों में लिखी जाने वाली संख्याओं के बीच। जैसे– • एक-तिहाई, एक-चौथाई आदि।
8. कोष्ठक चिह्न ( )
किसी की बात को और स्पष्ट करने के लिए इसका प्रयोग किया जाता है। कोष्ठक में लिखा गया शब्द प्रायः विशेषण होता है। इस चिह्न का प्रयोग–
(1) वाक्य में प्रयुक्त किसी पद का अर्थ स्पष्ट करने हेतु। जैसे–
• धर्मराज (युधिष्ठिर) पांडवों के अग्रज थे।
• डॉ. राजेंद्र प्रसाद (भारत के प्रथम राष्ट्रपति) बेहद सादगी पसंद थे।
(2) नाटक या एकांकी में पात्र के अभिनय के भावों को प्रकट करने के लिए। जैसे–
• राम – (हँसते हुए) अच्छा जाइए।
• नल – (खिन्न होकर) और मेरे दुर्भाग्य ! तूने दमयंती को मेरे साथ बाँधकर उसे भी जीवन-भर कष्ट दिया।
9. विवरण चिह्न (:–)
इसे अंग्रेजी मेँ ‘कॉलन एंड डेश’ कहते हैँ। किसी की कही हुई बात को स्पष्ट करने के लिए या उसका विवरण प्रस्तुत करने के लिए वाक्य के अंत में इसका प्रयोग होता है। जैसे–
• पुरुषार्थ चार हैं :– धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
• क्रिया के दो भेद हैं :– सकर्मक और अकर्मक।
10. लोप सूचक चिह्न (....)
जहाँ किसी वाक्य या कथन का कुछ अंश छोड़ दिया जाता है, वहाँ इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
• मैं तो परिणाम भोग रहा हूँ, कहीं आप......।
• तुम्हारा सब काम करूँगा....। ..... बोलो, बड़ी माँ.....।
11. विस्मरण चिह्न ( ^ )
इसे हंस पद या त्रुटिपूरक चिह्न भी कहते हैँ। जब किसी वाक्य या वाक्यांश मेँ कोई शब्द लिखने से छूट जाये तो छूटे हुए शब्द के स्थान के नीचे इस चिह्न का प्रयोग कर छूटे हुए शब्द या अक्षर को ऊपर लिख देते हैं। जैसे–
मेरा
•भारत ^ देश है।
12. संक्षेप चिह्न या लाघव चिह्न ( ० )
किसी बड़े शब्द को संक्षेप मेँ लिखने हेतु उस शब्द का प्रथम अक्षर लिखकर उसके आगे यह चिह्न लगा देते हैं। प्रसिदधि के कारण लाघव चिह्न होते हुए भी वह पूर्ण शब्द पढ़ लिया जाता है। जैसे–
• राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय – रा०उ०मा०वि०। • प्राध्यापक – प्रा०। • डॉक्टर – डॉ०।
• पंडित – पं०। • मास्टर ऑफ आर्टस – एम०ए०।
13. निर्देशक चिह्न (–)
13. निर्देशक चिह्न (–)
अंग्रेजी में इसे ‘डैश’ कहते हैं। यह चिह्न योजक चिह्न (-) से बड़ा होता है। इस चिह्न के दो रूप हैं –
1. (–)
2. (—)। इसका प्रयोग निम्न अवसरों पर होता है–
(1) उद्धृत वाक्य के पहले। जैसे–
• उसने कहा–“मैं नहीं जाऊँगा।”
(2) किसी विषय के साथ तत्संबंधी अन्य बातों की सूचना देने में। जैसे–
• साहित्य के दो भाग हैं — गद्य और पद्य।
(3) समानाधिकरण शब्दों, वाक्यांशों अथवा वाक्यों के बीच में। जैसे–
• आँगन में ज्योत्सना–चाँदनी–छिटकी हुई थी।
(4) लेख के नीचे लेखक या पुस्तक के नाम के पहले। जैसे–
• रघुकुल रीति सदा चलि आई –तुलसी।
(5) जहाँ विचारधारा में व्यतिक्रम पैदा हो। जैसे–
• कौन–कौन उत्तीर्ण हो जाएँगे – समझ मैं नहीं आता।
14. तुल्यतासूचक चिह्न (=)
समानता या बराबरी बताने के लिए या मूल्य अथवा अर्थ का ज्ञान कराने के लिए इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। जैसे–
• अनल = अग्नि। • एक किलो = 1000 ग्राम।
15. संकेत चिह्न ( * )
जब कोई नियम या मुख्य बतानी हो तो उसके पहले संकेत चिह्न लगा देते हैं। जैसे–
• स्वास्थ्य संबंधी निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए–
* प्रातःकाल उठना चाहिए।
* भ्रमण के लिए जाना चाहिए।
16. अपूर्णता सूचक चिह्न ( xxx)
किसी अध्याय अथवा गद्यांश लेखन करते वक्त यदि एक पन्ने पर लिखकर यदि अधूरा रह जाता है और उसे अगले पन्ने पर लिखा जाता है तो ऐसे समय पूर्व पन्ने की अंतिम पंक्ति पर इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है।यह चिह्न कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
जैसे– ( xxx)
17. समाप्ति सूचक चिह्न या इतिश्री चिह्न (–०–)–
किसी अध्याय या ग्रन्थ की समाप्ति पर इस चिह्न का प्रयोग किया जाता है। यह चिह्न कई रूपों में प्रयोग किया जाता है।
जैसे– (– :: –),
(—x—x—),
(* * *),
(♦♦♦),
(–:०:–),
(◊◊◊) आदि।
*************
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे
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