विकारी (सव्यय) शब्द
वह शब्द जो
लिंग, वचन, कारक
आदि से विकृत
हो जाते हैं
विकारी शब्द होते
हैं।
जैसे- मैं→ मुझ→
मुझे→ मेरा, अच्छा→
अच्छे आदि।
&
संज्ञा:
प्राणी, वस्तु व्यक्ति, स्थान
अथवा भाव के
नाम को संज्ञा
कहते हैं।
&
सर्वनाम:
सर्वनाम वे शब्द हैं
जो संज्ञा के
स्थान पर वाक्य
में आते हैं। इससे
संज्ञा की अधिक
पुनरावृत्ति नहीं होती
है।
&
विशेषण:
संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता
बताने वाले शब्द
विशेषण कहलाते हैं।
&
क्रिया:
क्रिया वह शब्द है,
जिससे किसी कार्य
के करने या
होने का बोध
हो।
किसी व्यक्ति,
स्थान, वस्तु आदि तथा
नाम के गुण,
धर्म, स्वभाव का
बोध कराने वाले
शब्द को संज्ञा
कहते हैं। जैसे
- श्याम, आम, मिठास,
हाथी आदि।
संज्ञा
भेद -
1)
व्यक्तिवाचक संज्ञा।
2)
जातिवाचक संज्ञा।
3)
भाववाचक संज्ञा।
4)
समुदायवाचक संज्ञा।
5)
द्रव्यवाचक संज्ञा।
व्यक्तिवाचक संज्ञा
जिस
संज्ञा शब्द से
किसी विशेष, व्यक्ति,
प्राणी, वस्तु अथवा स्थान
का बोध हो
उसे व्यक्तिवाचक संज्ञा
कहते हैं।
जैसे - जयप्रकाश नारायण,
श्रीकृष्ण, रामायण, ताजमहल, क़ुतुबमीनार,
लालक़िला, हिमालय आदि।
व्यक्तिवाचक संज्ञा
को
निम्नलिखित
रूपों
से
समझा
जा
सकता
है
:
o
व्यक्तियों
के नाम : राम,घनश्याम, कपिल, मोहन,
सीता, कमला |
o
देशों
के नाम : भारत,
अमेरिका, पाकिस्तान, चीन |
o
नदियों
व समुद्रों नाम
: गंगा, यमुना, सरस्वती, हिन्द
महासगर, प्रशांत महासागर |
o
पर्वतों
के नाम : हिमालय,
विन्ध्याचल |
o
नगर
व सड़क के
नाम : आगरा, मथुरा,
चांदनी चौक, देल्ही
गेट |
o
पुस्तकों
के नाम : रामचरितमानस,
अष्टाध्यायी |
o
त्योहारों
के नाम : होली,
दीपावली, ईद |
o
दिशाओं
के नाम : पूर्व,
पश्चिम, उत्तर, दक्षिण |
o
दिन
व महीनों के
नाम : सोमवार, शनिवार,
जनवरी, दिसंबर |
जातिवाचक संज्ञा
जिस
संज्ञा शब्द से
उसकी संपूर्ण जाति
का बोध हो
उसे जातिवाचक संज्ञा
कहते हैं।
जैसे - मनुष्य, नदी,
नगर, पर्वत, पशु,
पक्षी, लड़का, कुत्ता, गाय,
घोड़ा, भैंस, बकरी, नारी,
गाँव आदि।
जातिवाचक संज्ञा को
निम्नलिखित रूपों से समझा
जा सकता है
:
o
वस्तुओं
के नाम : कंप्यूटर,
किताब, कलम, दरवाजा,
कुर्सी |
o
प्राकृतिक
तत्वों के नाम
: ज्वालामुखी, भूकंप, वर्षा
o
पशु
पक्षियों के नाम
: हिरन, कुत्ता, कोयल, मोर
o
सगे
सम्बन्धियों के नाम
: भाई, पिताजी, बुआ, मामा
o
व्यवसायों
व पदो के
नाम : राज मिस्त्री,
दर्जी, अध्यापक,पुलिस
भाववाचक संज्ञा
जिस
संज्ञा शब्द से
पदार्थों की अवस्था,
गुण-दोष, धर्म
आदि का बोध
हो उसे भाववाचक
संज्ञा कहते हैं।
जैसे - बुढ़ापा, मिठास,
बचपन, मोटापा, चढ़ाई,
थकावट आदि।
भाववाचक
संज्ञा का निर्माण
:
विशेषण के अंत
में ई, पन,
हट, वा, पर,
स प्रत्यय जोड़कर
और संस्कृत की
धातु के अंत
में त्व, ता
जोड़कर भाववाचक संज्ञा
का निर्माण किया
जा सकता है
|
उदाहरण
:
o
संज्ञा
से : बच्चा से
बचपन, शैतान से
शैतानी, मानव से
मानवता
o
सर्वनाम
से : अपना से
अपनापन, पराया से परायापन,
निज से निजत्व
o
विशेषण
से : अच्छा से
अच्छाई, नीच से
नीचता, बड़ा से
बड़प्पन
o
क्रिया
से : दौड़ना से
दौड़, धोना से
धुलाई, पढना से
पढाई
समुदायवाचक संज्ञा
जिन संज्ञा
शब्दों से व्यक्तियों,
वस्तुओं आदि के
समूह का बोध
हो उन्हें समुदायवाचक
संज्ञा कहते हैं।
जैसे - सभा, कक्षा,
सेना, भीड़, पुस्तकालय,
दल, परिवार, सभा, कक्षा आदि।
द्रव्यवाचक संज्ञा
जिन संज्ञा-शब्दों से किसी
धातु, द्रव्य आदि
पदार्थों का बोध
हो उन्हें द्रव्यवाचक
संज्ञा कहते हैं।
जैसे - घी, दूध, पानी, घी, तेल,
सोना, चाँदी, पीतल,
चावल, गेहूँ, कोयला,
लोहा आदि।
भाववाचक संज्ञा
बनाना
भाववाचक
संज्ञाएँ चार प्रकार के शब्दों से बनती हैं। जैसे-
1. जातिवाचक संज्ञा से
पंडित = पांडित्य
बंधु = बंधुत्व
क्षत्रिय = क्षत्रियत्व
पुरुष = पुरुषत्व
प्रभु
= प्रभुता
पशु
= पशुता,पशुत्व
ब्राह्मण
= ब्राह्मणत्व
मित्र
= मित्रता
2. सर्वनाम से संज्ञा बनाना
निज = निजत्व,निजता
पराया = परायापन
स्व
= स्वत्व
सर्व
= सर्वस्व
मीठा = मिठास
चतुर = चातुर्य, चतुराई
मधुर
= माधुर्य
सुंदर
= सौंदर्य, सुंदरता
खेलना = खेल थकना
= थकावट
लिखना = लेख हँसना
= हँसी
2. सर्वनाम
संज्ञा के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले शब्द
को सर्वनाम कहते हैं। संज्ञा की पुनरुक्ति न करने के लिए सर्वनाम का प्रयोग किया जाता
है। जैसे - मैं, तू, तुम, आप, वह, वे आदि।
सर्वनाम के भेद
सर्वनाम के छह
प्रकार के भेद
हैं-
1)
पुरुषवाचक सर्वनाम।
2)
निश्चयवाचक सर्वनाम।
3)
अनिश्चयवाचक सर्वनाम।
4)
संबंधवाचक सर्वनाम।
5)
प्रश्नवाचक सर्वनाम।
6)
निजवाचक सर्वनाम।
जिस सर्वनाम
का प्रयोग वक्ता
या लेखक द्वारा
स्वयं अपने लिए
अथवा किसी अन्य
के लिए किया
जाता है, वह
'पुरुषवाचक सर्वनाम' कहलाता है।
पुरुषवाचक सर्वनाम तीन प्रकार
के होते हैं-
उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम
का प्रयोग बोलने
वाला स्वयं के
लिए करता है,
उसे उत्तम पुरुषवाचक
सर्वनाम कहा जाता
हैं। जैसे
- मैं,
मुझे, मेरा, मुझको, हम, हमें, हमारा, हमको आदि।
मध्यम पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस
सर्वनाम का प्रयोग
बोलने वाला श्रोता
के लिए करे,
उसे मध्यम पुरुषवाचक
सर्वनाम कहते हैं।जैसे - तू, तुझे, तेरा, तुम, तुम्हे,
तुम्हारा आदि।
आदर सूचक : आप, आपको, आपका, आप लोग, आप लोगों को आदि
।
अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम- जिस सर्वनाम
का प्रयोग बोलने
वाला श्रोता के
अतिरिक्त किसी अन्य
पुरुष के लिए
करे, उसे अन्य पुरुषवाचक सर्वनाम कहते
हैं। जैसे-
वह,
उसने,
उसको,
उसका,
उसे,
उसमें,
वे,
इन्होने,
उनको,
उनका,
उन्हें,
उनमें
आदि।
2. निश्चयवाचक
सर्वनाम
जो (शब्द)सर्वनाम किसी व्यक्ति,
वस्तु आदि की
ओर निश्चयपूर्वक संकेत
करें वे निश्चयवाचक
सर्वनाम कहलाते हैं।
जैसे- यह, वह, ये, वे आदि।
उदाहरण
-
&
यह
पुस्तक सोनी की
है।
&
ये
पुस्तकें रानी की
हैं।
&
वह
सड़क पर कौन
आ रहा है।
&
वे
सड़क पर कौन
आ रहे हैं।
&
यह
मेरी घडी है
।
&
वह
एक लड़का है
।
&
वे
इधर ही आ
रहे हैं ।
3. अनिश्चयवाचक सर्वनाम
जिन सर्वनाम
शब्दों के द्वारा
किसी निश्चित व्यक्ति
अथवा वस्तु का
बोध न हो
वे अनिश्चयवाचक सर्वनाम
कहलाते हैं। जैसे- ‘कोई’ और
‘कुछ’ आदि सर्वनाम
शब्द। इनसे किसी
विशेष व्यक्ति अथवा
वस्तु का निश्चय
नहीं हो रहा
है। अतः ऐसे
शब्द अनिश्चयवाचक सर्वनाम
कहलाते हैं।
जैसे
: कुछ, किसी ने
(किसने), किसी को,
किन्ही ने, कोई,
किन्ही को ।
उदाहरण -
·
लस्सी
में कुछ पड़ा
है ।
·
भिखारी
को कुछ दे
दो ।
·
कौन
आ रहा है
।
·
राम
को किसने बुलाया
है ।
·
शायद
किसी ने घंटी
बजायी है ।
·
द्वार
पर कोई खड़ा
है।
·
कुछ
पत्र देख लिए
गए हैं और
कुछ देखने हैं।
4. संबंधवाचक सर्वनाम
परस्पर सबंध बतलाने
के लिए जिन
सर्वनामों का प्रयोग
होता है उन्हें
संबंधवाचक सर्वनाम कहते हैं।
जैसे- जो-सो, जहाँ-वहाँ, जैसा-वैसा,
जौन-तौन, जो, वह,
जिसकी,
उसकी,
जैसा,
वैसा
आदि।
उदाहरण
-
·
जहाँ चाह
वहाँ राह ।
·
जैसा बोओगे
वैसा काटोगे ।
·
वह कौन
है जो रो पड़ा ।
·
जो सो
गया वो खो गया ।
·
जो करेगा
सो भरेगा ।
·
जो
सोयेगा, सो खोयेगा;
जो जागेगा, सो
पावेगा।
·
जैसी
करनी, तैसी पार
उतरनी
जो सर्वनाम
संज्ञा शब्दों के स्थान
पर भी आते
है और वाक्य
को प्रश्नवाचक भी
बनाते हैं, वे
प्रश्नवाचक सर्वनाम कहलाते हैं। जैसे-
कौन,
कहाँ, क्या, कैसे आदि।
उदाहरण
-
·
रमेश क्या
खा रहा है?
·
कमरे मैं
कौन बैठा है?
·
वे कल
कहाँ गए थे?
·
आप कैसे
हो?
·
तुम्हारे
घर कौन आया
है?
·
दिल्ली
से क्या मँगाना
है?
6. निजवाचक सर्वनाम
जहाँ स्वयं
के लिए ‘आप’,
‘अपना’ अथवा ‘अपने’, ‘आप’
शब्द का प्रयोग
हो वहाँ निजवाचक
सर्वनाम होता है।
इनमें ‘अपना’ और
‘आप’ शब्द उत्तम,
पुरुष मध्यम पुरुष
और अन्य पुरुष
के (स्वयं का)
अपने आप का
ज्ञान करा रहे शब्द हें
जिन्हें निजवाचक सर्वनाम कहते
हैं।
जैसे :स्वयं, आप
ही,
खुद,
अपने
आप ।
v महत्त्वपूर्ण
जहाँ ‘आप’ शब्द का प्रयोग श्रोता के लिए हो वहाँ यह आदर-सूचक मध्यम पुरुष होता है और जहाँ ‘आप’ शब्द का प्रयोग अपने लिए हो वहाँ निजवाचक होता है।
जहाँ ‘आप’ शब्द का प्रयोग श्रोता के लिए हो वहाँ यह आदर-सूचक मध्यम पुरुष होता है और जहाँ ‘आप’ शब्द का प्रयोग अपने लिए हो वहाँ निजवाचक होता है।
उदाहरण
& श्यामा आप ही दिल्ली चली गई।
& राधा अपनी सहेली के घर गई है।
& सीता ने अपना मकान बेच दिया है।
v सर्वनाम शब्दों के विशेष प्रयोग
आप,वे,ये,हम,तुम शब्द बहुवचन के रूप में हैं,किंतु
आदर प्रकट करने के लिए इनका प्रयोग एक व्यक्ति के लिए भी किया जाता है। ‘आप’ शब्द स्वयं के अर्थ में
भी प्रयुक्त हो जाता है। जैसे- मैं यह कार्य आप ही कर लूँगा।
v
महत्त्वपूर्ण
कुछ सर्वनाम शब्द ऐसे भी होते हैं जिन्हें संयुक्त
सर्वनाम की कोटि में रखा गया हैं ।
जैसे: जो कोई, सब कोई, कुछ और, कोई न कोई ।
उदाहरण -
·
जो कोई
आए उसे रोक लो ।
·
जाओ, वहाँ
कोई न कोई तो मिल ही जायेगा ।
·
देखो,
कुछ और लोग वहाँ हैं ।
·
कोई-कोई
तो बिना बात बहस करता है ।
·
कौन-कौन
आ रहा है ।
·
किस-किस
कमरे में छात्र पढ़ रहे है ।
·
अपना-अपना
बस्ता उठाओ और घर जाओ ।
·
अब कुछ-कुछ
याद आ रहा है ।
3. विशेषण
संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों की विशेषता (गुण,
दोष, संख्या, परिमाण आदि) बताने वाले शब्द ‘विशेषण’ कहलाते हैं। जैसे - बड़ा, काला, लंबा, दयालु,
भारी, सुन्दर, कायर, टेढ़ा-मेढ़ा, एक, दो आदि।
विशेष्य
जिस संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्द की विशेषता बताई
जाए वह विशेष्य कहलाता है। यथा- गीता सुंदर
है।
इसमें ‘सुंदर' विशेषण है और ‘गीता’ विशेष्य है। विशेषण शब्द
विशेष्य से पूर्व भी आते हैं और उसके बाद भी।पूर्व में, जैसे-
v
थोड़ा-सा
जल लाओ।
v
एक मीटर
कपड़ा ले आना।
बाद में, जैसे-
v
यह रास्ता
लंबा है।
v
खीरा कड़वा
है।
विशेषण के भेद
विशेषण के चार भेद हैं-
1.
गुणवाचक।
2.
परिमाणवाचक।
3.
संख्यावाचक।
4.
संकेतवाचक अथवा सार्वनामिक।
जिन विशेषण शब्दों से संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों
के गुण-दोष का बोध हो वे गुणवाचक विशेषण कहलाते हैं। जैसे-
·
बगीचे
में सुंदर फूल हैं।
·
धरमपुर
स्वच्छ नगर है।
·
स्वर्गवाहिनी गंदी नदी है।
·
स्वस्थ बच्चे खेल रहे हैं।
·
गाय का
रंग सफ़ेद है ।
·
मंजू का
घर पुराना हैं ।
·
वे लड़के
झूठ बोलते हैं ।
·
मोहन बहुत
मोटा लड़का हैं ।
उपर्युक्त वाक्यों में सुंदर, स्वच्छ, गंदी और
स्वस्थ शब्द गुणवाचक विशेषण हैं। गुण का अर्थ अच्छाई ही नहीं, किंतु कोई भी विशेषता।
अच्छा, बुरा, खरा, खोटा सभी प्रकार के गुण इसके अंतर्गत आते हैं।
Ø
समय संबंधी- नया, पुराना, ताजा, वर्तमान, भूत, भविष्य,
अगला, पिछला आदि।
Ø
स्थान संबंधी- लंबा, चौड़ा, ऊँचा, नीचा, सीधा, बाहरी, भीतरी
आदि।
Ø
आकार संबंधी- गोल. चौकोर, सुडौल, पोला, सुंदर आदि।
Ø
दशा संबंधी- दुबला, पतला, मोटा, भारी, गाढ़ा, गीला, गरीब,
पालतू आदि।
Ø
वर्ण संबंधी- लाल, पीला, नीला, हरा, काला, बैंगनी, सुनहरी
आदि।
Ø
गुण संबंधी- भला, बुरा, उचित, अनुचित, पाप, झूठ आदि।
Ø
संज्ञा संबंधी- मुंबईया, बनारसी, लखनवी आदि।
Ø
भाव संबंधी- अच्छा, बुरा, कायर, वीर, डरपोक आदि।
Ø
समय संबंधी- अगला, पिछला, दोपहर, संध्या, सवेरा आदि।
Ø
दिशा संबंधी- उत्तरी, दक्षिणी, पूर्वी, पश्चिमी आदि।
2. संख्यावाचक विशेषण
जिन विशेषण
शब्दों से संज्ञा
या सर्वनाम की
संख्या का बोध
हो वे संख्यावाचक
विशेषण कहलाते हैं।
जैसे - एक, दो,
द्वितीय, दुगुना, चौगुना, पाँचों
आदि।
v
मेरे पास
दस किताब हैं ।
v
मंजू के
चार मित्र हैं ।
v
कई लोग
वहाँ पर हैं ।
v
कुछ छात्र
आज विद्यालय नहीं आये।
संख्यावाचक
विशेषण के दो
उपभेद हैं-
v
निश्चित संख्यावाचक विशेषण
जिन
विशेषण शब्दों से निश्चित
संख्या का बोध
हो। जैसे - दो
पुस्तकें मेरे लिए
ले आना।
निश्चित
संख्यावाचक- जैसे, एक, पाँच, सात, बारह, तीसरा, आदि।
निश्चित
संख्यावाचक के छः भेद हैं-
1. पूर्णांक बोधक-
जैसे, एक, दस, सौ, हजार, लाख आदि।
2. अपूर्णांक बोधक-,
जैसे, पौना, सवा, डेढ, ढाई आदि।
3. क्रमवाचक-
जैसे, दूसरा, चौथा, ग्यारहवाँ, पचासवाँ आदि।
4. आवृत्तिवाचक-
जैसे, दुगुना, तिगुना, दसगुना आदि।
5. समूहवाचक-,
जैसे, तीनों, पाँचों, आठों आदि।
6. प्रत्येक बोधक-
जैसे, प्रति, प्रत्येक, हरेक, एक-एक आदि।
v अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण
जिन विशेषण
शब्दों से निश्चित
संख्या का बोध
न हो। जैसे-कुछ बच्चे
पार्क में खेल
रहे हैं। अनिश्चित संख्यावाचक- जैसे,
कई, अनेक, सब,
बहुत आदि।
1. सारे आम सड़
गए।
2. पुस्तकालय
में असंख्य पुस्तकें हैं।
3. लंका में अनेक महल जल
गए।
4. सुनामी
में बहुत सारे
लोग मारे गए।
3. परिमाणवाचक विशेषण
जिन
विशेषण शब्दों से संज्ञा या सर्वनाम की मात्रा अथवा नाप-तोल का ज्ञान हो वे परिमाणवाचक विशेषण कहलाते हैं। परिमाणवाचक विशेषण
के दो उपभेद है-
v निश्चित परिमाणवाचक विशेषण-
जिन विशेषण शब्दों से वस्तु की निश्चित मात्रा
का ज्ञान हो। जैसे-
(क) मेरे सूट में साढ़े तीन मीटर कपड़ा लगेगा।
(ख) दस
किलो चीनी ले आओ।
(ग)
दो लिटर दूध गरम करो।
निश्चित परिमाण-बोधकः
जैसे, दो सेर गेहूँ, पाँच मीटर कपड़ा, एक लीटर दूध आदि।
v अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण-
जिन विशेषण शब्दों से वस्तु की अनिश्चित मात्रा
का ज्ञान हो। जैसे-
(क) थोड़ी-सी
नमकीन वस्तु ले आओ।
(ख) कुछ
आम दे दो।
(ग) थोड़ा-सा
दूध गरम कर दो।
अनिश्चित परिमाण-बोधकः
जैसे, थोड़ा पानी और अधिक काम, कुछ परिश्रम आदि।
4. सार्वनामिक / संकेतवाचक
विशेषण
जो सर्वनाम
संकेत द्वारा संज्ञा
या सर्वनाम की
विशेषता बतलाते हैं वे
संकेतवाचक विशेषण कहलाते हैं।
विशेष - क्योंकि संकेतवाचक
विशेषण सर्वनाम शब्दों से
बनते हैं, अतः
ये सार्वनामिक विशेषण
कहलाते हैं।
इन्हें निर्देशक भी
कहते हैं।
v
वह आदमी व्यवहार
से कुशल है।
v
कौन छात्र मेरा
काम करेगा?
v
यह किताब हिंदी
व्याकरण की है
।
v
वह आदमी घर
जा रहा है
।
v
ये किताब किसकी
है ।
v
वह लड़का बहुत
होशियार है ।
उपर्युक्त वाक्यों में
वह और कौन
शब्द सार्वनामिक विशेषण
हैं। पुरूषवाचक और
निजवाचक सर्वनामों को छोड़
बाकी सभी सर्वनाम
संज्ञा के साथ
प्रयुक्त होकर सार्वनामिक
विशेषण बन जाते
हैं। जैसे-
1. निश्चयवाचक सार्वनामिक विशेषण -
यह
मूर्ति, ये
मूर्तियाँ, वह
मूर्ति, वे मूर्तियाँ आदि।
2. अऩिश्चयवाचक सार्वनामिक विशेषण -
कोई
व्यक्ति, कोई लड़का, कुछ लाभ आदि।
3. प्रश्नवाचक सार्वनामिक विशेषण
-
कौन
आदमी? कौन लौग?, क्या काम?, क्या सहायता? आदि।
4. संबंधवाचक सार्वनामिक विशेषण - जो
पुस्तक, जो लड़का, जो वस्तुएँ आदि।
परिमाणवाचक और संख्यावाचक विशेषण में अंतर
&
जिन
वस्तुओं की नाप-तोल की
जा सके उनके
वाचक शब्द परिमाणवाचक
विशेषण कहलाते हैं। जैसे-‘कुछ दूध
लाओ’। इसमें
‘कुछ’ शब्द तोल
के लिए आया
है। इसलिए यह
परिमाणवाचक विशेषण है।
&
जिन
वस्तुओं की गिनती
की जा सके
उनके वाचक शब्द
संख्यावाचक विशेषण कहलाते हैं।
जैसे-कुछ बच्चे
इधर आओ। यहाँ
पर ‘कुछ’ बच्चों
की गिनती के
लिए आया है।
इसलिए यह संख्यावाचक
विशेषण है। परिमाणवाचक
विशेषणों के बाद
द्रव्य अथवा पदार्थवाचक
संज्ञाएँ आएँगी जबकि संख्यावाचक
विशेषणों के बाद
जातिवाचक संज्ञाएँ आती हैं।
&
सर्वनाम
और सार्वनामिक विशेषण
में अंतरजिस शब्द
का प्रयोग संज्ञा
शब्द के स्थान
पर हो उसे
सर्वनाम कहते हैं।
जैसे-वह मुंबई
गया। इस वाक्य
में वह सर्वनाम
है। जिस शब्द
का प्रयोग संज्ञा
से पूर्व अथवा
बाद में विशेषण
के रूप में
किया गया हो
उसे सार्वनामिक विशेषण
कहते हैं। जैसे-वह रथ
आ रहा है।
इसमें वह शब्द
रथ का विशेषण
है। अतः यह
सार्वनामिक विशेषण है।
विशेषण की अवस्थाएँ
विशेषण शब्द किसी
संज्ञा या सर्वनाम
की विशेषता बतलाते
हैं। विशेषता बताई
जाने वाली वस्तुओं
के गुण-दोष
कम-ज़्यादा होते
हैं। गुण-दोषों
के इस कम-ज़्यादा होने को
तुलनात्मक ढंग से
ही जाना जा
सकता है। तुलना
की दृष्टि से
विशेषणों की निम्नलिखित
तीन अवस्थाएँ होती
हैं-
& मूलावस्था
& उत्तरावस्था
& उत्तमावस्था
मूलावस्था
मूलावस्था में विशेषण
का तुलनात्मक रूप
नहीं होता है।
वह केवल सामान्य
विशेषता ही प्रकट
करता है। जैसे-
o
सावित्री
सुंदर लड़की है।
o
सुरेश
अच्छा लड़का है।
o
सूर्य
तेजस्वी है।
उत्तरावस्था
जब दो
व्यक्तियों या वस्तुओं
के गुण-दोषों
की तुलना की
जाती है तब
विशेषण उत्तरावस्था में प्रयुक्त
होता है। जैसे-
o
रवीन्द्र
चेतन से अधिक
बुद्धिमान है।
o
सविता
रमा की अपेक्षा
अधिक सुन्दर है।
उत्तमावस्था
उत्तमावस्था में दो
से अधिक व्यक्तियों
एवं वस्तुओं की
तुलना करके किसी
एक को सबसे
अधिक अथवा सबसे
कम बताया गया है।
जैसे-
·
पंजाब
में अधिकतम अन्न
होता है।
·
संदीप
निकृष्टतम बालक है।
विशेष – केवल गुणवाचक
एवं अनिश्चित संख्यावाचक
तथा निश्चित परिमाणवाचक
विशेषणों की ही
ये तुलनात्मक अवस्थाएँ
होती हैं,
अन्य विशेषणों की
नहीं।
4. क्रिया
जिस शब्द अथवा शब्द-समूह के द्वारा किसी
कार्य के होने अथवा किये जाने का बोध हो उसे क्रिया
कहते हैं। जैसे-
ü
सीता
'नाच रही है'।
ü
बच्चा
दूध 'पी रहा है'।
ü
सुरेश
कॉलेज 'जा रहा है'।
ü
मीरा
'बुद्धिमान है'।
ü
शिवा जी
बहुत 'वीर' थे।
इनमें ‘नाच रही है’, ‘पी रहा है’, ‘जा रहा है’ शब्दों से कार्य-व्यापार
का बोध हो रहा हैं।
इन सभी शब्दों से किसी कार्य के करने अथवा होने
का बोध हो रहा है। अतः ये क्रियाएँ हैं।
क्रिया धातु -
क्रिया
का मूल रूप धातु कहलाता है।
जैसे
- लिख, पढ़, जा, खा, गा, रो, आदि।
इन्हीं
धातुओं से लिखता, पढ़ता, आदि क्रियाएँ बनती हैं।
क्रिया के भेद -
v
कर्म प्रधानता
के आधार पर -
&
1. अकर्मक
क्रिया।
&
2. सकर्मक
क्रिया।
&
3. द्विकर्मक
क्रिया
v
क्रिया
के प्रयोग के आधार पर -
&
4. सहायक
क्रिया
&
5. संयुक्त
क्रिया
&
6. प्रेरणार्थक
क्रिया
1. अकर्मक क्रिया
-
जिन क्रियाओं का असर कर्ता पर ही पड़ता है वे
अकर्मक क्रिया कहलाती हैं। ऐसी अकर्मक क्रियाओं को कर्म
की आवश्यकता नहीं होती। अकर्मक क्रियाओं के उदाहरण
हैं-
&
राकेश
रोता है।
&
साँप रेंगता
है।
&
बस चलती
है।
&
गौरव रोता
है।
कुछ
अकर्मक क्रियाएँ
·
लजाना
·
होना
·
बढ़ना
·
सोना
·
खेलना
·
अकड़ना
·
डरना
·
बैठना
·
हँसना
·
उगना
·
जीना
·
दौड़ना
·
रोना
·
ठहरना
·
चमकना
·
डोलना
·
मरना
·
घटना
·
फाँदना
·
जागना
·
बरसना
·
उछलना
·
कूदना
आदि।
2. सकर्मक क्रिया
जिन क्रियाओं का असर कर्ता पर नहीं कर्म पर पड़ता
है, वह सकर्मक क्रिया कहलाती हैं। इन क्रियाओं में
कर्म का होना आवश्यक होता हैं, उदाहरण -
&
मैं लेख
लिखता हूँ।
&
सुरेश
मिठाई खाता है।
&
मीरा फल
लाती है।
&
भँवरा
फूलों का रस पीता है।
3. द्विकर्मक क्रिया
जिस सकर्मक क्रिया का अर्थ स्पष्ट करने के लिए
वाक्य में दो कर्म प्रयुक्त होते हैं, उसे द्विकर्मक क्रिया कहते हैं।
जैसे-शिक्षक ने विद्यार्थी को पुस्तक दी।
इस वाक्य में दी क्रिया के व्यापार का फल दो
कर्मों- पुस्तक और विद्यार्थी पर पड़ता है, इसलिए दी वाक्य में द्विकर्मक क्रिया है।
पुस्तक मुख्य कर्म और विद्यार्थी गौण कर्म है। द्विकर्मक क्रिया के साथ प्रयुक्त होने
वाले दोनों कर्म में से मुख्य कर्म किसी पदार्थ का तो गौण कर्म किसी प्राणी का बोध
कराता है।
अन्य
उदाहरणः
&
राजा ने
ब्राह्मण को दान दिया।
&
राम लक्ष्मण
को गणित सिखाता है।
&
मालिक
नौकर को पैसे देता है।
उपर्युक्त वाक्यों में दिया, सिखाता है और देता
है द्विक्रमक क्रिया है। दान, गणित और पैसे मुख्य कर्म हैं तो ब्राह्मण को, लक्ष्मण
को और नौकर को गौण कर्म।
प्रयोग की दृष्टि से क्रिया के भेद
4. सहायक क्रिया
मुख्य क्रिया की सहायता करनेवाली क्रिया को सहायक
क्रिया कहते हैं ।
जैसे- उसने बाघ को मार डाला ।
सहायक
क्रिया मुख्य क्रियां के अर्थ को स्पष्ट और पूरा करने में सहायक होती है । कभी एक और
कभी एक से अधिक क्रियाएँ सहायक बनकर आती हैं
। इनमें हेर-फेर से क्रिया का काल परिवर्तित हो जाता
है । वाक्य में विद्यमान मुख्य क्रिया की सहायता
करने वाली क्रिया को, उसकी सहायक क्रिया कहा जाता है। यह उसका स्थान नहीं ले सकती।
निम्नलिखित उदाहरणों से स्पष्ट होता है, देखें
–
रमा स्वेटर बुन रही थी। ( मुख्य क्रिया – बुनना
)
सुंदर
इस गांव में रहता है। ( मुख्य क्रिया – रहना )
याद
रखने योग्य बातें – है, हैं, हो, था, थी, थीं, थे का प्रयोग मुख्य क्रिया के रूप में
भी होता है।
जिन वाक्यों में इनके साथ क्रिया नहीं होती,
वहाँ ये ही सहायक क्रियाओं का काम करते हैं। जैसे –
सहायक क्रिया के रूप में मुख्य क्रिया के रूप में
वे पढ़ते हैं। वे खिलाड़ी हैं।
वह आता है। वह डाक्टर है।
तुम जाते हो। तुम वीर हो।
5. संयुक्त क्रिया
जो
क्रिया किसी दूसरी क्रिया या अन्य शब्द-भेद के योग से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया
कहते हैं।
जैसे-
v
वह मेरे
घर आया जाया करता है।
v
आज पढ़ना-लिखना
होगा।
v
हम पढ़ाई
कर चुके।
v
मीरा महाभारत
पढ़ने लगी।
v
वह खा
चुका।
उपर्युक्त वाक्यों में आया जाया करता है,
पढ़ना-लिखना होगा और कर चुके संयुक्त क्रियाएँ हैं।
संयुक्त क्रिया की रचना जब दो क्रियाओं के योग
से होती है तो एक क्रिया मुख्य और दूसरी सहायक के रूप में प्रयुक्त होती है।
6. प्रेरणार्थक क्रिया
जिस क्रिया से ज्ञान हो कि कर्ता स्वयं कार्य
को न करके किसी अन्य को कार्य करने की प्रेरणा देता है वह प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती
है। जिस क्रिया के व्यापार में कर्ता पर किसी दूसरे की प्रेऱणा जानी जाती है उसे प्रेरणार्थक
क्रिया कहते हैं। इन क्रियाओं के दो कर्ता होते हैं-
प्रेरक
कर्ता - प्रेरणा प्रदान करने वाला।
प्रेरित
कर्ता - प्रेरणा लेने वाला।
जैसे- शिक्षक ने विद्यार्थी से पुस्तक पढ़वायी।
वाक्य में पढ़वायी क्रिया से विद्यार्थी
कर्ता पर शिक्षक कर्ता की प्रेरणा जानी जाती है। जो कर्ता दूसरे पर प्रेरणा करता है, उसे प्रेरक कर्ता कहते हैं
और जिस पर प्रेरणा की जाती है, उसे प्रेरित कर्ता कहते हैं। प्रस्तुत वाक्य में पढ़वायी प्रेरणार्थक
क्रिया, शिक्षक प्रेरक कर्ता और विद्यार्थी प्रेरित कर्ता है। प्रेरक कर्ता का प्रयोग कर्ता कारक में और प्रेरित कर्ता
का प्रयोग करण कारक में होता है।
v
अधिकतर
अकर्मक से सकर्मक और सकर्मक से प्रेरणार्थक क्रिया बनती है। जैसे-
अकर्मक सकर्मक प्रेरणार्थक
&
पानी गिरता
है। राधा पानी गिराती है। श्याम राधा से पानी गिरवाता है।
&
हम उठते
हैं। हम बोझ उठाते हैं। हम कुली से बोझ उठवाते हैं।
प्रेऱणार्थक क्रिया
बनाने के नियमः
1. अधिकतर धातुओं
से दो-दो प्रेरणार्थक क्रियाएँ बनती हैं, पहली प्रेरणार्थक में आ और दूसरी में वाँ
जुड़ता है-
गिर (ना) गिराना गिरवाना
चल (ना) चलाना चलवाना
चढ़(ना) चढ़ाना चढ़वाना
2. धातु के बीच में
यदि दीर्घ स्वर हो तो उसे ह्रस्व करने से-
जाग (ना) जगाना जगवाना
नाच (ना) नचाना नचवाना
सीख (ना) सिखाना सिखवाना
3. धातु के बीच में
ए, ऐ हो तो इ और ओ, औ हो तो उ हो जाता है-
खोद (ना) खुदाना खुदवाना
खेल (ना) खिलाना खिलवाना
बोल (ना) बुलाना बुलवाना
4. धातु के अंत में
यदि दीर्घ स्वर हो तो उसमें प्रायः ला जुड़ता है-
खा (ना) खिलाना खिलवाना
रो (ना) रुलाना रुलवाना
दे (ना) दिलाना दिलवाना
महत्त्वपूर्ण
आऩा, कुम्हलाना, गरजना, घिघियाना, टकराना, तुतलाना,
पछताना, पड़ना, सकना, लँगड़ाना, सिसकना, होना,
पाना आदि क्रियाओं से प्रेरणार्थक क्रियाएँ नहीं बनतीं।
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संकलन
संकलन
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे
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Good information. Really helpful for students
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