राजकुमार जैन 'राजन' जी का परिचय
मेरी ओर से
जुलाई २०१७ का माह आरंभ हो चूका था। हमारी पाठशाला नए वर्षमें पुनः लग चुकी थी। मैं हिंदी विषय अध्यापक होने के नाते नए साल में मेरे छात्रों में हिंदी अध्ययन-पठन में रूचि बढ़ाने हेतु कुछ सोच रहा था। मेरी पाठशाला में स्थानीय समाचार पत्र और २-३ मासिक पत्रिकाएँ आती रहती हैं। परंतु हिंदी विभाग के लिए ऐसा कोई प्रावधान नहीं था। सोचा की क्यों न मैं हिंदी की कुछ मासिक पत्रिकाएँ निरंतर के लिए उपलब्ध करूँ सोच ही रहा था की कुछ दिन पूर्व हिंदी बाल साहित्यकार सुश्री विमला भंडारी द्वारा भेजी गई 'साहित्य समीर दस्तक' मासिक आई। मैंने तुरंत पुस्तकालय से वह ली और उसपर लिखे भ्रमणध्वनि पर संपर्क किया। मेरे सामने से बोल रहे व्यक्ति ने सहज -मृदुभाषा में कहा - 'जी कहिए मैं 'राजन' बात कर रहा हूँ।'
मैं पहली बार किसी संपादक महोदय से बातचीत कर रहा था। मेरी बोली में हड़बड़ी हो रही थी। राजन जी ने कहा-'भाई कुछ दुविधा है क्या? बोलो क्या सेवा हो ?' बातचीत का सिलसिला मिनट तक जारी रहा। पहले ही वार्तालाप में मुझे अपना बना लिया। मैंने आपके सामने 'साहित्य समीर दस्तक' पत्रिका मेरी पाठशाला के लिए उपलब्धि की बात की। राजन जी ने आश्वस्त किया कि पत्रिका आपकी पाठशाला के लिए उपलब्ध हो जाएगी, एक और बात आप मुझे अपनी पाठशाला का पोस्टल पता भेज दीजिए, मैं मासिक पत्रिका भेज दूंगा। मैंने आपके कहने पर पता भेज दिया।
आठ - दस दिन बीत ही गए थे कि एक पार्सल मेरी पाठशाला में पहुँचा।
देखा तो पता था - राजकुमार जैन 'राजन' चित्रलेखा प्रकाशन, अकोला, राजस्थान। मैं दंग रह गया। बहुत बड़ा पार्सल था। मैंने फिर से संपर्क करके पूछा तो आपने बताया कि कुछ बालसाहित्य कि किताबें हैं, देखें जरुर पसंद आएँगी। बस और क्या - अँधा क्या चाहे, दो आँखे। मैंने प्रधानाचार्य जी से बात करके प्राप्त क़िताबों का अनावरण एवं छात्रों में वितरण का कार्यक्रम करके आपका साहित्यिक धन छात्रों में बाँट दिया। करीब ३१०० रूपए राशी की ५१ किताबें निशुल्क उपलब्ध कराई। आज मेरे छात्र-छात्राएँ बड़ी लगन से पढ़ते हैं। साथ -ही-साथ 'साहित्य समीर दस्तक' पत्रिका निशुल्क उपलब्ध करने से आश्वस्त किया।
राजन जी आज पुरे देश के छात्रों में हिंदी एवं बालसाहित्य में रुची बढ़ने हेतु लाखों रुपयों की साहित्यिक निधी निःशुल्क हिंदी-अहिंदी राज्यों की पाठशालाओं में उपलब्ध करा रहे हैं। आपका यह उपक्रम सचमुच प्रशंसनीय हैं। आप के जीवन कार्य पर 'टू-मिडिया' विशेषांक पढ़कर तो आपकी प्रतिमा एवं सम्मान और बढ़ गया हैं। आपने अल्प समय के परिचय में मुझे अपना बना लिया है। आपके प्रति कृतज्ञता किन शब्दों में व्यक्त करूँ, मैं निशब्द हूँ। आपका स्नेह और सहयोग के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद और देशहित में चलाये जा रहे उपक्रम एवं कार्य के लिए बहुत-बहुत बधाईयाँ और मंगलकामनाएँ !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
श्रीमान राजन जी की कविताएँ स्वयं की ओर से महाराष्ट्र राज्य हिंदी अध्यापक ग्रुप इस ब्लॉग के लिए प्रकाशन एवं पाठकों लिए सहर्ष प्रस्तुत हैं।
उपर्युक्त रचानाएँ पीडीऍफ़ में पाने के लिए सामने क्लिक करें ---- Download
>>>>>>>>>>>>>>-<<<<<<<<<<<<<<
२४ जून १९६९
आपका जन्मदिवस
आपको जनम दिवस की ढेरों बधाईयाँ !!!
ईश्वर आपकी अभिलाषाओं को लंबी उम्र प्रदान करें। वह पूरी करने हेतु आरोग्य, क्रयशक्ति, परिवार का बल, स्वयं की आत्मशक्ति को निरंतर ईश्वरीय दीप की तरह प्रज्वलित करता रहें ।
आपकी मंगल कामनाओं के साथ -
सहपरिवार आपका अनुज एवं सखा,
मच्छिंद्र भिसे
सातारा (महाराष्ट्र)
आदरणीय बड़े भाई,
आज के दिन आपके पास होता तो बहुत अच्छा होता। समय की इच्छा के कारण दूर ही सही लेकिन आप मेरे दिल के करीब हो। आपके इंजिन के साथ का वह आखरी डिब्बा हूँ जो मध्य के डिब्बे भले ही बदले पर पूँछ का डिब्बा हूँ मैं, आखिर तक साथ देने का वादा करता हूँ। आपको भेंट हेतु मेरी स्वरचित शब्दश्रृंखला आपके लिए मंगलकामना करते हुए भेज रहा हूँ स्वीकार हो।
राजसी 'राजन'
कई मुकाम हासिल किए आपने,
झुककर सलाम करे आज ये गगन,
‘एक था गुणीराम’ लिए ‘नेक हंस’,
आज वही हैं हमारे राजकुमार जैन ‘राजन’।
‘लाख टके की बात’ कहूँ,
या ‘झनकू का गाना’ मैं गाउँ,
‘पशु-पक्षियों के गीत’ गाएँ हैं चमन,
ऐसे है ‘आदर्श मित्र’ प्यारे ‘राजन’।
‘बच्चों की सरकार’ है बनाई,
साहित्य दान की मिठाईयाँ खिलाई,
‘मन के जीते जीत है’देते सिखावन,
औरों की ख़ुशी में ख़ुशी पाते हैं ‘राजन’।
‘बस्ते का बोझ’ हुआ भारी ,
सुख का ‘रोबोट दिला दो राम’,
‘प्यारी छुट्टी जिंदाबाद’पाई,
अब बच्चों के आ गई जो काम।
‘राजन’ जी का जीवन है,
एक प्यारी ‘चिड़िया की सीख’,
‘ख़ुशी रा आँसू’ से भीगे हैं मन,
जिए साहित्य में जिए मनचाहा ‘राजन’।
‘इसी का नाम जिंदगी’ ये कहे,
बालसाहित्य संजीवनी बन जीवन को गहे,
‘खोजना होगा अमृत कलश’ इनके स्पंदन का,
दिल के दरियादिल और नटखट है ‘राजन’।
जन्मदिन मुबारक हो भाई ‘राजन’,
क्या दूँ ‘सबसे अच्छा उपहार’,
यहीं भेंट स्वीकार हो सहपरिवार,
‘जन्मदिन का उपहार’ यही हो स्वीकार।
‘साहित्य समीर दस्तक', ने दी
जब भी दस्तक मेरे दिल पर गहन,
एक ही आवाज आती रही है,
हम सब के प्रिय 'राजन ' जी के बारे में बिल्कुल सत्य लिखा है भिसे जी ने। इतने बड़े साहित्यकार और इतने सहज ,सरल स्वभाव के !!!! ये हमारा सौभाग्य है कि हम सब इनसे जुड़े हुए हैं।
ReplyDelete