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Sunday, 13 May 2018

भावार्थ: मन - विकास परिहार-१० वीं कक्षा हिंदी लोकभारती

१० वीं कक्षा हिंदी लोकभारती 
मन 
(हाइकु) 
विकास परिहार 
प्रस्तुत आलेख संपादन एवं हाइकु 'मन' का भावार्थ 
श्री. मच्छिंद्र भिसे 
हाइकु विधा का परिचय 
          हिंदी साहित्य की अनेकानेक विधाओं में 'हाइकु' नवीनतम विधा है। हाइकु मूलत: जापानी साहित्य की प्रमुख विधा है। आज हिंदी साहित्य में हाइकु की भरपूर चर्चा हो रही है। हिंदी में हाइकु खूब लिखे जा रहे हैं और अनेक पत्र-पत्रिकाएँ इनका प्रकाशन कर रहे हैं। निरंतर हाइकु संग्रह प्रकाशित हो रहे हैं। यदि यह कहा जाए कि वर्तमान की सबसे चर्चित विधा के रूप में हाइकु स्थान लेता जा रहा है तो अत्युक्ति न होगी। 
हाइकु को काव्य-विधा के रूप में प्रतिष्ठा प्रदान की मात्सुओ बाशो (१६४४-१६९४) ने। बाशो के हाथों सँवरकर हाइकु १७वीं शताब्दी में जीवन के दर्शन से अनुप्राणित होकर जापानी कविता की युग-धारा के रूप में प्रस्फुटित हुआ। आज हाइकु जापानी साहित्य की सीमाओं को लाँघकर विश्व-साहित्य की निधि बन चुका है। 
        हाइकु अनुभूति के चरम क्षण की कविता है। सौंदर्यानुभूति अथवा भावानुभूति के चरम क्षण की अवस्था में विचार, चिंतन और निष्कर्ष आदि प्रक्रियाओं का भेद मिट जाता है। यह अनुभूत क्षण प्रत्येक कला के लिए अनिवार्य है। अनुभूति का यह चरम क्षण प्रत्येक हाइकु कवि का लक्ष्य होता है। इस क्षण की जो अनुगूँज हमारी चेतना में उभरती है, उसे जिसने शब्दों में उतार दिया, वह एक सफल हाइकु की रचना में समर्थ हुआ। बाशो ने कहा है, "जिसने जीवन में तीन से पाँच हाइकु रच डाले, वह हाइकु कवि है। जिसने दस हाइकु की रचना कर डाली, वह महाकवि है।" 
         हाइकु सत्रह (१७) अक्षर में लिखी जाने वाली सबसे छोटी कविता है। इसमें तीन पंक्तियाँ रहती हैं। प्रथम पंक्ति में ५ अक्षर, दूसरी में ७ और तीसरी में ५ अक्षर रहते हैं। संयुक्त अक्षर को एक अक्षर गिना जाता है, जैसे 'सुगन्ध' में तीन अक्षर हैं - सु-१, ग-१, न्ध-१) तीनों वाक्य अलग-अलग होने चाहिए। अर्थात एक ही वाक्य को ५,७,५ के क्रम में तोड़कर नहीं लिखना है। बल्कि तीन पूर्ण पंक्तियाँ हों। 
        अनेक हाइकुकार एक ही वाक्य को ५-७-५ वर्ण क्रम में तोड़कर कुछ भी लिख देते हैं और उसे हाइकु कहने लगते हैं। यह सरासर ग़लत है, और हाइकु के नाम पर स्वयं को छलावे में रखना मात्र है। अनेक पत्रिकाएँ ऐसे हाइकुओं को प्रकाशित कर रही हैं। यह इसलिए कि इन पत्रिकाओं के संपादकों को हाइकु की समझ न होने के कारण ऐसा हो रहा है। इससे हाइकु कविता को तो हानि हो ही रही है साथ ही जो अच्छे हाइकु लिख सकते हैं, वे भी काफ़ी समय तक भ्रमित होते रहते हैं। 
        हाइकु कविता में ५-७-५ का अनुशासन तो रखना ही है, क्योंकि यह नियम शिथिल कर देने से छंद की दृष्टि से अराजकता की स्थिति आ जाएगी। कोई कुछ भी लिखेगा और उसे हाइकु कहने लगेगा। वैसे भी हिंदी में इतने छंद प्रचलित हैं, यदि ५-७-५ में नहीं लिख सकते तो फिर मुक्त छंद में अपनी बात कहिए, क्षणिका के रूप में कहिए उसे 'हाइकु' ही क्यों कहना चाहते हैं? अर्थात हिंदी हाइकु में ५-७-५ वर्ण का पालन होता रहना चाहिए यही हाइकु के हित में हैं। 
         अब ५-७-५ वर्ण के अनुशासन का पूरी तरह से पालन किया और कर रहे हैं, परंतु मात्र ५-७-५ वर्णों में कुछ भी ऊल-जलूल कह देने को क्या हाइकु कहा जा सकता है? साहित्य की थोड़ी-सी भी समझ रखने वाला यह जानता है कि किसी भी विधा में लिखी गई कविता की पहली और अनिवार्य शर्त उसमें 'कविता' का होना है। यदि उसमें से कविता ग़ायब है और छंद पूरी तरह से सुरक्षित है तो भला वह छंद किस काम का। 
 
मन 
(हाइकु पद्य)
रचना : विकास परिहार 
भावार्थ लेखन : श्री. मच्छिंद्र भिसे 

लेखक परिचय 
         जन्म- ४ अगस्त १९८३ को मध्य प्रदेश के गुना जिले के राघोगढ़ कस्बे में जन्म। सन २००० से सन २००६ तक भारतीय वायु सेना को अपनी सेवाएँ दीं। फिर पत्रकारिता की समर भूमि मे उतरने के बाद रेडियो से जुड़े। साथ ही साथ साहित्य मे विशेष रुचि है और नाट्य गतिविधियों से भी जुड़े हुए हैं। शिक्षा- माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविध्यालय भोपाल से पत्रकारिता विषय में स्नातक।
पद्य प्रस्ताविक 
          कक्षा १० वीं लोकभारती पाठ्यपुस्तक में आयी नई साहित्य विधा 'हाइकु' का सभी ने स्वागत किया है। उपर्युक्त विवेचन से आप सभी को हाइकु विधा का परिचय और इसके लेखन संबंधी की सभी समस्याओं का समाधान हुआ ही होगा, इसमें कोई दो राय नहीं होगी। एक और बात कि विकास परिहार जी के हाइकु मुक्तशैली में रचे होने के कारन गेयता-काव्य छंद से परे है। परंतु भाव की दृष्टि से यह हाइकु बहुत बढ़िया ही है। 
          हाइकु एक ऐसी विधा हैं जिसमें भावों को अधिक महत्त्व देकर किसी एक बात को कम-से-कम शब्दों में व्यक्त करने की कला है। कवी ने अपने भाव एवं विचारों को व्यक्त करने की सफल कोशिश की है। 'मन' इस शीर्षक में हाइकुकार विकास परिहार जी ने जीवन के कई जीवन मूल्य, आदर्श, प्रकृति वैभव, जीवनानुभव, यथार्थता को व्यक्त करने की कोशिश की है। जो हमें अपने जीवनानुभव के साथ जोड़ने के लिए एवं सोचने के लिए बाध्य करते है। प्रकृति एवं सामाजिक घटकों के माध्यम से प्रकृति वर्णन के साथ व्यक्तित्व विकास के लिए प्रेरित करनेवाली यह कृति है। 

'मन' हाइकु के भावार्थ
१.
घना अँधेरा,
चमकता प्रकाश, 
और अधिक।  
      जिस तरह शाम ढलते ही निशा अँधेरे से घिर जाती है और अंधकार का अधिराज्य निर्माण होता है। ऐसे वक्त कभी-कभी एखाद दीप या जुगनू चमककर अँधेरे को छेद देने की कोशिश करता है तब वह अंधकार में सामान्य से और भी अधिक चमकता है। उसी प्रकार हर मनुष्य के जीवन में अनगिनत अंधकार (विपत्तियाँ) होता है, परंतु जो मनुष्य इस अधंकार को छेद देने की ताकद रखता है वह मनुष्य प्राणी जीवन के अंधकार में भी और चमकेगा तथा श्रेष्ठत्व प्राप्त करेगा। बस उसमें निडरता और हौसला चाहिए। 
२.
करते जाओ,
पाने की मत सोचो, 
जीवन सारा। 
      संस्कृत के 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनं' इस सुवचन के अनुसार ही परिहार जी ने जीवन का सही सार बताने की कोशिश की है। हमें अपने जीवन में कर्मरत रहकर क्रिया-कलाप करते रहना चाहिए।  फल कभी-न-कभी मिल ही जाएगा। यदि फल के बारे में सोचते रहे तो कर्म और जीवन का आनंद गवाँ बैठेंगे। तो बस काम करते जाओ, फल तो अपने - आप मिल जाएगा। किसी ने सही कहा है - 'काम करेंगे-काम करेंगे, जग में हम कुछ नाम करेंगे।'
३.
जीवन नैया,
मँझधार में डोले,
संभाले कौन। 
        माना कि यह दुनिया असीम समुंदर है तो  हर मनुष्य प्राणी का जीवन उस समुंदर में चल पड़ी नैया (नाव) है। जब अपना जीवन-यापन करते हैं तो संसार में अनगिनत बाधाएँ समुंदर के तूफान की भाँति आएगी और कमजोर नाव को जिस तरह निगल  जाता है उसी तरह तुम्हारे जीवन को भी निगल जाएगा। अर्थात मनुष्य का जीवन समाप्त होगा।  अब हर एक को समझना चाहिए कि दुनिया में अपने जीवन की बागडौर खुद को ही संभालनी होगी। अपनी जिंदगी में कितने ही तूफान क्यों न आए, अपनी नैया किनारे (मोक्ष अथवा सफलता के) पार लगानी ही होगी। यहाँ कोई आपकी मदद करनेवाला नहीं होगा ? हाइकुकार ने वही सवाल पूछा है - तुम्हारी जीवन नैया कौन संभालेगा ?
४.
रंग-बिरंगे,
रंग-संग लेकर,
आया फागुन। 
        इस हाइकु में प्रकृति के बदलाव का वर्णन करते हुए फागुन माह के दिन कुदरत में बिखरे रंगों की ओर निर्देशित करते हुए फागुन माह का विशेष महत्त्व, फूलों को लेकर प्रतिपादित किया है। (टिपण्णी-अध्यापक विस्तारित रूप से फागुन की जानकारी से छात्रों को अवगत कराए। )
५.
काँटों के बीच,
खिलखिलाता फूल,
देता प्रेरणा। 
      प्रस्तुत हाइकु में जीवन में संघर्ष एवं समस्याओं का महत्त्व प्रतिपादित करते हैं । जैसे गुलाब का फूल काँटों में भी रहकर खिलता है तो अधिक सुंदर तो लगता है साथ ही अपनी सुगंध चारों ओर फैलाता भी है। इसी तरह को मनुष्य को अपने जीवन में आयीं बाधाओं (काटों) को सहजता से स्वीकार कर आगे बढ़ना चाहिए। तभी हम अपने जीवन को सुंदर और कार्य से सुगंधित कर सकते है, जो आगे जाकर किसी के लिए प्रेरणादायी बन जाएगा। जैसे - 'रुकनेवाला पानी सड़ता, रुकनेवाला पहिया डाटा, रुकनेवाली कलम न चलती और विशेष बात-रुकनेवाली घड़ी न चलती।' समस्याओं को पहचानकर सामना करें। 
६.
भीतरी कुंठा,
आँखों के द्वार से,
आई बाहर। 
       कहा जाता है कि मनुष्य नहीं उसकी आँखें और चेहरा बोलता है। जब मनुष्य खुश होता है तो चेहरे पर अनोखी चमक दिखाई देती है उसी तरह मनुष्य के जीवन की निराशा जन्य अतृप्ति की भावनाएँ (कुंठा) उसके चेहरे पर एवं आँखों में उतरती है। उस मनुष्य का जीवन कितनी निराशा से भरा है, इसका पता चलता है। ऐसे वक्त उन्हें प्रेरित कर जीवन की आदर्शता से अवगत करे। महत्वपूर्ण बात यह है कि हर एक को मनुष्य के चेहरे तथा आँखे पढ़नी आनी चाहिए। 
७.
खारे जल से,
धूल गए विषाद,
मन पावन। 
     जो मनुष्य गलती करता है, उसे तो चोट पहुँचनी ही है। धरती के सभी मनुष्यों का स्वभाव एक जैसा नहीं होता। जो समझदार, अपने जीवन के प्रति आस्था, कर्म के प्रति निष्ठा रखनेवाले अच्छे काम करते रहते हैं परंतु भूल से या नासमझी से गलती हो जाती है और मन में असंतोष एवं रिश्तों में दूरता आ जाती है। परंतु अपनी भलाई चाहनेवाले (अभिभावक, गुरुजन) आपको कड़वी बातें (खारा जल) जो हमारे हित में होती है, वे करते हैं। जब सही और गलत का फर्क हमारी समझ में आ जाता हैं तो मन के सारे दुःख (विषाद, निराशा) दूर हो जाते हैं और हमारा मन, सोच एवं व्यवहार में पवित्रता आ जाती है। हम सभी को याद रखना होगा कि अपनी भलाई के लिए की कड़वी बातें हमेशा मीठी होती हैं। 
८.
मृत्यु को जीना,
जीवन विष पीना,
है जिजीविषा। 
       मनुष्य को इस बात को समझना होगा कि जीवन जहर (अनगिनत बाधाओं एवं समस्याओं) से भरा है और इस जहर को पीकर उसे अमृत में परावर्तित कर जीवन को बेहतर बनाना ही जिंदगी है और बेहतर बनाएँगे।  यह जीने का मकसद और आकांक्षा होनी चाहिए। मृत्यु जिस प्रकार अंतिम सत्य कहा जाता है तो इसे ही जिंदगी बनाकर जीने का जज्बा रखना होगा। तभी जीवन सफल हो जाएगा। 
९.
मन की पीड़ा,
छाई बन बादल,
बरसी आँखें। 
      मनुष्य स्वभाव की विशेषताएँ बताते हुए इस हाइकू में कहा है कि मनुष्य का मन / सोच जब भी वेदना, कठिनाई (पीड़ा) आदि महसूस करती है तो स्वाभाविक उसकी आँखों से पानी (आँसू ) बरसता है। हमें मनुष्य के दुःख से दुखी और सुख से सुखी होना चाहिए। परंतु हमें दूसरों के दुःख दूर करने की कोशिश हरहाल करनी चाहिए। (टिपण्णी- इसी कविता की हाइकु क्रमांक ६ के समान ही इसके भाव प्रकट होते हैं।)
१०.
चलती साथ,
पटरियाँ रेल की,
फिर भी मौन। 
         मनुष्य जीवन में सुख और दुःख रेल की पटरी की तरह होते हैं। रेल की पटरिया साथ में चलती है परंतु कभी एक नहीं होती। और जहाँ होती है वहाँ रेल नहीं होती। उसी तरह मनुष्य के जीवन सुख-दुःख बराबर साथ-साथ चलते है पर एक नहीं होते और जहाँ होते हैं वहाँ उसके अस्तित्व पर आशंका उपस्थित की जाती है। जैसे नदी के दो तीर। कभी एक नहीं होते जब पानी सुख जाता है तो उसके दो तीर रहते ही नहीं और उसे नदी को नदी नहीं कहा जाएगा। नाम की नदी रहेगी पर उसके अस्तित्व पर आशंका उठती है। मनुष्य को सुख-दुःख को समान रूप में जानकर स्वीकार करें और जीवन जिए। 
११.
सितारे छिपे,
बादलों की ओट में,
सुना आकाश। 
         अपने जीवन की खुशियों को अनोखे ढंग से व्यक्त करने की सफल कोशिश इस हाइकु में की है। आसमान (जीवन), सितारे (सुख / खुशियाँ) और बादल (परदा / बाधा) के रूपकों में जीवन की अहम बात बताने की कोशिश की है।  परिहार जी कहते है कि जीवन रूपी आकाश पर जब खुशियों के तारे चमकते है तो जीवन आनंद अवर्णनीय होता है परंतु हर सुख क्षणिक होता है उसके ऊपर दुःख के बादल छा जाते हैं तो जीवन निराशा से घिरकर सुना आकाश की भाँति बन जाता है। जिसके चलते मन उद्विग्न हो उठता है। हमें कोशिश करनी होगी की दुःख का पर्दा (ओट) हमेशा के लिए हट जाए। 
१२. 
तुमने दिए,
जिन गीतों को स्वर,
हुए अमर। 
          अपने जीवन में अपने परिजन, हितचिंतक, स्नेही एवं अन्य प्रिय व्यक्तियों का होना अत्यंत आवश्यक होता है। इनके बगैर कोई भी मनुष्य अपना जीवन सफलतापूर्वक नहीं जी सकता। उन्हीं की सहायता से हम अपने जीवन को एक संबल प्रदान करते है। ऐसे लोगो के प्रति हमारे मन में कृतज्ञता के भाव होने चाहिए और उन्हें भूलना भी नहीं चाहिए। उन्हीं लोगों के साथ बीती-बिताई बातें, जीवन संघर्ष अपने जीवन के अमर गीत बन जाते है। इस हाइकु में अच्छे लोगो के साथ को अपने जीवन के गीतों के स्वर कहा गया है। 
१३.
सागर में भी,
रहकर मछली,
प्यासी ही रही। 
     प्रस्तुत हाइकु के माध्यम से हाइकुकार जीवन की उच्च बात को रखते है। वे कहते है कि पानी में रहनेवाली 'मछली' जिसका जीवन पानी है, वह समुंदर में रहती तो है परंतु खारा पानी पी नहीं सकती। उसे मीठे पानी की तलाश में समुंदर की गहराई तक जाना होगा। उसी तरह मनुष्य का जीवन उस खारे समुंदर की तरह होता है। सुख तो है परंतु पा नहीं सकते, उसे ढूंढने के लिए दुःख की गहराई तक जाना होगा अन्यथा सुख के लिए प्यासे ही रहोगे। उसी तरह मनुष्य की तृष्णा (आकांक्षाएँ) कभी मिटती नहीं। सोच-समझकर जिंदगी के खारे समुंदर में जीना सीखना होगा। 
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लेखन एवं प्रस्तुति
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श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
अध्यापक 
सदस्य, सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल, सातारा।  
ग्राम भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
hinditeacherssatara.blogspot.in 
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'साहित्य समीर दस्तक' पत्रिका का मई २०१८ का अंक

प्रतिष्ठा में, 
संपादक महोदय / महोदया 
सादर नमन !!!

             'साहित्य समीर दस्तक' पत्रिका का मई २०१८ का अंक नियमित समय पर प्राप्त हुआ। सहृदय
धन्यवाद। मई की पत्रिका के मुखपृष्ठ मरुभूमि एवं पानी लेकर जा रही देहाती नारियों के चित्र सजाकर मई की गर्मी का परिचय देते हुए अंतरंग में साहित्यिक ठंडाई प्रदान करने वाली एक से बढ़कर एक रचनाओं को सचित्र स्थान दिया है। संपादकीय में 'अपनी बात' और 'मन की बात' के आलेख व्यक्तित्व निर्माण एवं मुस्कराने के महत्त्व को सुंदर शब्दबद्ध किया है जो सोचनीय हैं। बुढ़ापा बोझिल नहीं होता यदि उसे सही दिशा दे, इस बात को दर्शाने वाली प्रतिमा खनका जी की 'रिटायर्ड' और श्यामली पांडे जी की 'किसी से कहना मत' खोखली इज्जत की पोल खोल देने वाली कहानी शिक्षाप्रद एवं सराहनीय है। मातृ दिवस की एवं मातृ प्रेम के एहसास एवं आज की माँ के हालत बयान करने वाली मॉरीशस के गुदारी जी की 'बैठक' कहानी पाठक की पठन की बैठक रँगाती है तो माँ को कई सवाल पूछने वाली विशाल के.सी. जी की 'जोकर' कविता बहुत कुछ कह जाती है। 

            बालजगत की कहानियों में 'जीने का हक' पशु-पक्षी संवर्धन एवं संरक्षण का संदेश देनेवाली हैं तो वही डॉ. दर्शन सिंह 'आशट' जी 'फिर फैली मुस्कान' कहानी बच्चों को समझदारी इस जीवन मूल्य की सिखावन देती है। लघुकथाओं में कपिल शास्त्री जी की 'उदारता' नकली उदारता की पहचान करा देती हैं, इस श्रृंखला की सभी लघुकथाएँ पठनीय है। किशनलाल छिपा के 'नया ज्ञान' और 'अपना खेत' प्रेरणादायी प्रंसग हैं। काव्य कुंज की पठनीय कविताएँ सजावट के साथ प्रस्तुत करने से काव्य कुंज खिला है जिससे पत्रिका और स्तरीय बनती जा रही है। काव्य में प्रस्तुत रेनू शर्मा जी द्वारा 'शब्द' को 'जीने की वजह हो' कहकर शब्दों को काव्यात्मक सम्मान देकर गौरवान्वित किया है। देवी नागरानी जी की गजलें, नेपाल से और पूर्वोत्तर से शीर्षक में प्रस्तुत रचनाएँ मन को छू जाती हैं, विशेषकर सीताराम प्रकाश की 'बीज हूँ मैं' अधिक पसंद आईं। बालकविताएँ भी बाल मन सहित हर पाठक को प्रभावित करती हैं। 'यादों के झरोखों से' मेरा विशेष प्रिय स्तंभ है, इस बार मेरे प्रिय गजलकार 'दुष्यंतकुमार' जी को देखकर दिल खुश हुआ। किताबों की समीक्षाएँ एवं पत्रिकाओं का परिचय देकर यह पत्रिका साहित्य के प्रचार-प्रसार के मूल उद्देश्य को सफल करती दिखाई देती है वहीं साहित्यिक क्षेत्र की खबरें देकर संबंधित हलचल से परिचित कराती हैं। 

            संक्षेप में अंतराष्ट्रीय स्तर में स्तरीय पत्रिकाओं में अपना स्थान पानेवाली पत्रिका 'साहित्य समीर दस्तक' है। इस नियमित सफल प्रकाशन हेतु संपादक, प्रधान संपादक एवं उनके सहयोगियों को हार्दिक बधाईयाँ और मंगलकामनाएँ !!!

मच्छिंद्र भिसे,
भुईंज-सातारा (महाराष्ट्र)

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श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
अध्यापक 
ग्राम भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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Thursday, 10 May 2018

कक्षा १०वीं ई -पत्र लेखन


ई - पत्र लेखन 
          सभी हिंदी अध्यापक भाई, बहन एवं छात्र मित्रों को प्यारभरा नमस्कार। 
          शैक्षिक वर्ष २०१८-१९ से महाराष्ट्र शिक्षा विभाग हिंदी विषय पाठ्यक्रम में ई-पत्र लेखन यह घटक आया हुआ है इस पत्र लेखन के आवश्यक प्रारूप के अनुसार पत्र लेखन कैसे अपेक्षित है, इसकी जानकरी आपके साथ साझा कर रहा हूँ। विश्वास है कि निम्न जानकारी का लाभ सभी अध्यापक एवं छात्रों को जरुर होगा
ई-पत्र का प्रारूप बनाते वक्त ध्यान में रखने योग्य बातें -
पूर्व पत्र लेखन पद्धति और नई पद्धति में हुए बदलाओं का निरिक्षण करे। 
निरिक्षण से पता चलने वाली बातें और आवश्यक परिवर्तन -
अ. पूरा पत्र बायीं ओर छोड़े हाशिए (मार्जिन) को चिपककर लिखना अनिवार्य है। 
आ. प्रेषक का पूरा पता दाईं ओर से निकलकर समाप्ति की स्वाक्षरी के बाद लिखा जाएग। 
इ. दिनांक अब प्रेषक के नीचे न लिखकर प्राप्तकर्ता / संबोधन के पूर्व ऊपर की पंक्ति पर बायीं ओर लिखा जाए।
ई. पत्र प्राप्तकर्ता का पूरा पता हमेशा की तरह ही लिखा जाए तथा उसके नीचे उसका ई - पता (E-Mail ID) लिखा जाए।
*** : अनौपचारिक (घरेलु) पत्र में पाने वाले का पता लिखा नहीं जाता है, परंतु ई-मेल पत्र में पाने वाले का ई-मेल पता तो देना जरुरी होगा। अनौपचारिक पत्र में दिनांक के नीचे पाने वाले का सिर्फ पूरा नाम लिखें और अगली पंक्ति पर नाम के अनुसार ई-मेल पता (E-Mail ID) लिखने पर औपचारिक पत्र भी ई-मेल पत्र बनेगा। इसमें प्राप्तकर्ता का पूरा पता लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है।  (महत्त्वपूर्ण: यदि परीक्षा में प्राप्त कर्ता का पता दिया हो तो जरुर दर्ज करें।)
     विशेष :  दोनों  (प्रेषक एवं प्राप्तकर्ता) का  ई-मेल पता लिखना आवश्यक हैं क्योंकि अब लिफाफा /सिरनामा नहीं बनाना हैं, इसलिए ई-मेल पत्र में प्राप्तकर्ता का भी ई-मेल पता देना आवश्यक है अन्यथा पत्र का प्रारूप अधूरा रहेगा।
उ. प्राप्तकर्ता के पते के बाद संक्षेप में हाशिए (मार्जिन) को चिपककर विषय लिखा जाए। (विषय  पहले की तरह मध्य में नहीं )
*** : अनौपचारिक (घरेलु) पत्र में पत्र के शुरआत में ही विषय लिखा जाए ताकि पत्र का विषय वस्तु का पता चल सके। मध्य में किसी भी हाल में विषय न लिखा जाए। 
ऊ. फिर महोदय / महोदया संबोधन लिखा जाए तथा अगली पंक्ति पर अनुच्छेद करके मुख्य कलेवर कम से कम ३ अनुच्छेद में  हो। (प्रारंभ, मध्य, समापन)
ऋ. कलेवर के बाद बायीं ओर ही समाप्ति सूचक शब्द पत्र प्रकार के अनुसार लिखा जाए। (भवदीय/भवदीय, आपका/आपकी, आपका/आपकी विश्वासी-कृपाभिलाषी आदि) और भेजने वाले  का सिर्फ नाम लिखें अथवा स्वाक्षरी (अ.ब.क. / पवन / रश्मि आदि प्रेषक के अनुसार)
ए. स्वाक्षरी के बाद प्रेषक का पूरा नाम, पूरा पता लिखना अनिवार्य है। 
ऐ. पता लिखने के बाद पत्र लिखने वाले का ई-पता (E-Mail ID) लिखना अनिवार्य है। 
ओ. ई - पत्र के साथ कुछ संलग्न (ATTACHMENT) करना हैं तो पत्र लिखने वाले के ईमेल पते के बाद एक पंक्ति छोड़कर लिख सकते है। 
औ. ई-मेल में विषय पत्र के प्रारंभ में लिखा जाता हैं तो छात्रों को शुरआत में भी विषय लेखन की आदत डालेंगे तो और अच्छा है; परंतु भूल से पुरे पत्र में विषय किसी भी स्थान पर न लिखा जाए तो पुरे अंक जाने की संभावना है क्योंकि विषय के आभाव में अंक नहीं मिलते। 

उपर्युक्त सभी बातों को गौर करते हुए ई-पत्र में सुलेखन, शुद्धलेखन के साथ विषय विस्तार एवं प्रस्तुति करने पर छात्रों को शत-प्रतिशत अंक पाने में कोई समस्या नहीं होगी । 

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आप सभी की सुविधा के लिए ई-पत्र के कुछ नमूने साझा कर रहा हूँ, आशा है सभी को पसंद आएँगे। 

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औपचारिक - ई-पत्र क्रमांक १ 
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विषय : फीस माफ़ी के लिए प्रधानाचार्य को पत्र। 

24 सितंबर 2020
सेवा में,
प्रधानाचार्य जी,
जवाहर पब्लिक स्कूल, जनकपुरी,
दिल्ली -18
jpsj@gmail.com

विषय : फीस माफ़ी हेतु पत्र।

महोदय ,
सविनय निवेदन है कि मैं आपके विद्यालय का कक्षा 10 का छात्र हूँ। मेरे पिता जी अपने छोटे-से व्यवसाय द्वारा बड़ी कठिनाई से परिवार का पालन-पोषण करते हैं। बढ़ती महँगाई के कारण काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। घर में आवश्यक वस्तुओं का अभाव रहता है। मेरी छोटी बहन और भाई भी अन्य कक्षाओं में पढ़ रहे हैं, उनकी पढ़ाई -लिखाई आदि के खर्चे का बोझ पिता जी के सर पर लदा रहता है।
मै अपनी कक्षा का परिश्रमी छात्र हूँ और कक्षा में सदैव प्रथम आता हूँ। खेलकूद में भी मेरी अच्छी रूचि है। अतः आपसे निवेदन है कि आप मेरी विद्यालय की फीस माफ़ करके सहयोग प्रदान करें ताकि मैं निश्चिंत होकर अध्ययन कर सकूँ। मेरे अभिवावक आपके अत्यंत आभारी रहेंगे।
मुझे विश्वास है कि आप मेरी फीस माफ़ करेंगे और सहयोग प्रदान करेंगे। 
 
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
जयप्रताप

जयप्रताप सिंह,
आनंद विहार,
इंडिया गेट रोड,
दिल्ली - १७ 
jaisingh@gmail.com
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औपचारिक - ई-पत्र क्रमांक २  
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विषय : विद्यालय में अनुपस्थिति पर प्रधानाचार्य को पत्र

24 सितंबर 2020
सेवा में,
प्रधानाचार्य,
सैंट मैरी पब्लिक स्कूल,
वसंत विहार,
नई दिल्ली-110057
smps@gmail.com
विषय : विद्यालय में अनुपस्थिति को लेकर पत्र । 

महोदय,
मैं क्षमा प्रार्थी हूँ कि मैं दिनांक 16 एवं 17 सितंबर को अपनी कक्षा में उपस्थित नहीं रह सका क्योंकि मेरे पिता जी शहर से बाहर गए हुए थे। मेरी माँ  को अचानक तेज बुखार आने के कारण बीमार हो गई थीं। घर में  उनकी देखभाल के लिए कोई नहीं था। मैं आपको पहले से इस विषय में सूचित करने की स्थिति में नहीं था।
अतः इन दो दिनों में  संपन्न पढ़ाई मैं स्वयं अध्ययन से कर लूँगा और आपको किसी प्रकार की शिकायत का मौका नहीं दूँगा।
मुझे विश्वास है कि आप मुझे उचित प्रेरणा और मार्गदर्शन करेंगे।
आपका आज्ञाकारी शिष्य,
अनूप

अनूप त्रिपाठी,
शांति सदन,
आनंद नगर,
नई दिल्ली - 25
anuptripathi@gmail.com
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औपचारिक - ई-पत्र क्रमांक ३
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विषय : पुस्तक विक्रेता से पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र। 

24 सितंबर 2020
सेवा में,
मा. प्रबंधक,
नवीन प्रकाशन,
922, कूँचा रोहिल्ला खान,
नई दिल्ली - 2
navinprakashan@gmail.com

विषय : पुस्तक विक्रेता से पुस्तकें मँगवाने हेतु पत्र।

महोदय,
आपके द्वारा भेजा गया किताबों का सूचि पत्र मिला। धन्यवाद।
आपसे अनुरोध है कि आपकी सूचि में से चुनी हुईं  निम्नलिखित पुस्तकें अंत में दिए पते पर शीघ्रातिशीघ्र भेजने का कष्ट करें। इस पत्र के साथ 500 रूपए अग्रीम भेज जा रहा हूँ। शेष रकम किताबें मिलते ही आपके बैंक खाते में जमा कर देंगे। किताबों की मूल कीमत पर उचित छूट दीजिए। स्मरण रहे कि सभी पुस्तकें ठीक स्थिति में होनी चाहिए।
किताबों की सूची -
  राजनीति शास्त्र प्रथम वर्ष - 5 प्रतियाँ
  अर्थशास्त्र प्रथम वर्ष - 10  प्रतियाँ
  भारत का इतिहास - एस. के. चंद - 8 प्रतियाँ
  शतरंज के खिलाड़ी - मुंशी प्रेमचंद - 5 प्रतियाँ
  मेलुहा के मृत्युंजय - अमीश त्रिपाठी - 2 प्रतियाँ
  आशा हैं कि आप यथाशीघ्र किताबें भेजने का प्रबंध करेंगे।
सधन्यवाद !!!
भवदीय,
दीपक

दीपक शुक्ला,
पुस्तकाध्यक्ष,
डी. ए. वी. गर्ल्स कॉलेज,
मेस्टन रोड,
लखनऊ -111 111
deepakshukla@gmail.com
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अनौपचारिक - ई-पत्र क्रमांक १ 
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विषय : परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के उपलक्ष्य में बधाई पत्र।

24 सितंबर 2020 
दीपक यादव
deepakyadav@gmail.com

प्रिय मित्र दीपक,
सप्रेम नमस्ते!
मुझे विश्वास है कि आप सभी कुशल मंगल होंगे। आज सुबह समाचार पत्र से से ज्ञात हुआ कि तुम बोर्ड परीक्षा में दिल्ली में प्रथम आए हो। यह समाचार को पढ़कर मेरा मन ख़ुशी से भर आया। तुम्हें हार्दिक-हार्दिक बधाइयाँ !
मुझे तो पहले से ही विश्वास था कि तुम प्रथम श्रेणी में अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होंगे लेकिन यह जानकार कि तुमने प्रथम श्रेणी के साथ-साथ जिले में भी प्रथम स्थान प्राप्त किया है, मेरी प्रसन्नता की सीमा न रही। इस परीक्षा के लिए तुम्हारे कठिन परिश्रम ने ही वास्तव में तुम्हें सफलता की इस ऊँचाई तक पहुँचाया है। मुझे तो पहले से ही पूरी आशा थी की तुम्हारा परिश्रम रंग अवश्य ही दिखाएगा और मेरा अनुमान सच साबित हुआ। तुमने प्रथम स्थान प्राप्त कर यह दिखा दिया कि दृढ संकल्प और कठिन परिश्रम से कुछ भी प्राप्त किया जा सकता है।
मैं सदैव यह कामना करता हूँ कि तुम ऐसे ही जीवन की हर परीक्षा में प्रथम आओ और इसी प्रकार अपने परिवार का और अपने विद्यालय का नाम रौशन करो। आपके परिजनों को सादर चरणस्पर्श। 
तुम्हारा मित्र,
आकाश

आकाश मिश्रा, 
११ बी विकासखंड,
लखनऊ-२५ 
makash@gmail.com  
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अनौपचारिक - ई-पत्र क्रमांक २  
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विषय : पिता द्वारा पुत्र को समय के सदुपयोग पर पत्र

24 सितंबर 2020
राहुल भंडारी
rahul@gmail.com 

प्रिय राहुल
बहुत-बहुत आशीष!
आशा है तुम स्वस्थ और प्रसन्न होंगे। पिछले शनिवार को ही तुम्हारा पत्र मिला था। यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि तुम्हारा मन छात्रावास में लग रहा है। कल तुम्हारे छात्रावास अधीक्षक से बात हुई थी। पता चला कि तुम इधर-उधर घूमने में बहुत रूचि लेते हो।
बेटे ! हमने तुम्हे छात्रावास में इस आशा और विश्वास के साथ भेजा है कि तुम खूब ध्यान से पढ़ोगे। जब से तुम्हारी माँ ने यह सुना है कि तुम ठीक से पढ़ाई न करके मित्रों के साथ घुमते रहते हो, तब से वह बहुत अधिक चिंतित रहने लगी है। तुम अपनी माँ को जानते हो। वह बहुत अधिक चिंता करती है। तुम पढ़ाई में मन लगाओ और माँ को पत्र लिखकर विश्वास दिलाओ कि तुम्हें पढ़ाई की पूरी चिंता है। यहाँ परिवार में सब कुशलमंगल हैं।
मुझे विश्वास है कि तुम हमारा विश्वास जीतोगे। हार्दिक मंगल कामनाएँ!  
तुम्हारा पिता,
प्रशांत

प्रशांत भंडारी
29/623
नोएडा - 25 ( उत्तर प्रदेश )
prashantb@gmail.com
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अनौपचारिक - ई-पत्र क्रमांक ३

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विषय : एक दिन अपने साथ बिताने हेतु मित्र को आमंत्रित करते हुए पत्र

24 सितंबर 2020
रेशमा राणे
107 सुभाष नगर 
नई दिल्ली- 110027 
reshamarane@gmail.com

प्यारी रेशमा,
सप्रेम नमस्ते !
मुझे विश्वास है कि तुम और तुम्हारे अभिभावक सकुशल होंगे। तुझे पता है कि हम दोनों का अगले सप्ताह बुधवार को अवकाश का दिन है। हमें मिले हुए बहुत समय हो गया है। अगर उस दिन तुम्हारी कोई और योजना नहीं है तो तुम एक दिन के लिए यहाँ क्यों नहीं आ जाती?  हम कहीं पिकनिक पर चले जाएँगे या पास के सिनेमाघर में फिल्म देखने जाएँगे। 
कृपया अवश्य आना और मना मत करना। मेरी माँ और पिता जी  तुम्हारे बारे में पूछ रहे हैं। वे दोनों तुम्हे देखकर बहुत खुश होंगे। तुम्हारे माता-पिता को सादर अभिवादन!
अपने आने के बारे में शीघ्र व अवश्य लिखना। शेष बातें मिलने पर करेंगे। 
तुम्हारी सखी, 
जैसमिन

जैसमिन कालरा,
107 सुभाष नगर, 
नई दिल्ली- 110027 
jaiskalara@gmail.com 
 
***
लेखन एवं संकल्पना
मच्छिंद्र भिसे ©®
सातारा (महाराष्ट्र)
9730491952

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hinditeacherssatara.blogspot.in 
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Thursday, 3 May 2018

साहित्यिक मित्र डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी

मेरे साहित्यिक मित्र
डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी 

               हिंदी साहित्य की हास्य व्यंग्य विधा आज सिर्फ मनोविनोद, मनोरंजन, आत्मिक आनंद न रहकर
सामाजिक चेतना, जन-जागृति, मानवी संवेदनाओं का परिचय देनेवाली सशक्त विधा बन रही हैं। और ऐसे साहित्य का निर्माण होना भी बेहद जरुरी हैं। आज समाज वाचन परंपरा से दूर होकर आधुनिक तकनिकी का मुलाजिम बनकर अपने-आपको बौना बना रहा हैं। ऐसी अवस्था में समाज के संवेदनशील एवं मानवीय विचारों को कुंठित बनने से बचाने का एक मात्र उपाय यह है कि इस दिशा में साहित्यकारों की कलम चले और एक सुज्ञ पाठक वर्ग तक पहुंचे ताकि समाज में परिवर्तन ला सके। जब-जब देश की बुनियाद हिलने लगती हैं, तब-तब साहित्य ने ही उसे सँवारा हैं - यह वचन हैं हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यिक रामधारी सिंह 'दिनकर' जी के। सचमुच आज बदलते परिवेश में इसकी नितांत आवश्यकता हैं। और इस दिशा में अपनी कलम चलाने का काम हिंदी साहित्य के विद्वजन कर रहे हैं इसका अनुभव हाल ही में हुआ। इस श्रृंखला की मजबूत कड़ी हैं, हिंदी साहित्य की हास्यव्यंग्य विधा के सशक्त लघुकथाकार एवं सन १९९६ में माननीय राष्ट्रपति महोदय के करकमलों द्वारा 'काका हाथरसी व्यंग्य पुरस्कार' से सम्मानित साहित्यमहर्षि डॉ.घनश्याम अग्रवाल जी । 
               
              आदरणीय डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी का परिचय हाल ही में हुआ। बुधवार दिनांक ११ अप्रैल २०१८ सुबह १० बजे का समय था। मैं महाराष्ट्र राज्य शिक्षा विभाग की ओर से लाए पुनर्रचित पाठ्यक्रम प्रशिक्षण समारोह के लिए 'द्रविड़ हाईस्कूल, वाई, जिला सातारा' में पाठ्यपुस्तक का परिचय कराने हेतु परामर्शदाता के नाते उपस्थित था।  कक्षा १० वीं के नविन पाठ्यपुस्तक को पढ़ते समय डॉ. घनश्याम अग्रवाल द्वारा रचित 'वाह रे ! हमदर्द' हास्यव्यंग्य विधा की रचना पढ़ने को मिली। यह रचना पढ़कर आपसे बातचीत करने की जिज्ञासा  हुई। मैंने फेसबुक पर आपके नाम की खोज की और सौभाग्य से आपके बारे में कुछ जानकारी पता चली। वहाँ आपके कुछ ग्रीटिंग पढ़ने को मिलें। आपने मानवी संवेदनाओं को लेकर कई ग्रीटिंग लिखें हैं और आप लिखते भी हो। उन्हीं ग्रीटिंग के नीचे आपका मोबाईल नंबर मिला। मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा। 

               मैंने तुरंत नंबर मिलाया। अपना परिचय देते हुए डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी की रचना पाठ्यपुस्तक में अध्ययन-अध्यापन को लगने की बधाईयाँ दी। बधाईयों का स्वीकार करते हुए आपने धन्यवाद अदा किया। मैंने आपके सामने एक निवेदन किया कि आप हमारे अध्यापकों के साथ बातचीत करेंगे तो हमें बहुत ख़ुशी मिलेगी। आपने हँसते हुए कहा कि यह  सौभाग्य की बात हैं क्योंकि मैं स्वयं भी अवकाशप्राप्त अध्यापक हूँ।  अन्य बातें भी हुई और दोपहर सवा दो बजे अध्यापकों के साथ वार्तालाप करने के वादे के साथ हमारी पहली बातचीत करीब बीस मिनट तक चली। हमारा नियत प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न हो रहा था। मैंने अध्यापकों को इस बात को लेकर सूचित किया। वे सभी आनंदित थे क्योंकि जिनकी रचना का अध्यापन करना हैं उनसे ऑडिओ के माध्यम से बातचीत करने का मौका जो मिलनेवाला था। दोपहर का वह समय भी आ गया। मैंने आपसे बातचीत करने की पूरी तैयारी की थी। समय पर मोबाईल नंबर मिलाया और अगले पल आदरणीय डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी हमारे साथ जुड़ गए। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। अपने परिचय से लेकर साहित्यिक लेखन तथा आज की जीवनशैली पर भी अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही अपनी रचना 'वाह रे ! हमदर्द' के लेखन के पीछे की घटना से अवगत कराया। बातचीत में अध्यापक और अग्रवाल जी इतने खो गए कि करीब आधे घंटे की लंबी बातचीत चली। और प्रत्यक्ष मिलने की अभिलाषा दोनों ओर से रखते हुए बातचीत को न चाहते हुए भी विराम देना पड़ा। 

(डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी से हुई बातचीत सुनने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें अथवा >>>>Download )
              मैंने शाम के वक्त आज के कार्यक्रम हेतु धन्यवाद अदा करने हेतु फिर एक बार फोन किया। डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी ने अपनी ओर से ख़ुशी व्यक्त करते हुए मेरा पोस्टल एड्रेस मँगवाया और कहा कि मेरी एक रचना और कुछ ग्रीटिंग भिजवा देता हूँ। मेरे लिए यह बात अत्यधिक सुखद थी। मैंने उसी श्याम मेरा पोस्टल एड्रेस व्हाट्सअप पर लिख भेजा। 
              कुछ आठ-दस दिन बीते ही थे। मैं पाठशाला से घर पहुँचा तो माँ ने कहा कि कोई पार्सल आया है। देखा तो मेरी खुशियों का ठिकाना न रहा वह तिथि थी - २१ अप्रैल २०१८ (शनिवार)। डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी ने अपनी कृति 'अपने-अपने सपने' तथा चार ग्रीटिंग भेजे थे और एक ग्रीटिंग पर मेरे लिए 'शुभसंदेश के साथ अभिष्टचिंतन' भेजे थे। मेरे जीवन के अनमोल क्षणों में से वह एक क्षण था। सभी ग्रीटिंग पढ़े तथा लघुकथा संग्रह में से कुछ रचनाएँ पढ़ी। सोमवार दिनांक २३ अप्रैल के  दिन १० वीं कक्षा में मैं यह ग्रीटिंग और किताब लेकर गया। छात्रों को ग्रीटिंग पढ़कर सुनवाएँ तथा लघुकथा संग्रह में से कुछ रचनाएँ मैंने पढ़ी थी उनकी प्रस्तुति की। विद्यार्थियों ने ग्रीटिंग की फोटोकापी लेने की मनषा व्यक्त की तो उन्हें मैंने ग्रीटिंग दे दिए और फोटोकापी लेने को कहा और विद्यार्थियों से वादा किया कि लघुकथा संग्रह की रोचक कहानियाँ भी सुनाऊंगा। विद्यार्थियों ने भी आपसे वार्तालाप करने की इच्छा व्यक्त की हैं। वह भी शुभ दिन आएगा।

             अब समय-समय मोबाईल पर अपनी बातचीत होती हैं। जब भी आपसे वार्तालाप करता हूँ मन को एक सकून-सा मिल जाता हैं। 

         आपका सरल एवं सीधा-साधा स्वभाव भा जाता हैं। ईश्वर आपको दीर्घायु के साथ स्वास्थ्य शरीरसंपदा प्रदान करें। माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे, पारिवारिक सुख मुलेन तथा आपकी हर अभिलाषा निश्चित समय पर पूरी हो। इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ -

आपका एवं आपके साहित्य का प्रेमी एवं हितचिंतक 
मच्छिंद्र भिसे 
अध्यापक 
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श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
अध्यापक 
ग्राम भिरडाचीवाडी, पो.भुईंज, तह.वाई,
जिला-सातारा ४१५ ५१५ (महाराष्ट्र)
चलित : ९७३०४९१९५२ / ९५४५८४००६३
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