मेरे साहित्यिक मित्र
डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी
हिंदी साहित्य की हास्य व्यंग्य विधा आज सिर्फ मनोविनोद, मनोरंजन, आत्मिक आनंद न रहकर
सामाजिक चेतना, जन-जागृति, मानवी संवेदनाओं का परिचय देनेवाली सशक्त विधा बन रही हैं। और ऐसे साहित्य का निर्माण होना भी बेहद जरुरी हैं। आज समाज वाचन परंपरा से दूर होकर आधुनिक तकनिकी का मुलाजिम बनकर अपने-आपको बौना बना रहा हैं। ऐसी अवस्था में समाज के संवेदनशील एवं मानवीय विचारों को कुंठित बनने से बचाने का एक मात्र उपाय यह है कि इस दिशा में साहित्यकारों की कलम चले और एक सुज्ञ पाठक वर्ग तक पहुंचे ताकि समाज में परिवर्तन ला सके। जब-जब देश की बुनियाद हिलने लगती हैं, तब-तब साहित्य ने ही उसे सँवारा हैं - यह वचन हैं हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यिक रामधारी सिंह 'दिनकर' जी के। सचमुच आज बदलते परिवेश में इसकी नितांत आवश्यकता हैं। और इस दिशा में अपनी कलम चलाने का काम हिंदी साहित्य के विद्वजन कर रहे हैं इसका अनुभव हाल ही में हुआ। इस श्रृंखला की मजबूत कड़ी हैं, हिंदी साहित्य की हास्यव्यंग्य विधा के सशक्त लघुकथाकार एवं सन १९९६ में माननीय राष्ट्रपति महोदय के करकमलों द्वारा 'काका हाथरसी व्यंग्य पुरस्कार' से सम्मानित साहित्यमहर्षि डॉ.घनश्याम अग्रवाल जी ।
आदरणीय डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी का परिचय हाल ही में हुआ। बुधवार दिनांक ११ अप्रैल २०१८ सुबह १० बजे का समय था। मैं महाराष्ट्र राज्य शिक्षा विभाग की ओर से लाए पुनर्रचित पाठ्यक्रम प्रशिक्षण समारोह के लिए 'द्रविड़ हाईस्कूल, वाई, जिला सातारा' में पाठ्यपुस्तक का परिचय कराने हेतु परामर्शदाता के नाते उपस्थित था। कक्षा १० वीं के नविन पाठ्यपुस्तक को पढ़ते समय डॉ. घनश्याम अग्रवाल द्वारा रचित 'वाह रे ! हमदर्द' हास्यव्यंग्य विधा की रचना पढ़ने को मिली। यह रचना पढ़कर आपसे बातचीत करने की जिज्ञासा हुई। मैंने फेसबुक पर आपके नाम की खोज की और सौभाग्य से आपके बारे में कुछ जानकारी पता चली। वहाँ आपके कुछ ग्रीटिंग पढ़ने को मिलें। आपने मानवी संवेदनाओं को लेकर कई ग्रीटिंग लिखें हैं और आप लिखते भी हो। उन्हीं ग्रीटिंग के नीचे आपका मोबाईल नंबर मिला। मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।
मैंने तुरंत नंबर मिलाया। अपना परिचय देते हुए डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी की रचना पाठ्यपुस्तक में अध्ययन-अध्यापन को लगने की बधाईयाँ दी। बधाईयों का स्वीकार करते हुए आपने धन्यवाद अदा किया। मैंने आपके सामने एक निवेदन किया कि आप हमारे अध्यापकों के साथ बातचीत करेंगे तो हमें बहुत ख़ुशी मिलेगी। आपने हँसते हुए कहा कि यह सौभाग्य की बात हैं क्योंकि मैं स्वयं भी अवकाशप्राप्त अध्यापक हूँ। अन्य बातें भी हुई और दोपहर सवा दो बजे अध्यापकों के साथ वार्तालाप करने के वादे के साथ हमारी पहली बातचीत करीब बीस मिनट तक चली। हमारा नियत प्रशिक्षण कार्यक्रम संपन्न हो रहा था। मैंने अध्यापकों को इस बात को लेकर सूचित किया। वे सभी आनंदित थे क्योंकि जिनकी रचना का अध्यापन करना हैं उनसे ऑडिओ के माध्यम से बातचीत करने का मौका जो मिलनेवाला था। दोपहर का वह समय भी आ गया। मैंने आपसे बातचीत करने की पूरी तैयारी की थी। समय पर मोबाईल नंबर मिलाया और अगले पल आदरणीय डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी हमारे साथ जुड़ गए। बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। अपने परिचय से लेकर साहित्यिक लेखन तथा आज की जीवनशैली पर भी अपने विचार व्यक्त किए। साथ ही अपनी रचना 'वाह रे ! हमदर्द' के लेखन के पीछे की घटना से अवगत कराया। बातचीत में अध्यापक और अग्रवाल जी इतने खो गए कि करीब आधे घंटे की लंबी बातचीत चली। और प्रत्यक्ष मिलने की अभिलाषा दोनों ओर से रखते हुए बातचीत को न चाहते हुए भी विराम देना पड़ा।
(डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी से हुई बातचीत सुनने के लिए तस्वीर पर क्लिक करें अथवा >>>>Download )
मैंने शाम के वक्त आज के कार्यक्रम हेतु धन्यवाद अदा करने हेतु फिर एक बार फोन किया। डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी ने अपनी ओर से ख़ुशी व्यक्त करते हुए मेरा पोस्टल एड्रेस मँगवाया और कहा कि मेरी एक रचना और कुछ ग्रीटिंग भिजवा देता हूँ। मेरे लिए यह बात अत्यधिक सुखद थी। मैंने उसी श्याम मेरा पोस्टल एड्रेस व्हाट्सअप पर लिख भेजा।
कुछ आठ-दस दिन बीते ही थे। मैं पाठशाला से घर पहुँचा तो माँ ने कहा कि कोई पार्सल आया है। देखा तो मेरी खुशियों का ठिकाना न रहा वह तिथि थी - २१ अप्रैल २०१८ (शनिवार)। डॉ. घनश्याम अग्रवाल जी ने अपनी कृति 'अपने-अपने सपने' तथा चार ग्रीटिंग भेजे थे और एक ग्रीटिंग पर मेरे लिए 'शुभसंदेश के साथ अभिष्टचिंतन' भेजे थे। मेरे जीवन के अनमोल क्षणों में से वह एक क्षण था। सभी ग्रीटिंग पढ़े तथा लघुकथा संग्रह में से कुछ रचनाएँ पढ़ी। सोमवार दिनांक २३ अप्रैल के दिन १० वीं कक्षा में मैं यह ग्रीटिंग और किताब लेकर गया। छात्रों को ग्रीटिंग पढ़कर सुनवाएँ तथा लघुकथा संग्रह में से कुछ रचनाएँ मैंने पढ़ी थी उनकी प्रस्तुति की। विद्यार्थियों ने ग्रीटिंग की फोटोकापी लेने की मनषा व्यक्त की तो उन्हें मैंने ग्रीटिंग दे दिए और फोटोकापी लेने को कहा और विद्यार्थियों से वादा किया कि लघुकथा संग्रह की रोचक कहानियाँ भी सुनाऊंगा। विद्यार्थियों ने भी आपसे वार्तालाप करने की इच्छा व्यक्त की हैं। वह भी शुभ दिन आएगा।
अब समय-समय मोबाईल पर अपनी बातचीत होती हैं। जब भी आपसे वार्तालाप करता हूँ मन को एक सकून-सा मिल जाता हैं।
आपका सरल एवं सीधा-साधा स्वभाव भा जाता हैं। ईश्वर आपको दीर्घायु के साथ स्वास्थ्य शरीरसंपदा प्रदान करें। माँ सरस्वती की कृपा बनी रहे, पारिवारिक सुख मुलेन तथा आपकी हर अभिलाषा निश्चित समय पर पूरी हो। इन्हीं मंगलकामनाओं के साथ -
आपका एवं आपके साहित्य का प्रेमी एवं हितचिंतक
मच्छिंद्र भिसे
अध्यापक
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