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Wednesday, 14 February 2018

गौरैया - सुरेश तन्मय

गौरैया पर एक रचना प्रस्तुत है--

रोज सबेरे खिड़की पर
गौरैया आती है
और चोंच से टिक-टिक कर
वह मुझे जगाती है।

उठते ही मैं उसे देख
पुलकित हो जाता हूं
पूर्व जन्म का रिश्ता
कोई अपना पाता हूं
चीं चीं चीं चीं करते
जाने क्या कह जाती है........

आँगन में कुछ दाने
चावल के बिखेरता हूँ
बाहर टंगे सकोरे में
पानी भर देता हूँ
रोज सुबह इस पानी से
वह खूब नहाती है...........

चहचहाहटें घर में
मेरे सुबह शाम रहती
इन पंखेरुओं की चीं चीं
सब चिंताएं हरती
साँझ,ईश वंदन,कलरव
के मन्त्र सुनाती है............

मिलकर गले लगाएं
इस भोली गौरैया को
और सुरक्षा - संरक्षण
इस सोन चिरैया को
घर आँगन में जो सदैव
खुशियाँ बरसाती है...
रोज सबेरे खिड़की पर
गौरैया आती है।

सुरेश तन्मय

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