प्रगति के मुँह में लगा कलंक
भ्रष्ट व्यवस्था - जिम्मेदारी,
ज्यों छत्तिस का अंक।
प्रगति के मुँह में लगा कलंक।
किसकी किससे कौन कहेगा,
कब तक अत्याचार सहेगा।
जनगणमन की आशाओं का
धुंधला हुआ मयंक।
प्रगति के मुँह में लगा कलंक।
मैं बोलूँ ! तुम सुनो ...,
और न खोले कोई जुबान।
गुस्ताखी की सजा सोच लो,
जो खा चुके..., किसान।
ये विकास का पीट ढ़िंढोरा
खुद बन बैठे शंख।
प्रगति के मुँह में लगा कलंक।
गंगा की सौगंध उठालें,
गौ-माता की कसमें खालें।
इनसे नीति धरम का रिश्ता
ज्यों बिच्छू का डंक ...।
प्रगति के मुँह में लगा कलंक।
गीत-डाॅ.मोहन तिवारी‘आनंद’
दोहे
पंचतत्व से घट बना, आये दस के काम।
दूजे को सुख बाँटकर, पाये खुद आराम।।
प्रेम मोहब्बत से जिओ, बैर-बुराई-त्याग।
दिल देकर दिल जीतिये, कर सच्चा अनुराग।।
छुरा-तमंचा से नहीं, कोई पाया जीत।
प्रेम और सद्भाव से, जग को बाँधे प्रीति।।
संस्कार मत भूलना, ये भारत के लोग।
दुनियाँ पीछे चलेगी, आयेगा संयोग।।
चाहो हिंसा जीतना, करो अहिंसक काम।
दुनिया में हो जायेगा, बापू जैसा नाम।।
डॅा.मोहन तिवारी ‘आनंद’
नाचें गाएँ मौज मनाएँ।
ये जीवन का बीज मंत्र है,
आओ हमसब खुशी मनाएँ।
नाचें गाएँ मौज मनाएँ।
धरती माँ की गोद है प्यारी,
बड़ी अनौखी सबसे न्यारी।
इसने कोई न चाहत पाली,
परमारथ की नीति निराली।
बिना चलाए चले सतत् ये,
रचना समझ न पाएँ,नाचें गाएँ...।
लेना-लेना सबको भाया,
पर देने की चाह न आई।
जो देने में खुशी मिली है,
वाणी उसको कह न पाई।
आओ मांग-मांग को त्यागें,
कुछ तो जगती को दे जाएँ,नाचें गाएँ...।
हरी-भरी इस मस्त धरा पर,
जो भी आता खुश हो जाता।
मेरा - तेरा, तेरा - मेरा,
है केवल काया का नाता।
अहंकार की छोड़ चदरिया,
चलो चले मानुष बन जाएँ।
नाचें गाएँ मौज मनाएँ।
ये जीवन का बीज मंत्र है,
आओ हमसब खुशी मनाएँ।
नाचें गाएँ मौज मनाएँ।
उज्ज्वल तारे अपने देखे
हमने तो तेरी आँखों में
दुनियाँ भर के सपने देखे ।
तेरी सांसों में जीवन के
उज्ज्वल तारे अपने देखे।।
तुम ही हो ये जीवन मेरा
तुम ही आशाओं का बल हो।
तुमसे ही उम्मीद बंधी है
तुम ही कदम-कदम संवल हो।।
तुम पर जीवन न्योछावर कर
मार्ग सुगम सब अपने देखे
तेरी सांसों में जीवन के
उज्ज्वल तारे अपने देखे।।
मैंने तो तेरी बाहों में
खुद को खोया जग बिसराया।
केवल नयन झील में तेरी
शक्ति, चैन, सहारा पाया।।
बची हुई हर सांस -सांस में
नाम तुम्हारे जपने देखे।।
तेरी सांसों में जीवन के
उज्ज्वल तारे अपने देखे।।
मेरी कथनी पर यकीन कर
अपनी बाहों में अपनालो।
सच्चे मन से जनम-जनम को
मुझको अपना मीत बनालो।।
सदियाँ याद रखें हम दोनों
चित्र रचे सब जग ने देखे।।
हमने तो तेरी आँखों में
दुनियाँ भर के सपने देखे।
तेरी सांसों में जीवन के
उज्ज्वल तारे अपने देखे।।
डॅा.मोहन तिवारी ‘आनंद’
विकट समय आया
बदला रूप तुम्हारा देखा,
गिरगिट घबराया।
अरे राम ! क्या देख रहा हूँ
विकट समय आया।
खरबूजे की सुनी हुई थी,
दादी कही कहानी।
किन्तु आज जब आँखों देखी
याद आ गई नानी।
लगता है अवतार विभीषण
ने फिर दोहराया।
अरे राम ! क्या देख रहा हूँ
विकट समय आया।
कहाँ ढूँढ़ते भटक रहे तुम
विश्वसनीय सखा।
ये क्यों भूले आस्तीन में,
अपनी पाल रखा।
मौका मिला कि तुरत लपककर
झट से डस खाया।
अरे राम ! क्या देख रहा हूँ
विकट समय आया।
डॅा.मोहन तिवारी ‘आनंद’
उसने न पहचाना।।
उसने न पहचाना।।
प्यार की परिभाषा न समझा
ये खुदगर्ज जमाना।
मैंने कितना चाहा
लेकिन उसने न पहचाना।।
प्यार की व्यथा निराली
जमाना देता गाली।
प्यार के बिना जिन्दगी
लगे है खाली खाली ।।
प्यार की इस नांदा नगरी में
सब का आना जाना।
मैंने कितना चाहा लेकिन
उसने न पहचाना।।
बिना कलम काजल के लिखता
ये जग प्रेम कहानी।
बांच न पाया, समझ सका न,
इस जग की नादानी।।
आंखों की दरिया में ढूंढे,
ये पागल दीवाना।।
मैंने कितना चाहा
लेकिन उसने न पहचाना।।
प्यार की कोई जात नहीं,
होता है न मजहब।
पता नहीं किससे हो जाता,
प्यार कहां पर कब।।
प्यार का दरिया बड़ा अनौखा
डूब के मौज मनाना।।
मैंने कितना चाहा
लेकिन उसने न पहचाना।
प्यार की परिभाषा न समझा
ये खुदगर्ज जमाना।
मैंने कितना चाहा
लेकिन उसने न पहचाना।।
डॅा.मोहन तिवारी ‘आनंद’
डॅा.मोहन तिवारी ‘आनंद’
वे दिन कब आने वाले हैं,
झूम उठेगी धरा मौज से अन्न भरे होंगे खलिहान।
न कोई बेकार फिरेगा, हर्षित होंगे श्रमिक किसान।
खुशियों की बौछारें होंगी , सब दुर्दिन जाने वाले हैं।
वे दिन कब आने वाले हैं।
चोरी-लूट, डकैती का न देगा नाम सुनाई,
कमजोरों पर सीनाजोरी देगी नहीं दिखाई।
रामराज के सुखद दिवस दोहराने वाले हैं।
वे दिन कब आने वाले हैं।
मन्दिर-मस्जिद, गुरुद्वारों में भेदभाव का होगा अंत,
प्रेमभाव-भाईचारे की गूंजे लय-घ्वनि ताल अनन्त।
जाति-धर्म, मजहब के झगड़े विगत लाके जाने वाले हैं।
वे दिन कब आने वाले हैं।
काम के बदले दाम मिले होगा शोषण का अंत,
भ्रष्टाचार समूल नष्ट ईमान का राज सुखन्त।
नेता जी जनता का हित अपनाने वाले हैं.।
वे दिन कब आने वाले हैं।
हे प्रभु इनकी पूरी करदो, जो-जो बोली वानी,
इनके खातिर हम वृत रखलें बिन भोजन बिन पानी।
इनको सारे यश-सुख दे दो, परहित करवाने वाले हैं
वे दिन कब आने वाले हैं।
डॅा.मोहन तिवारी ‘आनंद’
हौंठ पर हंसी कहां से लाएं,
दिल के अन्दर मचा बवण्ड,
लब कैसे मुस्काएं, हौंठ पर हंसी ...।
प्रतिबंधित है श्वांस, समझ में आते न हालात,
दिन में चैन नहीं मिलता है,नींद न आती रात।
कोसों दूर खुशी के डेरे, पल-पल चित्त उदास,
लगाएं किससे कैसी आश।
जिधिर ताकती नजरें सम्मुख अंधकार आएं।
हौंठ पर हंसी कहां से लाएं।
जीवन भर जितना बन पाया, परहित को साधा।
पता नहीं क्या चूक हो गई, जो घेरी बाधा।
ये सच है कि कभी विधाता करता नहीं अनीत,
भला करे से भला मिलेगा, सत्य कर्म की रीति।
केवल रह जाती है पीछे कहने वाली बात
वक्त तो आए-जाए,
दिल के अन्दर मचा बवण्ड,लब कैसे मुस्काएं,
हौंठ पर हंसी कहां से लाएं।
डॅा.मोहन तिवारी ‘आनंद’
ये जीवन का बीज मंत्र है,
आओ हमसब खुशी मनाएँ।
नाचें गाएँ मौज मनाएँ।
धरती माँ की गोद है प्यारी,
बड़ी अनौखी सबसे न्यारी।
इसने कोई न चाहत पाली,
परमारथ की नीति निराली।
बिना चलाए चले सतत् ये,
रचना समझ न पाएँ,नाचें गाएँ...।
लेना-लेना सबको भाया,
पर देने की चाह न आई।
जो देने में खुशी मिली है,
वाणी उसको कह न पाई।
आओ मांग-मांग को त्यागें,
कुछ तो जगती को दे जाएँ,नाचें गाएँ...।
हरी-भरी इस मस्त धरा पर,
जो भी आता खुश हो जाता।
मेरा - तेरा, तेरा - मेरा,
है केवल काया का नाता।
अहंकार की छोड़ चदरिया,
चलो चले मानुष बन जाएँ।
नाचें गाएँ मौज मनाएँ।
ये जीवन का बीज मंत्र है,
आओ हमसब खुशी मनाएँ।
नाचें गाएँ मौज मनाएँ।
डॅा.मोहन तिवारी ‘आनंद’
सम्पकॆ- सुन्दरम बंगला,50,महाबली नगर कोलार रोड भोपाल-462042
मोबा-98272 44327
8989439312
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