इस ब्लॉग पर सभी हिंदी विषय अध्ययनार्थी एवं हिंदी विषय अध्यापकों का हार्दिक स्वागत!!! मच्छिंद्र भिसे (हिंदी विषय शिक्षक, कवि, संपादक)

संधी

संधि
निकट स्थित दो वर्णो के मेल से होने वाला परिवर्तन संधि कहलाता है।

जैसे: वाक् + ईश - वागीश, रमा + ईश - रमेश

संधि के मुख्यतः तीन भेद है।

स्वर संधि: स्वर + स्वर
व्यंजन संधि: स्वर/व्यंजन + व्यंजन/स्वर(कम से कम एक तरफ व्यंजन जरूरी)
विसर्ग संधि: विसर्ग से पहले स्वर(ः) + स्वर/व्यंजन
उदाहरण
नि + सिद्ध

यहां 'नि' में 'न्' व्यंजन है तथा ' ि' स्वर है। अतः नि स्वर है क्योंकि नि - न् + इ

इसी प्रकार 'सि' में 'स्' व्यंजन है तथा ' ि' स्वर है अतः सि - स् + इ

इस प्रकार नि + सि: न् + इ + स् + इ + द्ध: निषिद्ध

यहां यदि 'स' से पहले 'अ, आ' से भिन्न कोई स्वर आये तो स का ष हो जाता है।

तथ्य
+ से पहले स्वर सदैव मात्रा के रूप में पाया जाता है अर्थात + से पहले व्यंजन में जो मात्रा लगी हो + से पहले वही स्वर होगा।

+ से पहले व्यंजन तभी माने जब व्यंजन के निचे हल( ् ) का चिन्ह लगा हो।

जैसे: क् ख् ग्।

+ के बाद स्वर तभी माने जब स्वर अपने वास्तविक रूप में हो।

जैसे: अ आ इ ई उ ओ।

+ के बाद यदि मात्रा लगा व्यंजन आये तो व्यंजन ही माना जायेगा।

जैसे: क , की , कु इनमें व्यंजन क ही माना जायेगा क्योंकि 'क' : क्+अ ।

स्वर संधि
निकट स्थित दो स्वरों के मेल से होना वाला परिवर्तन स्वर संधि कहलाता है।

इसके पांच भेद है।

दीर्घ स्वर संधि
गुण स्वर संधि
वृद्धि स्वर संधि
अयादि स्वर संधि
यण् स्वर संधि
तथ्य
किसी भी शब्द का विच्छेद करें + से पहले तथा + के बाद सार्थक व शुद्ध शब्द होना अनिवार्य है। अन्यथा विच्छ्रेद गलत होगा।

विच्छेद करने का अभिप्राय संन्धि युक्त पद में विधमान शब्दों को पहचान कर उन्हें शुद्ध रूप में लिखते हुए उनके मध्य + का निशान लगाना(अयादि स्वर संधि को छोड़कर) है।

जैसे: महेन्द्र - महा + इन्द्र

यहां दोनों शब्द अर्थ पुर्ण है।

दीर्घ स्वर संधि

मुख्यतः' ा',' ी',' ू' ,' ृ' की मात्रा वाला शब्दों में दीर्घ संधि होती है।

अ/आ + अ/आ - आ/p>

इ/ई + इ/ई - ई

उ/ऊ + उ/ऊ - ऊ

ऋ + ऋ - ऋ

महाशय - मह् अ/आ + अ/आ शय - महा + आशय

यहां पर आपको ध्यान रखना है कि संधि विच्छेद से बने दोनों शब्द अर्थ पुर्ण है या नहीं

गिरीश्वर - गिर इ/ई + इ/ई - गिरि + ईश्वर

इसी प्रकार

भानूदय - भानु + उदय

पितृण - पितृ + ऋण

मातृण - मातृ + ऋण

होतृकार - होतृ + ऋकार

रत्नाकर - रत्न + आकर

गीत + अंजलि - गीतांजलि

परम + अर्थ - परमार्थ

रवि + इंद्र -रवींद्र

मुनि + इंद्र - मुनीद्र

अभि + ईप्सा - अभीप्सा(इच्छा)

तथ्य
संधि विच्छेद में समस्या इ/ई की मात्रा में आती है कि हम संधि विच्छेद के बाद कोनसी मात्रा लगाये इसके लिए

यदि + के बाद (इ/ई) के बाद श्, श, प्स, क्ष आये तो बड़ी ई आयेगी।

जैसे: परीक्षण - परि + ईक्षण

इसके अलावा इ/ई के बाद कोई भी व्यंजन हो छोटी इ आयेगी।

जैसे: महीन्द्र - मही + इन्द्र

+ से पहले यदि शब्द स्त्री लिंग होतो बड़ी ई आयेगी ।

जैसे: नदीव - नदी - इव

+ से पहले यदि पुलिंग हो तो छोटी इ आयेगी।

जैसे: देवीष्ट - देव - इष्ट

यहि नियम उ/ऊ के लिए भी होते हैं।

यदि + के बाद(उ/ऊ) के बाद ऊर्जा,ऊष्मा,ऊर्मि,ऊध्र्व,ऊढा, ऊरू, ऊह के अलावा कोई शब्द आये तो छोटा उ आयेगा।

जैसे: भूपरि - भू + उपरि

+ से पहले यदि शब्द स्त्री लिंग होतो बड़ा ऊ आयेगा।

जैसे: सरयूर्मि - सरयू + ऊर्मि

+ से पहले यदि पुलिंग हो तो छोटा उ आयेगा।

जैसे: अनुदित: अनु + उदित
यहां पर कुछ उदाहरण है जिन्हें आप करके देखें ध्यान रहे सबसे पहले इनके टुकड़े करें।

जैसे नगारि - नग् अ/आ + अ/आ रि - नग + अरि

यहां दोनों शब्द अर्थ पुर्ण है नग - पहाड़, अरि - शत्रु यानि पहाड़ों का शत्रु इन्द्र

गुण स्वर संधि

मुख्यतः' े',' ो',' अर्' की मात्रा वाले शब्दों में गुण स्वर संधि होती है।

अ/आ + इ/ई - ए

अ/आ + उ/ऊ - ओ

अ/आ + ऋ - अर्

महेश्वर - मह् अ/आ + इ/ई श्वर - महा + ईश्वर

नवोदय - नव् अ/आ + उ/ऊ दय - नव + उदय

सप्तर्षि - सप्त् अ/आ + ऋ षि - सप्त + ऋषि

प्राप्त + उदक(जल) -प्राप्तोदक

पर + उपकार - परोपकार

सूर्य + उदय - सूर्योदय

महा + उदय - महोदय

महा + उत्सव - महोत्सव

देव + ऋषि - देवर्षि

वृद्धि स्वर संधि

मुख्यतः ै , ौ की मात्रा वाले शब्दों में वृद्धि स्वर संधि होती है।

अ/आ + ए/ऐ - ऐ

अ/आ + ओ/औ - औ

मतैक्य - मत् अ/आ + ए/ ऐ क्य - मत + ऐक्य

गंगौघ - गंग् अ/आ + ओ/औ घ - गंगा + ओघ

पुत्रैषणा - पुत्र् अ/आ + ए/ऐ षणा - पुत्र + एषणा

महौदार्य - मह् अ/आ + ओ/औ दार्य - महा + औदार्य

सदा + एव -सदैव

वसुधा + एव - वसुधैव

एक + एक - एकैक

महा + ऐश्वर्य - महैश्वर्य

तथ्य
+ के बाद वाले शब्द के अन्त में इक और य प्रत्यय आ जाये तो ऐ भी बड़ी और औ भी बड़ा अन्यता ए व ओ छोटा आयेगा। केवल एक शब्द औषधि में औ बड़ा आता है।

अयादि स्वर संधि

शब्दों में 'अय्' 'आय्' 'अव्' 'आव्' होगा।

य, व से पहले व्यंजन पर अ, आ की मात्रा होतो अयादि संधि हो सकती है। यदि और कोई विच्छेद नहीं होता हो।

+ के बाद वाले भाग को ज्यों का त्यों लिखना है चाहे शब्द जचे या न जचे।

अय् - े

आय् - ै

अव् - ो

आव् - ौ

तथ्य
अय्, आय्, अव्, आव् के बाद वाले भाग को ज्यों का त्यों लिखें।

+ से पुर्व अय् आय् अव् आव् को समाप्त करके इनकी जगह बनने वाली उपर्युक्त मात्राओं को इनसे पुर्व व्यंजन में लगाकर लिखे दें।

नयन - न् अय्( े) + अन - ने + अन

गायक - ग् + आय्( ै) + अक - गै + अक

पावन - प् + आव्( ौ) + अन - पौ + अन

गवीश - ग् + अव्( ो) + इश - गो + ईश

तथ्य
ष्, श्र, र + से पहले आये तो + के बाद ण का न हो जायेगा।

जैसे रावण - र् + आव् + अण - रौ + अन

यण् स्वर संधि

तीन प्रकार के संधि युक्त पद

1. य से पुर्व आधा व्यंजन हो

2. व से पुर्व आधा व्यंजन हो

3. शब्द में त्र हो

शर्त

य व त्र में स्वर हो उसी स्वर से सार्थक व शुब्द बने उसे + के बाद लिखें(य व त्र को समाप्त कर दें)।

विच्छेद

1. य से पुर्व आधा व्यंजन हो उसमें इ/ई की मात्रा से शुद्ध शब्द बनाकर लिखें।

मत्यनुसार - मति + अनुसार

2 व से पुर्व आधा व्यंजन हो उसके उ/ऊ की मात्रा से शुद्ध शब्द बनाकर लिखें।

मध्वाचमन - मधु + आचमन(पिना)

3. शब्द में त्र हो तो उसका तृ बनाकर लिखें तृ से केवल मातृ, पितृ, भातृ, होतृ में से ही कोई शब्द बनेगा।

मात्रनुमति - मातृ + अनुमति

रित्यानुसार - रिति + अनुसार

देव्यालय - देवी + आलय

तन्वंगी - तनु + अंगी

पररूप

प्र + एषक - प्रेषक

प्र + एषित - प्रेषित

प्र + एषण - प्रेषण

गुण संधि के अपवाद

प्र + ऊढ़ - प्रौढ़

अक्ष + ऊहिणी - अक्षौहिणी

स्व + ईरिणी - स्वैरिणी


व्यंजन संधि
अघोष घोष
प्रथम द्वितिय तिृतिय चतुर्थ पंचम स्वर
ड़ अ आ
इ ई
उ ऊ
द् ध् न्
प् भ् म् ए ऐ
श ष स य र ल व ह ओ औ
अघोष/घोष + घोष - किसी घोष में बदलेंगे

अघोष/घोष + अघोष - किसी अघोष में बदलेंगे

नियम 1

प्रथम + पंचम को छोड़ कोई घोष वर्ण - प्रथम अपने तृतीय में बदल जायेगा।

वाक् + दान - वाग्दान

दिक् + अम्बर - दिगम्बर

अप् + ज - अब्ज

वाक् + वज्र - वाग्वज्र

तत् + अर्थ - तदर्थ

षट् + आनन - षडानन

अप् + द - अब्द

उत् + अय - उदय

मृत् + अंग - मृदंग

उत् + यान - उद्यान(उद्यान)

तत् + रूप - तद्रूप(तद्रुप)

षट् + अंग - षडंग

चित् + आनन्द - चिदानन्द

वाक् + यंत्र - वाग्यंत्र

नियम 2

प्रथम + पंचम - प्रथम अपने पंचम में बदलेगा।

वाक् + मय - वाड्मय

सत् + माग - सन्मार्ग

उत् + नापक - उन्नायक

जगत् + नाथ - जगन्नाथ

दिक् + मण्डल - दिड़्मण्डल

तत् + मय - तन्मय

उत् + नति -उन्नति

प्राक् + मुख - प्राड़्मुख

षट् + मास - षण्मास

षट् + मूर्ति - षण्मूर्ति

षट् + मुख - षण्मुख

नोट - ऋ, र, ष के बाद न तो न का ण हो जाता है। कुछ अपवाद हैं।

नियम 3

चतुर्थ + चतुर्थ - पूर्व का चतुर्थ अपने तृतीय में बदलेगा।

दुध् + ध - दुग्ध

लभ् + ध - लब्ध

बुध् + धि - बुद्धि

शुध् + ध - क्षुब्ध

शुध् + ध - शुद्ध

बुध् + ध - बुद्ध

नियम 4

द् + अघोष वर्ण - द् का त् हो जायेगा।

सद् + संग - सत्संग

उद् + कृष्ट - उत्कृष्ट

संसद् + सदस्य - संसत्सदस्य

तद् + काल - तत्काल

उद् + कल - उत्कल

उद् + पात - उत्पात

उद् + सर्ग - उद् + सर्ग

नियम 5

त् + च, छ - त् का च्

उत् + चारण - उच्चारण

सत् + चरित्र - सच्चरित्र

महत् + छत्र - महच्छत्र

उत् + छेद - उच्छेद

शरत् + चन्द्र - शरच्चन्द

विधुत् + छटा - विधुच्छटा

नियम 6

त्/द् + ज/झ - त्/द् का ज्

सत् + जन - सज्जन

महत् + झंकार - महज्संकार

उत् + जैन - उज्जैन

विपद् + जाल - विपज्जाल

उत् + ज्वल - उज्ज्वल

जगत् + जननी - जगज्जननी

नियम 7

त् + ट - त् का ट्

त् + ड - त् का ड्

त् + ल - त् का ल्

तत् + टीका - तट्टीका

उत् + डयन - उड्डयन

तत् + लीन - तल्लीन

भगवत् + लीला - भगवल्लीला

बृहत् + टीका - बृहट्टीका

महत् + डमरू - महड्डमरू

सत् + टीका - सट्टीका

नियम 8

न् + ल - न् का ल् (न् अनुनासीक है तथा ल् निरानुनासिक है इसलिए नासिकता बचाये रखने के लिए अर्धअनुस्वार ँ )

महान् + लाभ - महाँल्लाभ

विद्धान् + विद्धाँल्लिखित

नियम 9

कोई भी स्वर + छ - बीच में च् आ जाएगा

अनु + छेद - अनुच्छेद

छत्र + छाया - छत्रच्छाया

वि + छेद - विच्छेद

परि + छेद - परिच्छेद

नियम 10

त् + श - त् का च् तथा श का छ बनेगा

सत् + शास्त्र - सच्छास्त्र

उत् + शिष्ट - उच्छिष्ट

तत् + शिव - तच्छिव

उत् + श्वसन - उच्छ्वसन

शरत् + शशि - शरच्छशि

श्रीमत् + शरत् + चन्द्र - श्रीमच्छरच्चन्द्र

नियम 11

त् + ह - त् का द् तथा ह का ध बनेगा

उत् + हरण - उद्धारण

पद् + हति - पद्धति

उत् + हृत - उद्धृत

नियम 12

म् + कोई व्यंजन आये तो म् का पूर्व वर्ण पर अनुस्वार

म् + किसी वर्ग का व्यंजन - म् की जगह वर्ग वाले व्यंजन का पंचम वर्ण

सम् + कीर्तन - संकीर्तन/सड़कीर्तन

सम् + चयन - संचयन

कम् + तक - कंटक/कन्टक

सम् + भावना - संभावना/सम्भावना

नियम 13

अ,आ भिन्न स्वर + स - तो स का ष

नि + संग - निषंग(जिसमें बाण रखे जाते हैं)

सु + सुप्त - सुषुप्त

सु + स्मिता - सुष्मिता

अभि + सेक - अभिषेक

विशे + स - विशेष

अपवाद

वि + स्मरण - विस्मरण

अनु + सार - अनुसार

नियम 14

ष् + त या थ - त का ट तथा थ का ठ

इष् + त - इष्ट

निकृष् + त - निकृष्ट

उपर्युक्त दोनों नियमों के संयुक्त उदाहरण

युधि + स्थिर - युधिष्ठिर

प्रति + स्थित - प्रतिष्ठित

प्रति + स्थान - प्रतिष्ठान

नियम 15

सम् + कृ(करना क्रिया) धातु से बना शब्द -म् का अनुस्वार पूर्व वर्ण पर तथा बीच में स् आ जायेगा

सम् + कृत - संस्कृत

सम् + कार - संस्कार

सम् + करण - संस्करण

सम् + कृति - संस्कृति

सम् + स्मरण - संस्मरण

सम् + स्मृति - संस्मृति

नियम 16

परि + कृ धातु से बना शब्द तो बीच में ष्

परि + कार - परिष्कार

परि + कृत - परिष्कृत

नियम 17

उत् + स्था से बना शब्द - शब्द के स् का लोप हो जाएगा।

उत् + स्थान - उत्थान

उत् + स्थित -उत्थित

उत् + स्थल - उत्थल

नियम 18

ऋ र ष + न - न का ण बनेगा

ऋ + न - ऋण

कृष् + न - कृष्ण

भर + न - भरण

भूष् + अन - भूषण

परि + मान - परिमाण

परि + नाम - परिमाण

दो संधियों के संयुक्त उदाहरण

राम + अयन - रामायण(दिर्घ + व्यंजन)

रौ + अन - रावण(अयादि + व्यंजन)

निः + नय - निर्णय(विसर्ग + व्यंजन)

नियम 19

अहम् + र को छोड़ कोई वर्ण आये - तो न् का र् बनेगा।

अहन् + मुख - अहर्मुख

अहन् + अह - अहरह

अहन् + निशा - अहर्निश

तथ्य
अहन् का अर्थ होता है दिन निशा का अर्थ है रात ये दोनों एक दुसरे के विलोम है और यदि दो विलोम शब्द एक साथ आयें तो अन्तिम स्वर का लोप होता है।

जैसे - दिवा-रात्रि - दिवारात्र

अहन् + र - न् की जगह ो कि मात्रा

अहन् + रात्रि - अहोरात्र

अहन् + रवि - अहोरवि

उदाहरण
स्वर व व्यंजन दोनों का उपयोग किस विकल्प में हुआ है -

1. सावधि 2. परीक्षा

3. रामायण 4. भूपरि


विसर्ग संधि
विसर्ग(:) + से पहले मुख्यतः 'र्',' ो',' श्',' ष्' ,'स्' का बनेगा(: + सार्थक शब्द), यदि इनके बाद संधि युक्त पद में इनके बाद सार्थक शब्द हो।

निर्विकल्प - निः + विकल्प

निराशा - निर् + आशा - निः + आशा

दुरूह - दुः + ऊह

मनोज - मनः +ज(जन्मा)

पयोद - पयः + द(देने वाला)

दुश्शासन - दुः + शासन

निष्काम - निः + काम

निस्तेज - निः + तेज

तथ्य
(:) विर्सग + के बाद अघोष वर्ण आये तो विर्सग का श्, ष्, स् बनेगा या विर्सग ज्यों का त्यों रहेगा।

विर्सग के बाद घोष वर्ण हो तो विसर्ग कि जगह 'र्' ' ो' बनेगी या: का लोप होगा।

विसर्ग किसी स्वर युक्त व्यंजन के बाद ही होता है। अतः विसर्ग से पहले व्यंजन में जिस स्वर की मात्रा हो विसर्ग से पहले वह स्वर मानें।

उदाहरण
संधि नियम का गलत प्रयोग कहां हुआ है।

मनः + कामना - मनोकामना

निः + का - निष्काम

निः + मम - निर्मम

ज्योतिः + मान - ज्योतिर्माण

उत्तर SHOW ANSWER

मनः + कामना - मनःकामना होता है। क्योकि विर्सग के बाद अघोष वर्ण आया है, और मनोकामना अशुद्ध शब्द है।

नियम 1

विसर्ग से पहले अ आ से भिन्न स्वर + बाद में काई घोष वर्ण - तो विसर्ग का र् बनेगा।

निः + नय - निर्णय

दुः + अवस्था - दुरवस्था

दुः + गति - दुर्गति

आशीः + वाद - आशीर्वाद

अपवाद

अन्तः/पुनः/अधः + घोष वर्ण - का र्

अन्तः + गत - अन्तर्गत

पुनः + जन्म - पुनर्जन्म

पुनः + गमन - पुनर्गमन

अन्त + आत्मा - अन्तरात्मा

अधः + ओष्ठ - अधरोष्ठ

नियम 2

विसर्ग (:) से पहले अ + घोष व्यंजन या अ - तो विसर्ग कि जगह ो की मात्रा बनेगी।

तथ्य
जहां विसर्ग की जगह ो कि मात्रा बने वहां वास्तव में विसर्ग का उ बनता है तथा उ पुर्व अ से मिलकर ओ कि मात्रा में बदल जाता है।

उदाहरण
निम्न में से विसर्ग का उ किस विकल्प में बना है-

1. निर्जन

2. दुरूपयोग

3. मनोरथ

4. दुःख

उत्तर SHOW ANSWER

मनः + हर - मनोहर

सरः + वर - सरोवर

पयः + धि - पयोधि

मनः + बल - मनोबल

यशः + गान - यशोगान

तमः + गुण - तमोगुण

यशः + बल - यशोबल

अधः + मुख - अधोमुख

तपः + वन - तपोवन

यशः + धरा - यशोधरा

तथ्य
अ: + अ आये तो -(:) विर्सग कि जगह ' ो' तथा अ की जगह 'ऽ' अवग्रह चिन्ह या अ का लोप होता है।

मनः + अवस्था - मनोऽवस्था/मनोवस्था

यशः + अनुकूल - यशोऽनुकूल

तपः + अनुसार - तपोनुसार

नियम 3

अ(:) + अ को छोड़ कोई भी स्वर आये तो विसर्ग का लोप हो जाता है।

अतः + एव - अतएव

मनः + उच्छेद - मनउच्छेद

मनः + उर - मनउर

मनः + ओज - मनओज

नियम 4

इ/उ(:) + र - विसर्ग(:) का लोप तथा विसर्ग से पूर्व हस्व स्वर(इ का ई, उ का ऊ) दिर्घ हो जाता है।

निः + रोग - नीरोग

दुः + राज - दुराज

निः + रन्ध्र - नीरन्ध्र

निः + रस - नीरस

दुः + रम्य - दूरम्य

नियम 5

: + च, छ, श(अघोष, तालव्य वर्ण) -: का श्

: + ट, ठ, ष(मूर्धन्य) -: का ष्

: + त, थ, स(दन्त्य) -: का स्

निः + चल - निश्चल

दुः + शासन - दुश्शासन

धनुः + टंकार - धनुष्टंकार

रामः + षष्ठ - रामष्षष्ठ

चतुः + टीका - चतुष्टीका

निः + तेज - निस्तेज

मनः + ताप - मनस्ताप

निः + संदेह - निस्संदेह/निःसंदेह

नियम 6

अ/आ (:) + क, ख, प, फ -: का स् या: ज्यों का त्यों रहेगा।

नमः + कार - नमस्कार

पुरः + कृत - पुरस्कृत

तिरः + कार - तिरस्कार

अधः + पतन - अघःपतन

पयः + पान - पयःपान

तपः + पूत - तपःपूत

रजः + कण - रजःकण

यशः + कामना - यशःकामना

मनः + कामना - मनःकामना

नियम 7

अ/आ से भिन्न + क, ख, प, फ -: का ष् या: ज्यों का त्यों रहेगा।

निः + काम - निष्काम

दुः + प्रभाव - दुष्प्रभाव

दुः + कर - दुष्कर

आविः + कृत - आविष्कृत

दुः + ख - दुःख

3 comments:

  1. दुराज ,दूराज
    दु‌‌्+राज

    ReplyDelete
  2. आपके नियम के अनुसार नदीव का नदी+ ईव क्यों नही हूआ?

    ReplyDelete