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Monday 4 June 2018

'ग़ज़ल' माणिक वर्मा भावार्थ

हिंदी लोकभारती - कक्षा १० वीं  
इकाई १ - पद्य ८ ग़ज़ल : माणिक वर्मा 

सभी अध्यापक भाई बहनों, 
सादर नमन !
          दसवीं कक्षा के पाठ्यपुस्तक में नई विधाओं का शामिल किया जाना, विद्यार्थियों एवं अध्यापकों की ज्ञानवृद्धि के लिए बहुत ही प्रशंसनीय बात है। इस साल पद्य विभाग में 'ग़ज़ल' विधा को शामिल किया है। वैसे तो ग़ज़लें हम सुनते - पढ़ते आए हैं। अब समय है ग़ज़ल को सूक्ष्मता से अध्ययन करना। तो चलिए ग़ज़ल विधा को समझते हुए अपनी किताब में शामिल माणिक वर्मा जी की 'गजल' को भी समझने की कोशिश करते हैं। 

ग़ज़ल विधा :
           ग़ज़ल अरबी साहित्य की प्रसिद्ध काव्य विधा है जो बाद में फ़ारसी, उर्दू, और हिंदी साहित्य में भी बेहद लोकप्रिय हुई। संगीत के क्षेत्र में इस विधा को गाने के लिए ईरानी और भारतीय संगीत के मिश्रण से अलग शैली निर्मित हुई। एक समान रदीफ़ (समांत) तथा भिन्न भिन्न क़वाफ़ी (तुकांत) से सुसज्जित एक ही वज़्न (मात्रा क्रम) अथवा बह'र (छंद) में लिखे गए अश'आर (शे'र का बहुवचन) समूह को ग़ज़ल कहते हैं जिसमें शायर किसी चिंतन, विचार अथवा भावना को प्रकट करता है।
ग़ज़ल की विशेषताएँ :
          ग़ज़ल एक ही बह'र और वज़्न के अनुसार लिखे गए शेरों का समूह है। इसके पहले शे'र को मतला कहते हैं। जिस शे'र में शायर अपना नाम रखता है उसे मक़्ता कहते हैं। ग़ज़ल के सबसे अच्छे शे'र को शाहे वैत कहा जाता है। एक ग़ज़ल में 5 से लेकर 25 तक शे'र हो सकते हैं। ये शे'र एक दूसरे से स्वतंत्र होते हैं। किंतु कभी-कभी एक से अधिक शे'र मिलकर अर्थ देते हैं। ऐसे शे'र कता बंद कहलाते हैं। ग़ज़लों के ऐसे संग्रह को 'दीवान' कहते हैं जिसमें हर हर्फ से कम से कम एक ग़ज़ल अवश्य हो। शे'र की हर पंक्ति को मिसरा कहते हैं। ग़ज़ल की ख़ास बात यह हैं कि उसका प्रत्येक शे'र अपने आप में एक संपूर्ण कविता होता हैं और उसका संबंध ग़ज़ल में आने वाले अगले पिछले अथवा अन्य शेरों से हो, यह ज़रूरी नहीं हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि किसी ग़ज़ल में अगर 25 शे'र हों तो यह कहना ग़लत न होगा कि उसमें 25 स्वतंत्र कविताएं हैं। शे'र के पहले मिसरे को ‘मिसर-ए-ऊला’ और दूसरे को ‘मिसर-ए-सानी’ कहते हैं।
प्रसिद्ध ग़ज़लकार- मिर्ज़ा ग़ालिब, मीर तकी मीर, फ़िराक़ गोरखपुरी आदि। 
प्रसिद्ध ग़ज़ल गायक - जगजीत सिंह, मेहदी हसन, ग़ुलाम अली आदि।

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रचनाकार   परिचय :
नाम : माणिक वर्मा 
जन्म : 25 दिसंबर,1938 को उज्जैन (म.प्र.) में ।
शिक्षा : एम.ए. (हिंदी), उर्दू से अदीबो-माहिर, अदीबो-कामिल।
प्रकाशन : ‘आदमी और बिजली का खंभा’, ‘महाभारत अभी जारी है’, ‘मुल्क के मालिको, जवाब दो’ (व्यंग्य संग्रह), ‘आखिरी पत्ता’ (गजल संग्रह)।
भारत की सभी लब्धप्रतिष्‍ठ पत्रिकाओं में नियमित रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी व दूरदर्शन पर अनेक बार कविताएँ प्रसारित। कवि सम्मेलनों में कविता पाठ। वीडियो एवं ऑडियो कैसेट्स द्वारा प्रचार।
सम्मान-पुरस्कार : ‘काका हाथरसी पुरस्कार’, ‘अट्टहास शिखर सम्मान’, ‘ठिठोली पुरस्कार’, ‘कलाश्री पुरस्कार’, ‘उपासना पुरस्कार’, ‘टेपा पुरस्कार’ एवं ‘कला आचार्य सम्मान’ आदि से अभिनंदित।
विदेश यात्रा : अमेरिका, चीन, बैंकॉक, हांगकांग, सिंगापुर, मॉरिशस, नेपाल, मस्कट आदि।

ग़ज़ल : माणिक वर्मा

भावार्थ

संदर्भ  रचना 
माणिक वर्मा जी  की  एक  अन्य ग़ज़ल  
प्यार  नाम  का  बूढ़ा  व्यक्ति 
आँसू भीगी मुस्कानों से हर चेहरे को तकता है,
प्यार नाम का बूढ़ा व्यक्ति जाने क्या-क्या बकता है।

अंजुरी भर यादों के जुगनूँ, गठरी भर सपनों का बोझ,
साँसों भर इक नाम किसी का पहरों-पहरों रटता है।

ढाई आखर का यह बौना, भीतर से सोना ही सोना,
बाहर से इतना साधारण, हम-तुम जैसा लगता है।

रिश्तों की किश्तें मत भरना, इससे मन का मोल न करना,
ये ऐसा सौदागर है जो ख़ुद लुट कर भी ठगता है।

कितनी ऊँची है नीचाई इस भोले सौदाई की,
आसमान होकर, धरती पर पाँव पाँव ये चलता है।

ग़ज़लकार :  माणिक वर्मा

लेखन एवं संकलन 

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