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Thursday, 30 November 2017

राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह २०१६-१७

राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह २०१६-१७ 
रविवार तिथी २६ नवंबर २०१७ 
स्थल : चितौड़गढ़, राजस्थान  
               राजकुमार जैन राजन फाउंडेशन, आकोला, राजस्थान और साहित्य समीर दस्तक मासिक पत्रिका  सदस्यों द्वारा आयोजित राष्ट्रिय बाल साहित्य सम्मान समारोह रविवार दिनांक २६ नवंबर २०१७ के दिन ऋतुराज वाटिका, चितौड़गढ़ में संपन्न हुआ इस कार्यक्रम में शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस कार्यक्रम का समाचार वृत्तांत और कुछ क्षण चित्र। 
कार्यक्रम मंच एवं प्रस्ताविक भूमिका रखते हुए बालसाहित्यकार एवं संस्थापक राजकुमार जैन 'राजन' फाउंडेशन 
राजकुमार जैन 'राजन'

  
राष्ट्रीय  बाल साहित्य में सम्मानित हुए आदरणीय हिंदी साहित्यकार 
सभी को हार्दिक बधाइयाँ। 

 

 

 

राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह में सम्मान स्विकारते हुए हिंदी के साहित्य में अनूठा योगदान देनेवाले साहित्यकार, अथिती एवं उपस्थित मान्यवर  



राजकुमार जैन राजन फाउंडेशन द्वारा श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे जी का अथिती सादर सम्मान करते हुए बाईं ओर से फाउंडेशन के संस्थापक श्री. राजकुमार जैन राजन, श्री. विकास दवे - संपादक देवपुत्र मासिक, श्री. सी. पी. जोशी -संसद सदस्य चितौड़गढ़ लोकसभा, श्रीमती डॉ. विमला भंडारी- जेष्ठ साहित्यकार-इतिहासकार एवं जनप्रतिनिधि और श्री. चिराग जैन। 


 
राजस्थान के मिडिया पर छाया राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान समारोह कार्यक्रम(समाचार दिनांक २७ नवंबर २०१७ के समाचार पत्र )











चितौड़गढ़ दर्शन की कुछ यादगार तस्वीरें। 


राजस्थान जैसी वीरभूमि पर जहाँ शौर्य, देशभक्ति, स्वामिभक्ति आदि के कीर्तिस्तंभ निर्माण करने वाली पवन भूमि पर गुजरे दो दिवस मेरे जीवन के अक्षय धन में से हैं जो यादों में से कभी ख़त्म नहीं होगा। 

  आदरणीय राजकुमार जैन 'राजन' जी द्वारा निमंत्रित करने पर इस कार्यक्रम में शरीक होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इस कार्यक्रम में उपस्थित जेष्ठ एवं नए साहित्यकारों से मिलाने और उनसे बातें करने का मौका मिला। आदरणीय श्रीमती विमला भंडारी जैसी माँ समान स्नेह बरसने वाली माँ मिली साथ ही साहित्य क्षेत्र के सिद्ध हस्ताक्षर एवं हमेशा स्नेह रखने वाले साहित्यकारों का स्नेह एवं साहित्यिक कृतियों की निधि प्राप्त हुई। सचमुच राजन जी के द्वारा किए आदरातिथ्य की कोई सानी नहीं। कार्यक्रम का आयोजन, स्वागत, स्नेहभोजन, निवास व्यवस्था और चितौड़गढ़ की सैर लाजवाब रहा। वापसी यात्रा तक मेहमानों की मेहमान नवाजी में बारीकियों का खयाल रखने वाले मेरे बड़े भाई राजन। मैं हमेशा राजकुमार जैन राजन जी का ऋणी रहूँगा। आपके आदरातिथ्य से दिल ख़ुशी से बाग-बाग़ हुआ।   

पुरे सफल कार्यक्रम के लिए राजकुमार जैन राजन एवं कीर्ति श्रीवास्तव जी को बहुत-बहुत बधाइयाँ एवं अभिनन्दन। 
आपने हमारे प्रति जो भी किया हैं शब्दों में बयान करना मुश्किल हैं। 
हार्दिक-हार्दिक आभार 

श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
भिरडाचीवाडी, 
भुईंज, तहसील वाई , जिला सातारा 
महाराष्ट्र ४१५ ५१५ 
९७३०४९१९५२   

काका कालेलकर - जन्मदिवस - १ दिसंबर

काका कालेलकर 
(अंग्रेज़ी: Kaka Kalelkar, जन्म: 1 दिसम्बर, 1885 - मृत्यु: 21 अगस्त, 1981) भारत के प्रसिद्ध गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षाविद, पत्रकार और लेखक थे। काका कालेलकर देश की मुक्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष के पक्षपाती थे।1915 ई. में गाँधी जी से मिलने के बाद ही इन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन गाँधी जी के कार्यों को समर्पित कर दिया। गुजराती भाषा पर भी इनका अच्छा ज्ञान था। 1922 में ये गुजराती पत्र 'नवजीवन' के सम्पादक भी रहे थे।

जन्म और शिक्षा
         काका कालेलकर का जन्म सतारा (महाराष्ट्र) में 1 दिसम्बर, 1885 ई. को हुआ था। उनका पूरा नाम 'दत्तात्रेय बालकृष्ण कालेलकर' था। उन्होंने 'फ़र्ग्यूसन कॉलेज', पुणे में शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने एक शिक्षक के रूप में अपना जीवन आरम्भ किया। 1990 में वे बेलगांव के गणेश विद्यालय के प्रधानाध्यापक के रूप में बड़ौदा चले गए, परन्तु राजनीतिक कारणों से एक वर्ष बाद ही यह विद्यालय बन्द हो गया।
            सशस्त्र संघर्ष के पक्षपातीकाका कालेलकर देश की पराधीनता से मुक्ति के लिए सशस्त्र संघर्ष के पक्षपाती थे और इस दिशा में काम कर रहे युवकों के समर्थक थे। साथ ही सांसारिक मोह-माया से मुक्त होने की भावना भी उनके अन्दर थी। अत: विद्यालय के बन्द होने पर वे मोक्ष की खोज में हिमालय की ओर चल पड़े। उन्होंने तीन वर्ष तक देश के विभिन्न भागों की 2500 मील की पैदल यात्रा की। उन्होंने अनुभव किया कि देश की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करना ही सबसे उत्तम मार्ग है और इसके लिए नई पीढ़ी को तैयार करना चाहिए। कुछ दिन हरिद्वार और कुछ दिन हैदराबाद (सिंध) में अध्यापन करने के बाद वे शिक्षक के रूप में शांति निकेतन पहुँचे।

काका कालेलकर-गाँधीजी से भेंट
    1915 में शांति निकेतन में काका कालेलकर की भेंट गांधी जी से हुई और उन्होंने अपना जीवन गांधी जी के कार्यों को समर्पित कर दिया। उनके राजनीतिक विचार भी बदल गये। वे साबरमती आश्रम के विद्यालय के प्राचार्य बने और बाद में उनके अनुभवों के आधार पर 'बेसिक शिक्षा' की योजना बनी। फिर वे 1928 से 1935 तक 'गुजरात विद्यापीठ' के कुलपति रहे। 1935 में काका साहब गांधी जी के साथ साबरमती से वर्धाचले गए और हिन्दी के प्रचार में लग गए।
सम्पादन तथा लेखन कार्य
        गांधी जी के नेतृत्व में जितने भी आन्दोलन हुए, काका कालेलकर ने सब में भाग लिया और कुल मिलाकर 5 वर्ष क़ैद में बिताए। गांधी जी की गिरफ्तारी के बाद वे गुजराती पत्र 'नवजीवन' के सम्पादक भी रहे। मातृभाषा मराठी होने पर भी वे गुजराती के प्रसिद्ध लेखक माने गए। उन्होंने गुजराती, मराठी, हिन्दीऔर अंग्रेज़ी में विविध विषयों पर 30 से अधिक पुस्तकों की रचना की। रवीन्द्रनाथ ठाकुर के साहित्य का मराठी और गुजराती में अनुवाद भी किया।

गुजराती के प्रसिद्ध लेखक
       मराठी-भाषी होने पर भी काकासाहेब ने मराठी से अधिक गुजराती और राष्ट्रभाषा हिन्दी की सेवा की है। शिक्षा, साहित्य, संस्कृति, भाषा आदि के क्षेत्रों में उनका योगदान अनुपम है। वे सही मायने में विश्वकोश थे। राजनीति, समाजशास्त्र, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, अध्यात्म आदि कोई भी ऐसा विषय नहीं है जिस पर उन्होंने प्रामाणिक लेखन न किया हो। वे किसी बात का ज्ञान प्राप्त करने मात्र से संतुष्ट नहीं होते। उसके बारे में मौलिक दृष्टि से चित्रन करते हैं। उनकी स्मरण की क्षमता बड़ी अद्भुत है। स्थानों, व्यक्तियों, संस्थाओं के नाम उन्हें याद रहते हैं। काकासाहेब कलासक्त और सौंदर्यप्रेमी हैं। उनकी भव्य आकृति उनकी कलाशक्ति के दर्शन कराती है। उनके हर काम में सहज सुधरी कला होती है। उनके द्वारा निर्मित साहित्य प्रेरक विचारों का एक विशाल भंडार है। विभिन्न क्षेत्रों में उन्होंने इतना कार्य किया है कि वे एक संस्था बन गये थे। उनके प्रेरक और कलापूर्ण साहित्य के चुने हुए अंशों का अनुवाद सभी भारतीय भाषाओं में होना चाहिए। बीसवीं शताब्दी के दो महापुरुषों – महात्मा गांधी और गुरुदेव टैगोर के निकट संपर्क में आये और उनसे प्रेरणा प्राप्त करने का अवसर काकासाहेब को प्राप्त हुआ था। उनके कार्य और चिंतन पर गांधी और टैगोर की छाप स्पष्ट रुप से लक्षित होती है।

रचनाएँ
     काकासाहेब की लिखी पुस्तकों की सूची से स्पष्ट हो जाता है कि वे स्वतंत्र चिंतक, साहित्य के प्रणेता, गांधी विचार-धारा के व्याख्याता तथा भारतीय संस्कृति के परिव्राजक हैं।
काकासाहेब की लिखी पुस्तकें
हिन्दी ग्रंथमराठी पुस्तकेंगुजराती पुस्तकें
  1. राष्ट्रीय शिक्षा के आदर्शों का विकास
  2. सहजीवनी की समस्या
  3. सप्त-सरिता
  4. कला : एक जीवन दर्शन
  5. हिन्दुस्तानी की नीति
  6. बापू की झांकिया
  7. हिमालय की यात्रा
  8. उस पार के पड़ोसी
  9. उत्तर की दीवारें
  10. स्मरण-यात्रा
  11. जीवन-साहित्य
  12. लोकजीवन
  13. जीवन-संस्कृति की बुनियाद
  14. नक्षत्रमाला
  15. जीवनलीली
  16. सूर्योदय का देश (जापान)
  17. गांधीजी की अध्यात्म-साधना
  18. स्वराज संस्कृति के सेतरी
  19. भाषा
  20. कठ़ोर कृपा
  21. गीतारत्नप्रभा
  22. आश्रम-संहिता
  23. नमक के प्रभाव से
  24. प्रजा का राज प्रजा की भाषा में
  25. यात्रा का आनन्द
  26. समन्वय, सत्याग्रह-विचार और युद्धनीति
  27. परमसखा मृत्यु
  28. उपनिषदों का बोध
  29. युगमूर्ति रवीन्द्रनाथ
  30. राष्ट्रभारती हिन्दी का मिशन
  1. स्वामी रामतीर्थ
  2. गीतेचें समाजरचना शास्त्र
  3. हिंडलग्याचा प्रसाद
  4. जीवंत व्रतोत्सव
  5. ब्रह्मदेशाचा प्रवास
  6. भारतदर्शन
  7. गोमांतक
  8. रवींद्र प्रतिभच
  9. कोंवळे किरण
  10. लोकजीवन
  11. मृगजळांतील मोती
  12. स्मरणयात्रा
  13. बापूजींचीं ओझरती दर्शने
  14. साहित्याची कामगिरी
  15. लोकमाता
  16. हिंदुचे समाजकारण लाटांचे तांडव
  17. आमच्या देश वे दर्शन
  18. सामाजिक प्रश्न
  1. स्वदेशी धर्म
  2. कालेलकरना लेंखों
  3. जीवननो आनंद
  4. जीवन-विकास
  5. जीवन-भारती
  6. जीवन-संस्कृति
  7. गीता-सार
  8. जीवनलीला
  9. धर्मोदय
  10. जीवन-प्रदीप
  11. मधुसंचय
  12. जीवन-चिंतन
  13. जीवन-व्यवस्था
  14. भारतीय संस्कृतिनो उदगाता
  15. शुद्ध जीवनदृष्टिनी भाषानीति
  16. आवती कालना प्रश्नो

सम्मान एवं पुरस्कार
          काका कालेलकर 1952 से 1964 तक संसद के सदस्य भी रहे। 1964 में उन्हें 'पद्म विभूषण' से सम्मानित किया गया। वे 'पिछड़ा वर्ग आयोग', 'बेसिक एजुकेशन बोर्ड', 'हिन्दुस्तानी प्रचार सभा', 'गांधी विचार परिषद' के अध्यक्ष तथा 'गांधी स्मारक संग्रहालय' के निदेशक रहे। काका कालेलकर ने विश्व के अनेक देशों की यात्रा की और गांधीवादी विचारों का प्रचार किया। वे ग्रामीण और कुटीर उद्योगों के समर्थक थे। सामाजिक स्तर पर वे भेदभाव के विरोधी थे।
            संपूर्ण गांधीसाहित्य के लिए नियुक्त परामर्शदायी समिति के काकासाहेब एक सदस्य रहे। 1949 में काकासाहेब ने गुजराती साहित्य परिषद के अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1979 में 76वीं वर्षगांठ के अवसर पर अहमदाबाद में उन्हें गुजराती में कालेलकर-अध्ययन-ग्रंथ समर्पित कर सम्मानित किया गया। कृतज्ञ राष्ट्र द्वारा 1965 में 81वीं वर्षगांठ पर ‘संस्कृति के परिव्राजक’ तथा 95वें जन्मदिन पर ‘समन्वय के साधक’ अभिनन्दन ग्रंथ अर्पित किये गये। सन् 1965में ही भारतीय साहित्य अकादमी ने, राष्ट्रपति के हाथों, काकासाहेब को उनके ‘जीवन-व्यवस्था’ शीर्षक गुजराती लेख-संकलन पर रुपये पाँच हजार का पुरस्कार देकर सम्मानित किया था। स्वातंत्र्य के सेनानी, लोकशिक्षक, पंडित, देश के सांस्कृतिक दूत, साहित्य सेवक आदि सभी दृष्टियों से उनका व्यक्तित्व महान् है। सरदार पटेल विश्वविद्यालय, आणंद, गुजरात विश्वविद्यालय और काशी विद्यापीठ ने उन्हें मानद् डी. लिट्. से और साहित्य अकादमी, नई दिल्ली ने ‘फ़ैलो’ से अलंकृत किया।

निधन
      आचार्य काकासाहेब कालेलकर का निधन 21 अगस्त, 1981 को नई दिल्ली में उनके ‘संनिधि’ आश्रम में हुआ।

Tuesday, 21 November 2017

दुष्यंत कुमार

जन्म 01 सितम्बर 1933
निधन 30 दिसम्बर 1975
जन्म स्थान राजपुर नवाडा गांव, जिला बिजनोर, उत्तर प्रदेश, भारत
कुछ प्रमुख कृतियाँ
सूर्य का स्वागत; आवाज़ों के घेरे; जलते हुए वन का वसन्त (सभी कविता संग्रह)।साये में धूप (ग़ज़ल संग्रह)। एक कण्ठ विषपायी (काव्य-नाटिका)
विविध
ग़ज़ल विधा को हिन्दी में लोकप्रिय बनाने में दुष्यंत कुमार का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
जीवन परिचय
दुष्यन्त कुमार का जन्म बिजनौर जनपद उत्तर प्रदेश के ग्राम राजपुर नवादा में 01 सितम्बर 1933 को और निधन भोपाल में 30 दिसम्बर 1975 को हुआ था| इलाहबाद विश्व विद्यालय से शिक्षा प्राप्त करने के उपरांत कुछ दिन आकाशवाणी भोपाल में असिस्टेंट प्रोड्यूसर रहे बाद में प्रोड्यूसर पद पर ज्वाइन करना था लेकिन तभी हिन्दी साहित्याकाश का यह सूर्य अस्त हो गया| इलाहबाद मेंकमलेश्वर, मार्कण्डेय और दुष्यन्त की दोस्ती बहुत लोकप्रिय थी वास्तविक जीवन में दुष्यन्त बहुत, सहज और मनमौजी व्यक्ति थे| कथाकार कमलेश्वर बाद में दुष्यन्त के समधी भी हुए| दुष्यन्त का पूरा नाम दुष्यन्त कुमार त्यागी था| प्रारम्भ में दुष्यन्त कुमार परदेशी के नाम से लेखन करते थे|

जिस समय दुष्यंत कुमार ने साहित्य की दुनिया में अपने कदम रखे उस समय भोपाल के दो प्रगतिशील (तरक्कीपसंद) शायरों ताज भोपाली तथा क़ैफ़ भोपाली का ग़ज़लों की दुनिया पर राज था । हिन्दी में भी उस समय अज्ञेय तथा गजानन माधव मुक्तिबोध की कठिन कविताओं का बोलबाला था । उस समय आम आदमी के लिए नागार्जुन तथा धूमिल जैसे कुछ कवि ही बच गए थे । इस समय सिर्फ़ ४२ वर्ष के जीवन में दुष्यंत कुमार ने अपार ख्याति अर्जित की । निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं

"दुष्यंत की नज़र उनके युग की नई पीढ़ी के ग़ुस्से और नाराज़गी से सजी बनी है. यह ग़ुस्सा और नाराज़गी उस अन्याय और राजनीति के कुकर्मो के ख़िलाफ़ नए तेवरों की आवाज़ थी, जो समाज में मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह पिछड़े वर्ग की मेहनत और दया की नुमानंदगी करती है. " ।


हिन्दी साहित्याकाश में दुष्यन्त सूर्य की तरह देदीप्यमान हैं| समकालीन हिन्दी कविता विशेषकर हिन्दी गज़ल के क्षेत्र में जो लोकप्रियता दुष्यन्त कुमार को मिली वो दशकों बाद विरले किसी कवि को नसीब होती है| दुष्यन्त एक कालजयी कवि हैं और ऐसे कवि समय काल में परिवर्तन हो जाने के बाद भी प्रासंगिक रहते हैं| दुष्यन्त का लेखन का स्वर सड़क से संसद तक गूँजता है| इस कवि ने आपात काल में बेख़ौफ़ कहा था।

मत कहो आकाश में कुहरा घना है
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है

 इस कवि ने कविता ,गीत ,गज़ल ,काव्य नाटक ,कथा आदि सभी विधाओं में लेखन किया लेकिन गज़लों की अपार लोकप्रियता ने अन्य विधाओं को नेपथ्य में डाल दिया|

कृतियाँ:
सूर्य का स्वागत, आवाज़ों के घेरे, जलते हुए वन का वसन्त (सभी कविता संग्रह)।
साये में धूप (ग़ज़ल संग्रह)।
एक कण्ठ विषपायी (काव्य-नाटिका) आदि दुष्यन्त की प्रमुख कृतियाँ हैं|
आपके नाम पर दुष्यंत कुमार सम्मान पुरस्कार प्रारंभ किया गया है
संग्रह
जलते हुए वन का वसन्त / दुष्यंत कुमार(कविता संग्रह)
सूर्य का स्वागत / दुष्यंत कुमार(कविता संग्रह) (1957)
आवाज़ों के घेरे / दुष्यंत कुमार(कविता संग्रह)
साये में धूप / दुष्यंत कुमार (ग़ज़ल संग्रह)
एक कंठ विषपायी / दुष्यन्त कुमार (काव्य नाटिका)
प्रतिनिधि रचनाएँ

दुष्यंत कुमार के साहित्य काव्यकोष से साभार प्रस्तुत

संकलन 
श्री. मच्छिंद्र बापू भिसे 
९७३०४९१९५२ 

Monday, 6 November 2017

जिला स्तरीय छात्र एवं अध्यापक प्रतियोगिता

नमस्ते,
            सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल की ओर से शनिवार दि. ११ नवंबर २०१७ के दिन जिला स्तरीय छात्र एवं अध्यापक प्रतियोगिता सुबह ११ बजे संपन्न होने वाली थी, परंतु इसी दिन शिक्षा विभाग द्वारा कक्षा ६ से ८ तक के छात्रों की प्रथम सत्रांत संकलित मूल्यमापन परीक्षा भी होने के कारण सभी की सुविधा हेतु जिला स्तरीय हिंदी प्रतियोगिता के समय में परिवर्तन किया गया है।

       यह प्रतियोगिता उसी दिन दोपहर १ बजकर ३० मिनट को प्रारंभ होगी। साथ - ही - साथ कविता गायन प्रतियोगिता एवं ११वीं एवं १२ वीं निबंध प्रतियोगिता में अधिक छात्र शामिल होने की उम्मीद है।

      अध्यापक भी जिला स्तरीय वक्तृत्व तथा निबंध प्रतियोगिता में आधिक से अधिक शामिल होने की उम्मीद हैं।

       अतः सभी पाठशालाओं के प्रधानाचार्य एवं हिंदी विषय अध्यापकों से निवेदन है कि जिला स्तरीय प्रतियोगिताओं में शामिल सभी छात्रों को निर्धारित समय पर राष्ट्रभाषा भवन, सातारा में उपस्थित करके प्रतियोगिता में शामिल करें । कोई भी छात्र इससे वंचित न रहे, इसलिए सभी की ओर से सहयोग की अपेक्षा है।

प्रतियोगिताएँ : 
शनिवार दि. ११ नवंबर २०१७
समय - दोपहर १.३०बजे
स्थल - राष्ट्रभाषा भवन सातारा

श्री. ता.का.सूर्यवंशी
अध्यक्ष 
सातारा जिला हिंदी अध्यापक मंडल