भारतवर्ष के सभी
हिंदी प्रेमियों को
‘हिंदी दिवस’
की बहुत-बहुत
मंगलकामनाएँ
मंगलकामनाएँ
*निज भाषा के गीत गाएँगे *
अमृत की धारा बहकर जिसने,
हिंद को अमर बनाया है,
हिंदी है वह सपूत हम इसके,
निज भाषा के गीत नित गाएँगे।
भारत भू के पावन अधरों पर,
खिलें हिंदी के अमर सुमन,
सुगंधित करती रही - रहेगी,
हँस-हँसकर देखेगा यह चमन,
ऐसे है इसके पुष्प यहाँ,
जो कभी न मुरझाएँगे।
अमीर, चंद और विद्यापति,
हिंदी को देते थे हरपल गति,
कबीर, सूर हो या तुलसीदास,
हिंदी को दे रहे थे निश-दिन उजास,
आदि-भक्ति का अलख जो जगाया,
वह अलख नित जगाएँगे।
रीतिकाल बहाएँ था परिवर्तन के पवन ,
केशव, पद्माकर थे जैसे कवि भूषण,
मील के पत्थर बनें भारतेंदु -प्रेमचंद
मानी देकर खिलाएँ कितनों ने अनुबंध,
राष्ट्र की आन-बान-शान है हिंदी ,
संजोए रखने को हर साँस लुटाएँगे।
सभ्यता, संस्कृति और मानवता,
भारत-भारती की जो है संभालें,
समता, एकता, बंधुता औ’ राष्ट्रीयता,
हिंदी है वह जिसने भरे ये रंग निराले,
लाख करें कोशिश मिटाने की इसे,
थाल इसकी अपने भाल से सजाएँगे।
रचना
नवकवि- मच्छिंद्र भिसे (सातारा)
नवकवि- मच्छिंद्र भिसे (सातारा)