हिंदी आधुनिक युग के ग़जल के प्रवर्तक
दुष्यंत कुमार
दुष्यंत कुमार
जीवन परिचय
दुष्यंत कुमार
का जन्म बिजनौर
जनपद (उत्तर प्रदेश)
के ग्राम राजपुर
नवादा में 1 सितम्बर,
1933 को हुआ था।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा
प्राप्त करने के
उपरांत कुछ दिन
आकाशवाणी, भोपाल में असिस्टेंट
प्रोड्यूसर रहे। इलाहाबाद
में कमलेश्वर, मार्कण्डेय
और दुष्यंत की
दोस्ती बहुत लोकप्रिय
थी। वास्तविक जीवन
में दुष्यंत बहुत,
सहज और मनमौजी
व्यक्ति थे। कथाकार
कमलेश्वर बाद में
दुष्यंत के समधी
भी हुए। दुष्यंत
का पूरा नाम
दुष्यंत कुमार त्यागी था।
प्रारम्भ में दुष्यंत
कुमार परदेशी के
नाम से लेखन
करते थे।
कृतियाँ :
इन्होंने 'एक
कंठ विषपायी', 'सूर्य
का स्वागत', 'आवाज़ों
के घेरे', 'जलते
हुए वन का
बसंत', 'छोटे-छोटे
सवाल' और दूसरी
गद्य तथा कविता
की किताबों का
सृजन किया। जिस
समय दुष्यंत कुमार
ने साहित्य की
दुनिया में अपने
कदम रखे उस
समय भोपाल के
दो प्रगतिशील शायरों
ताज भोपाली तथा
क़ैफ़ भोपाली का
ग़ज़लों की दुनिया
पर राज था।
हिन्दी में भी
उस समय अज्ञेय
तथा गजानन माधव
मुक्तिबोध की कठिन
कविताओं का बोलबाला
था। उस समय
आम आदमी के
लिए नागार्जुन तथा
धूमिल जैसे कुछ
कवि ही बच
गए थे। इस
समय सिर्फ़ 42 वर्ष
के जीवन में
दुष्यंत कुमार ने अपार
ख्याति अर्जित की।
अमिताभ बच्चन के प्रशंसक
दुष्यंत कुमार
ने बॉलीवुड महानायक
अमिताभ बच्चन को उनकी
फिल्म ‘दीवार’ के बाद
पत्र लिखकर उनके
अभिनय की तारीफ
की और कहा
कि- "वह उनके
‘फैन’ हो गए
हैं।" दुष्यंत कुमार का
वर्ष 1975 में निधन
हो गया था
और उसी साल
उन्होंने यह पत्र
अमिताभ को लिखा
था। यह दुर्लभ
पत्र हाल ही
में उनकी पत्नी
राजेश्वरी त्यागी ने उन्हीं
के नाम से
स्थापित संग्रहालय को हाल
ही में सौंपा
है। दुष्यंत कुमार
और अमिताभ के
पिता डॉ. हरिवंशराय
बच्चन में गहरा
प्रेम था। ‘दीवार’
फिल्म में उन्होंने
अमिताभ की तुलना
तब के सुपर
स्टार्स शशि कपूर
और शत्रुघ्न सिन्हा
से भी की
थी। हिन्दी के
इस महान् साहित्यकार
की धरोहरें ‘दुष्यंत
कुमार स्मारक पाण्डुलिपि
संग्रहालय’ में सहेजी
जा रही हैं।
इन्हें देखकर ऐसा लगता
है कि साहित्य
का एक युग
यहां पर जीवित
है।
दुष्यंत कुमार
ने अमिताभ को
लिखे इस पत्र
में कहा, ‘किसी
फिल्म आर्टिस्ट को
पहली बार खत
लिख रहा हूं।
वह भी ‘दीवार’
जैसी फिल्म देखकर,
जो मानवीय करुणा
और मनुष्य की
सहज भावुकता का
अंधाधुंध शोषण करती
है।’ कवि और
शायर ने अमिताभ
को याद दिलाया,
‘तुम्हें याद नहीं
होगा। इस नाम
(दुष्यंत कुमार) का एक
नौजवान इलाहाबाद में अक्सर
बच्चन साहब के
पास आया करता
था, तब तुम
बहुत छोटे थे।
उसके बाद दिल्ली
के विलिंगटन क्रेसेंट
वाले मकान में
आना-जाना लगा
रहा। लेकिन तुम
लोगों से संपर्क
नहीं रहा। दरअसल,
कभी जरूरत भी
महसूस नहीं हुई।
मैं तो बच्चनजी
की रचनाओं को
ही उनकी संतान
माने हुए था।’
दुष्यंत कुमार
ने लिखा, ‘मुझे
क्या पता था
कि उनकी एक
संतान का कद
इतना बड़ा हो
जाएगा कि मैं
उसे खत लिखूंगा
और उसका प्रशंसक
हो जाउंगा।’
वर्तमान कवियों की नज़र में दुष्यंत कुमार
निदा फ़ाज़ली उनके बारे में लिखते हैं-
"दुष्यंत की नज़र
उनके युग की
नई पीढ़ी के
ग़ुस्से और नाराज़गी
से सजी बनी
है। यह ग़ुस्सा
और नाराज़गी उस
अन्याय और राजनीति
के कुकर्मो के
ख़िलाफ़ नए तेवरों
की आवाज़ थी,
जो समाज में
मध्यवर्गीय झूठेपन की जगह
पिछड़े वर्ग की
मेहनत और दया
की नुमानंदगी करती
है।"
दिनेश ग्रोवर, प्रकाशक लोकभारती इलाहबाद
दुष्यन्त अपने
जीवनकाल में ही
एक किंवदंती बन
गए थे। उनकी
लोकप्रियता का अनुमान
केवल इतनी बात
से लगाया जा
सकता है कि
पिछले चुनावों में
आमने -सामने दो
विरोधी पार्टियां एक ही
तख्ती लगाये चल
रही थी; सिर्फ़
हंगामा खड़ा करना
मेरा मकसद नहीं
/ मेरी कोशिश है कि
ये सूरत बदलनी
चाहिए हम फख्र
से कह सकते
हैं कि हिंदी
ने मीर, ग़ालिब
भले न पैदा
किये हों मगर
दुष्यन्त कुमार को पैदा
किया है और
यही हमारी हिंदी
की जातीय अस्मिता
की एक बहुत
बड़ी विजय है।
लोकप्रिय कवि यश मालवीय
दुष्यन्त की
कविता ज़िन्दगी का
बयान है। ज़िन्दगी
के सुख- दुःख
में उनकी कविता
अनायास याद आ
जाती है। विडम्बनायें
उनकी कविता में
इस तरह व्यक्त
होती हैं कि
आम आदमी को
वे अपनी आवाज़
लगने लगती हैं।
समय को समझने
और उससे लड़ने
की ताकत देती
ये कवितायें हमारे
समाज में हर
संघर्ष में सर्वाधिक
उद्धरणीय कविताएँ हैं। सिर्फ़
हंगामा खड़ा करना
मेरा मकसद नहीं
/ मेरी कोशिश है कि
ये सूरत बदलनी
चाहिए यह मात्र
एक शेर नहीं
ज़िन्दगी का एक
दर्शन है फलसफा
है। चूँकि दुष्यन्त
की कविताएँ जनता
के जुबान पर
चढ़ी हुई हैं
इसलिए मीडिया के
लोग भी विशेष
मौकों पर अपनी
बात जन तक
पहुँचाने के लिए,
उनके दिलों में
उतार देने के
लिए दुष्यन्त की
शायरी का इस्तेमाल
करते हैं। दुष्यन्त
की ग़ज़लें कठिन
समय को समझने
के लिए शास्त्र
और उनसे जूझने
के लिए शस्त्र
की तरह हैं।
प्रकाशित रचनाएं-काव्यसंग्रह
·
सूर्य
का स्वागत
·
आवाज़ों
के घेरे
·
जलते
हुए वन का
वसन्त
·
उपन्यास
·
छोटे-छोटे सवाल
·
आँगन
में एक वृक्ष
·
दुहरी
ज़िंदगी।
·
एकांकी
·
मन
के कोण
·
नाटक
·
और
मसीहा मर गया
·
गज़ल-संग्रह
·
साये
में धूप
·
काव्य
नाटक
·
एक
कण्ठ विषपायी
इनके अतिरिक्त कुछ आलोचनात्मक
पुस्तकें तथा कुछ
महत्त्वपूर्ण पुस्तकों का अनुवाद
भी किया।
निधन
दुष्यंत कुमार
का निधन 30 दिसम्बर
सन 1975 में सिर्फ़
42 वर्ष की अवस्था
में हो गया।
दुष्यंत ने केवल
देश के आम
आदमी से ही
हाथ नहीं मिलाया
उस आदमी की
भाषा को भी
अपनाया और उसी
के द्वारा अपने
दौर का दुख-दर्द गाया।
दुष्यंत कुमार की कुछ
पंक्तियाँ
मैं जिसे
ओढ़ता -बिछाता हूँ ,
वो गज़ल
आपको सुनाता हूँ।
एक जंगल
है तेरी आँखों
में
मैं जहाँ
राह भूल जाता
हूँ।
तू किसी
रेल सी गुजरती
है,
मैं किसी
पुल -सा थरथराता
हूँ।
हर तरफ़
एतराज़ होता है,
मैं अगर
रोशनी में आता
हूँ।
एक बाजू
उखड़ गया जब
से,
और ज़्यादा
वज़न उठाता हूँ।
मैं तुझे
भूलने की कोशिश
में,
आज कितने
क़रीब पाता हूँ।
कौन ये
फासला निभाएगा,
मैं फ़रिश्ता
हूँ सच बताता
हूँ। -दुष्यंत कुमार
हिंदी गजल के इस महानायक को
हिंदी साहित्यिक, अध्यापक एवं छात्रों की ओर से
शत-शत नमन