प्रस्तुत लघुकथाएँ वंदनीय सुरेश कुशवाहा 'तन्मय' जी की अनुमति से साभार प्रस्तुत हैं।
" छोटू का दर्द "
अधेड़ आयु का एक शराबी होटल में घुसते ही ,ए छोटू...एक प्लेट भजिए और कड़क काली चाय देने का इधर, फटाफट.. जल्दी से
जी साब, अभी लाया। फुर्ती से छोटु ने भजिए की प्लेट टेबल पर रखते हुए कहा-चाय बन रही है साब, फिर लाता हूं।
क्यों बे ये टेबल कौन साफ़ करेगा तेरा बाप?साब, आप अपुन के बाप का नाम लेता है, मेरे को कोई मलाल नहीं इसका। अगर बाप ही ये काम कर लेता तो मैं अभी किसी सरकारी स्कूल में पढ़ रहा होता।
अच्छा साब, आपका बच्चा तो पढता होगा ना?टेबल पर पोंछा मारते हुए छोटू ने पूछा?
शराबी ने घूरते हुए कहा- हाँ , पर तू ये सब क्यों पूछ रहा है?
क्योंकि साब, स्कूल जाना तो मैंने भी शुरू किया था, किन्तु बीच में ही बाप की दारू की लत के कारण पढ़ना छोड़ना पड़ा।
अच्छा साब, आपका बच्चा तो आखरी तक पढाई करता रहेगा ना?
अबे छुटके, सवाल पे सवाल आखिर तेरा मतलब क्या है?
माफ़ करना साब, पर आपको ऐसी हालत में देख कर मुझे लगा कि, कहीं मेरी तरह आपके बच्चे को भी स्कूल छोड़कर किसी होटल - वोटल में.......
छोटू अभी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया था कि, शराबी का एक झन्नाटेदार हाथ उसके गाल पर पड़ा।। साले तूने तो आज मेरा पूरा नशा ही उतार दिया रे..,यह कहते हुए फिर अचानक द्रवित हो छोटू के कंधे पर एक पल के लिए हाथ रखा और सिर झटकते हुए होटल से बाहर निकल कर अपने घर की राह पकड़ ली।
छोटू चांटा खाने के बाद भी खुश था , इसलिए कि, शायद अब उस आदमी का बच्चा अपनी पढाई पूरी कर सकेगा।
------ अनूठी बोहनी -----
साँझ होने को आई किन्तु आज एक पैसे की बोहनी तक नहीं हुई।
बांस एवं उसकी खपच्चियों से बने फर्मे के टंग्गन में गुब्बारे, बांसुरियाँ, और फिरकी, चश्मे आदि करीने से टाँग कर रामदीन रोज सबेरे घर से निकल पड़ता है।
गली, बाजार, चौराहे व घरों के सामने कभी बाँसुरी बजाते, कभी फिरकी घुमाते और कभी फुग्गों को हथेली से रगड़ कर आवाज निकालते ग्राहकों/ बच्चों का ध्यान अपनी ऒर आकर्षित करता है रामदीन ।
बच्चों के साथ छुट्टे पैसों की समस्या के हल के लिए वह अपनी बाईं जेब में घर से निकलते समय ही कुछ चिल्लर रख लेता है। दाहिनी जेब आज की बिक्री के पैसों के लिए होती
खिन्न मन से रामदीन अँधेरा होने से पहले घर लौटते हुए रास्ते में एक पुलिया पर कुछ देर थकान मिटाने के लिए बैठकर बीड़ी पीने लगा। उसी समय सिर पर एक तसले में कुछ जलाऊ उपले और लकड़ी के टुकड़े रखे मजदुर सी दिखने वाली एक महिला एक हाथ से ऊँगली पकड़े एक बच्चे को लेकर उसी पुलिया पर सुस्ताने लगी।
गुब्बारों पर नज़र पड़ते ही वह बच्चा अपनी माँ से उन्हें दिलाने की जिद करने लगा। दो चार बार समझाने के बाद भी बालक मचलने लगा, तो उसके गाल पर एक चपत लगाते हुए उसे डांटने लगी कि,
दिन भर मजूरी करने के बाद जरा सी गलती पर ठेकेदार ने आज पूरे दिन के पैसे हजम कर लिए और तुझे फुग्गों की पड़ी है।। बच्चा रोने लगता है।
पुलिया के एक कोने पर बैठे रामदीन का इन माँ-बेटे पर ध्यान जाना स्वाभाविक ही था। वह उठा और रोते हुए बच्चे के पास गया । एक गुब्बारा, एक बांसुरी और एक फिरकी उसके हाथों में दे कर सर पर हाथ रख उसे चुप कराया। फिर अपनी बाईं जेब में हाथ डालकर उसमे से इन तीनो की कीमत के पैसे निकाल कर अपनी दाहिनी जेब में रख लिए।
अचानक हुई इस अनूठी और सुखद बोहनी से प्रसन्न मन मुस्कुराते हुए रामदीन घर की ओर चल दिया।
----- मानसिकता -----
दीपावली से दो दिन पहले खरीदारी के लिए वो सबसे पहले पटाखा बाजार पहुंचा। अपने एक परिचित की दुकान से चौगुनी कीमत पर एक हजार के पटाखे खरीदे। फिर वह शॉपिंग सेंटर पहुंचा, यहां मिठाई की सबसे बड़ी दुकान पर जाकर डिब्बे सहित तौली गई हजार रूपये की मिठाई झोले में डाली। इसके बाद पूजा प्रसाद के लिए लाई-बताशे, फल-फूल और रंगोली आदि खरीदकर शरीर में आई थकान मिटाने के लिए पास के कॉफी हाउस में चला गया। कुछ देर बाद कॉफी के चालीस रूपये के साथ अलग से बैरे की टीप के दस रूपये प्लेट में रखते हुए बाहर आया और मिट्टी के दीयों की दुकान की ओर बढ़ गया।
“ क्या भाव से दे रहे हो यह दीये ? ”
“ आईये बाबूजी, ले लीजिये, दस रूपये के छह दे रहे हैं ”
“ अरे! इतने महंगे दीये, जरा ढंग से लगाओ, मिट्टी के दीयों की इतनी कीमत ? ”
“ बाबूजी, बिल्कुल वाजिब दाम में दे रहे हैं। देखो तो, शहर के विस्तार के साथ इनको बनाने की मिट्टी भी आसपास मुश्किल से मिल पाती है। फिर इन्हें बनाने सुखाने में कितनी झंझट है। वैसे भी मोमबत्तियों और बिजली की लड़ियों के चलते आप जैसे अब कम ही लोग दीये खरीदते हैं। ”
“ अच्छा ऐसा करो, दस रूपये के आठ लगा लो ”, दुकानदार कुछ जवाब दे पाता इससे पहले ही वह पास की दुकान पर चला गया। वहां भी बात नहीं बनी। आखिर तीन चार जगह घूमने के बाद एक दुकान पर मन मुताबिक भाव तय कर वह अपने हाथ से छांट-छांट कर दीये रखने लगा।
“ ये दीये छोटे बड़े क्यों हैं? एक साइज में होना चाहिए सारे दीये ”
“ बाबूजी, ये दीये हम हाथों से बनाते हैं, इनके कोई सांचे नहीं होते इसलिए.... ”
घर जाकर पत्नी के हाथ में सामान का झोला थमाते हुए वह कह रहा था – “ ये महंगाई पता नहीं कहा जा कर दम लेगी। अब देखों ना, मिट्टी के दीयों के भाव भी आसमान छूने लगे हैं। ”
करे कोई - भरे कोई
यार रमेश, ये अंकल आँटी को क्या हो गया है, आजकल दोनों बच्चों-पिंकी व रिंकू को हम लोगों से दूर-दूर क्यों रखने लगे हैं?
हाँ शुभम् मैं भी तो इसी बात से हैरान हूँ। मैंने जब रामदीन दद्दा से पूछा तो वे अपना ही रोना ले बैठे, बोले- कुछ दिनों से बहू बेटे, दोनों बच्चों को उनके कमरे में आने से रोकने लगे हैं, बता रहे थे वे-आजकल सब दूर यही सब चल रहा है।
उनके एक बुजुर्ग मित्र देवीदीन को तो उनके डॉक्टर बेटे बहू ने मुँह पर ही बोल दिया कि, वे बच्चों से दुरी बना कर रखें। उनके कारण पूछने पर उन लोगों ने स्वास्थ्य का हवाला दिया कि, बड़ी उम्र में शरीर में कई अज्ञात रोगाणु छिपे रहते हैं, इसलिए......
यार रमेश क्या सटीक कारण खोजा है, डॉक्टर बहू बेटे ने अपने ही पिता को बच्चों से दूर रखने का।
वैसे शुभम्- असली कारण मुझे कुछ और ही लग रहा है जो अब कुछ कुछ समझ में भी आ रहा है।
दरअसल आये दिन अखबारों और टी.वी.चैनलों पर बाल यौन उत्पीड़न की कुत्सित घटनाओं को देख सुन कर सभी माँ-बाप अपने बच्चों की सुरक्षा को ले कर काफी भयभीत व आशंकित हैं। शायद इसी भय के चलते सब के साथ उनके अपने भी संदेह के घेरे में आने लगे हैं।
रमेश, यह तो सही है की, ऐसे हालात में सतर्कता और सावधानी रखना जरूरी हो गया है, पर ऐसे में जो साफ़ सुथरे निश्छल मन के स्नेही स्वजन हैं उनके दिलों पर क्या गुजरेगी।
गुजरना तो है शुभम्- गुजर भी रही है, तभी तो हम इस पर चर्चा कर रहे हैं। क्या करें समाज का ताना बाना ही ऐसा है, सुनी है ना वे सारी कहावतें - कि "एक पापी पूरी नाव को डूबा देता है",
"दूध का जला छांछ भी फूँक कर पीता है" या "करे कोई भरे कोई"
नहीं रमेश, ये कहावतें अपवाद स्वरूप कुछ सही हो सकती है किन्तु पूरी तौर पर सत्य नहीं है। चलो, आज इन संशय, संदेह और अविश्वास के चश्मों को तोड़ कर सजगता, सतर्कता और पारखी
दृष्टिबोध कराने वाले चश्में समाज को पहनाने की पहल हम अपने से ही करते हैं।
दोनों मित्र अपने नन्हें दोस्त रिंकू - पिंकी के मम्मी पापा से मिलने उनके घर की ओर बढ़ते चले जा रहे थे..........।
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